(लेखक वैल्यू रिसर्च आनलाइन डाट काम के सीईओ हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)
2008 मार्केट क्रैश के सही-गलत सबक, कितना और कहां तक सही है शेयर बाजार में रिस्क लेना
नई दिल्ली, धीरेंद्र कुमार। कुछ दिनों पहले मेरी नजर एक लेख पर पड़ी, जो 2009 के आखिर या 2010 की शुरुआत में लिखा गया था। इस लेख में उस पत्र के अंश थे, जो यूएस फंड मैनेजर सेथ क्लारमैन ने निवेशकों को लिखा था। यह पत्र उस सबक की बात करता है, जो 2008-2009 के ग्लोबल फाइनेंशियल क्रैश के दौरान मार्केट के ज्यादातर लोगों ने या तो कभी सीखे ही नहीं या जिन्हें भुला दिया। ऐसे 20 सबक हैं। इसके अलावा 10 सबक वो भी हैं जो गलत किस्म की सीख हैं, यानी झूठे सबक हैं।
इस पत्र की कुछ बातें भारत के इक्विटी इन्वेस्टर्स के लिए खासतौर पर बड़े काम की लगती है, न केवल आज के संदर्भ में बल्कि हमेशा के लिए। एक सबक कि यह कहीं नहीं लिखा है कि निवेशकों को अपना हरेक डालर संभावित मुनाफे में बदलने के लिए जुट जाना चाहिए। किसी संकट के आने पर कंजरवेटिव रहना अहम होता है। इससे लंबे समय तक निवेश का रवैया तय करने में मदद मिलती है। यही वजह है कि डाइवर्सिफिकेशन और एसेट एलोकेशन जैसे सिद्धांत हरेक निवेश के लिए मायने रखते हैं।
अनिश्चितता और रिस्क एक ही नहीं हैं
अगर आपको रिस्क लेने से परहेज नहीं है और आप आक्रामक तरीके से निवेश करना चाहते हैं, तो याद रखने वाली बात है कि ऐसे इन्वेस्टर जो मार्केट की स्थितियों को नजरअंदाज कर, रिस्क वाली शैली ही हमेशा अपनाए रहते हैं, वो शायद ही कभी अच्छा कर पाते हैं। चाहे जो हो, कुछ निवेश दूसरों के मुकाबले ज्यादा सुरक्षित होते ही हैं, कुछ कम गिरते हैं और आसानी से रिकवर कर जाते हैं। सबसे जरूरी बात जो क्लारमैन कहते हैं, वो ये कि अगर आप तब तक इंतजार करते हैं जब उनकी जरूरत होगी, तब बहुत देर हो जाएगी। एक और सबक यह कि रिस्क निवेश में अंतर्निहित नहीं Market रिस्क क्या होता है? है। ये हमेशा अदा किए दाम के परिप्रेक्ष्य में होता है। अनिश्चितता और रिस्क एक ही नहीं है। अगर अनिश्चितता बहुत बड़ी है जैसे 2008 का क्रैश, तब सेक्यूरिटीज के दाम कहीं कम हो जाते हैं। ऐसे में इन्वेस्टमेंट करने में रिस्क कम हो जाता है।
जितना ऊंचा दाम, रिस्क उतना ज्यादा
इसी से जुड़ा एक और प्वाइंट है। आप तब जरूर खरीदें जब दाम नीचे जा रहे हों। जब दाम कम हो रहे होते हैं तो वाल्यूम कहीं ज्यादा होता है और खरीदारों के बीच प्रतिस्पर्धा भी काफी कम होती है।यहां, क्लारमैन एक प्रसिद्ध कहावत को आगे बढ़ा रहे हैं कि खरीदने का सही वक्त वही है जब सड़कों पर खून हो। किसी भी निवेश के लिए ये कहना सही ही रहेगा कि दाम जितना ऊंचा होगा, रिस्क उतना ज्यादा होगा। नतीजतन, प्राइस जितना कम होगा, उतना कम रिस्क। और जब मार्केट कमजोर पड़ने लगते हैं, तब रिस्क बढ़ने लगता है। मगर हेडलाइंस में हमेशा इसका उलटा ही क्यों दिखाई देता है? वो इसलिए, क्योंकि वो पूरी तरह से पंटर के लिए सोच रहे होते हैं न कि निवेशक के लिए।
अब एक गलत सबक की मिसाल, बुरी चीजें होती हैं, मगर बहुत बुरी चीजें नहीं होती। गिरावट में जरूर खरीदो, खासतौर पर सबसे कम क्वालिटी की सेक्यूरिटीज जब वो प्रेशर में हों, क्योंकि गिरावट जल्द ही उलट जाएगी। ये झूठा सबक, एक उलटबांसी की तरह है। ये आपको पिछले सबक पर बहुत ज्यादा विश्वास करने से सावधान करता है। हां, ये सही है कि कम दाम का मतलब है कम रिस्क। मगर ये सिर्फ उन एसेट्स के लिए सही है जो पहले से अच्छे एसेट हों। क्योंकि सस्ता कबाड़, कबाड़ ही रहता है।
बाजार ज़ोखिम
जोखिम यह है कि निवेश का मूल्य घट जाएगा। बाजार जोखिम को कभी-कभी व्यवस्थित जोखिम भी कहा जाता है, और यह एक विशिष्ट मुद्रा या वस्तु को संदर्भित करता है। बाजार जोखिम आम तौर पर वार्षिक शब्दों में, या तो प्रारंभिक मूल्य के अंश (8%) या पूर्ण संख्या (INR 9) के रूप में व्यक्त किया जाता है।
बाजार जोखिम के स्रोतों में मंदी, ब्याज दरों में बदलाव, राजनीतिक उथल-पुथल, प्राकृतिक आपदाएं और आतंकवादी हमले शामिल हैं। बाजार जोखिम को कम करने के लिए सबसे बुनियादी रणनीति विविधीकरण है। एक पोर्टफोलियो जो अच्छी तरह से विविधतापूर्ण होता है, उसमें विभिन्न उद्योगों की प्रतिभूतियां, जोखिम की अलग-अलग डिग्री वाले परिसंपत्ति वर्ग शामिल होते हैं। विविधीकरण जोखिम को पूरी तरह से नहीं हटाता है, लेकिन यह Market रिस्क क्या होता है? निश्चित रूप से जोखिम को सीमित करता है, क्योंकि पोर्टफोलियो में कई उपकरण प्रदर्शन कर रहे हैं।
मार्केट रिस्क क्या होता है, निवेश में कितने तरह के होते हैं जोखिम? यहां मिलेगी पूरी जानकारी
- Vijay Parmar
- Publish Date - September 30, 2021 / 11:07 AM IST
Pixabay - निवेशक को यह पता होना चाहिए कि 'मार्केट' में किसी भी तरह की सिक्यॉरिटी के साथ हमेशा एक निश्चित जोखिम मौजूद होता है.
Market Risk in Mutual Fund: आखिर क्यों बार-बार ये कहा जाता है और हमारे सुनने में आता है कि म्यूचुअल फंड में निवेश बाजार जोखिम के अधीन हैं? ये बाजार जोखिम (Market Risk) क्या हैं? एक जानकार और स्मार्ट निवेशक अपने निवेश से पहले सारी इंफॉर्मेशन कलेक्ट करता है और अपनी सिक्योरिटी की कीमत निर्धारित करने के लिए सभी प्रकार का होमवर्क करता है, फिर भी याद रखें कि अंततः तो मार्केट ही कीमत तय करता है. हरेक निवेशक को ये पता होना चाहिए कि ‘मार्केट’ में किसी भी तरह की सिक्योरिटी के साथ हमेशा एक निश्चित जोखिम मौजूद होता है. आपको ये भी पता होना चाहिए कि म्यूचुअल फंड इस जोखिम को यथासंभव कम करने के लिए ही डिजाइन किए गए हैं.
क्या है मार्केट रिस्क
म्यूचुअल फंड द्वारा विभिन्न सिक्योरिटीज में निवेश किया जाता हैं और सिक्योरिटीज की प्रकृति फंड के उद्देश्य पर निर्भर करती है.
उदाहरण के लिए, एक इक्विटी या ग्रोथ फंड द्वारा विभिन्न कंपनी के शेयरों में निवेश किया जाता हैं, वहीं लिक्विड फंड द्वारा सर्टिफिकेट्स ऑफ डिपॉडिट (CoD) और कमर्शियल पेपर (CP) में निवेश किया जाता है.
हालांकि, इन सभी सिक्योरिटीज का कारोबार मार्केट में किया जाता है. जैसे कंपनी के शेयर स्टॉक एक्सचेंज के माध्यम से खरीदे और बेचे जाते हैं, जो कैपिटल मार्केट का हिस्सा है.
इसी तरह, सरकारी प्रतिभूतियों जैसे ऋण उपकरणों में स्टॉक एक्सचेंज में एक मंच के माध्यम से या एनडीएस नामक विशेष प्रणालियों के माध्यम से कारोबार किया जा सकता है.
ये प्रतिभूतियों को खरीदने और बेचने के लिए बाजारों के रूप में काम करते हैं और खरीदार और विक्रेता में काफी विविधता होती है. यानी, खरीदने और बेचने की पूरी प्रक्रिया, और मूल्य निर्धारण ‘मार्केट’ द्वारा किया जाता है.
मार्केट की दिशा का अनुमान लगाना मुश्किल
किसी भी सिक्योरिटी की कीमत ‘मार्केट फॉर्स’ पर निर्भर होती है और बाजार किसी भी समाचार या गतिविधि के आधार पर अपनी दिशा तय करता है, इसलिए मार्केट की दिशा का अनुमान लगाना मुश्किल हो जाता है, शॉर्ट-टर्म के लिए किसी शेयर या सिक्यॉरिटी की कीमत की भविष्यवाणी करना असंभव है. मार्केट कि दिशा को प्रभावित करने में बहुत सारे कारक और खिलाड़ी हैं.
कंसंट्रेशन रिस्कः किसी एक सेक्टर या एक स्टॉक या एक एसेट में पूरा पैसा लगाने से ये रिस्क बढ़ जाता है.
उपायः कंसंट्रेशन रिस्क से दूर रहने के लिए आपको डाइवर्सिफिकेशन का हथियार आजमाना चाहिए.
इंटरेस्ट रेट और इंफ्लेशन रिस्कः साइलेंट किलर कहा जाने वाला ये रिस्क आपके निवेश के मूल्य पर प्रभाव डालता है. आपके रिटर्न के मुकाबले इंफ्लेशन की दर ज्यादा हो, तो आपको नेगेटिव रिटर्न मिलता हैं और नुकसान होता है.
मार्क-टू-मार्केट रिस्क क्या होता है?
किसी फंड में किस हद तक मार्क-टू-मार्केट रिस्क है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उसके फंड पोर्टफोलियो में किस तरह की प्रतिभूतियां हैं.
2. जब ब्याज दरें गिरती हैं तो खरीदी जा चुकी डेट प्रतिभूतियों की वैल्यू बढ़ती है. ब्याज दर और डेट Market रिस्क क्या होता है? प्रतिभूतियों के मूल्य में उलटा रिश्ता होता है. दरअसल, होता यह है कि ब्याज दर घटने पर पुराने डेट इंस्ट्रूमेंट की मांग बढ़ती है. कारण है कि इन पर ज्यादा ब्याज होता है. इससे इनके मूल्यों में तेजी आती है. इससे मार्क-टू-मार्केट गेन होता है.
3. स्थिति पलटने पर यानी ब्याज दरों के बढ़ने पर डेट सिक्योरिटी की वैल्यू घटती है. दरअसल, ब्याज दर बढ़ने पर जारी हो चुकी डेट सिक्योरिटीज की मांग घटती है क्योंकि इन पर कम ब्याज होता है. इससे मार्क-टू-मार्केट लॉस होता है.
तो फिर ये क्यों कहते हैं कि म्यूचुअल फंड बाज़ार जोखिम के अधीन हैं?
ये सभी प्रतिभूतियां हालांकि 'बाज़ार' में ट्रेड होती हैं। कंपनी के शेयर स्टॉक एक्सचेंज द्वारा खरीदे व बेचे जाते हैं, जो पूंजी बाज़ार का हिस्सा होते हैं। इसी तरह से ऋण प्रपत्र जैसे सरकारी प्रतिभूतियां, स्टॉक एक्सचेंज या NDS कहे जाने वाले विशेषज्ञता सिस्टम के माध्यम से ट्रेड की जा सकती हैं। ये प्रतिभूतियों की खरीदारी व बिक्री के लिए बाज़ार की तरह काम करते हैं, जिसमें खरीदार और बेचने वाले विविध प्रकार के होते हैं। इसलिए खरीद व बिक्री की पूरी प्रक्रिया और मूल्य 'बाज़ार' द्वारा निर्धारित होती है।
किसी प्रतिभूति का मूल्य ‘बाज़ार शक्तियों’ पर निर्भर करता है और बाज़ार किसी समाचार या घटना पर, जिसमें कि बाज़ार की दिशा की पूर्व-जानकारी कठिन होती है, छोटी अवधि में किसी शेयर या प्रतिभूति के मूल्य का पूर्वानुमान असंभव होता है। इसकी दिशा को प्रभावित करने वाले बहुत से कारक व खिलाड़ी होते हैं।
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