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Forex: क्यों भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में आ सकती है और गिरावट, जानें इसके पीछे क्या हो सकता है कारण?

India Forex: भारतीय रिजर्व बैंक ने अपने विदेशी मुद्रा भंडार को करीब 100 अरब डॉलर कम किया है और ये 2 साल पहले के निचले स्तर पर आ गया है. जानें इसके पीछे बड़ा कारण क्या रहा है.

By: ABP Live | Updated at : 29 Sep 2022 08:21 AM (IST)

Edited By: Meenakshi

अमेरिकी डॉलर (फाइल फोटो)

India Forex Reserve: भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार गिरावट जारी है और इसमें अधिक कमी आने की संभावना है. इसके तहत फॉरेक्स रिजर्व साल 2022 के आखिर तक यानी पिछले 2 सालों में अपने सबसे निचले स्तर तक गिर सकता है. ऐसा एक रॉयटर्स पोल में बताया गया है और आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा इसके पीछे कारण ये है कि भारतीय रिजर्व बैंक ने डॉलर की मजबूत वृद्धि से रुपये को बचाने के लिए प्रयासों के तहत विदेशी मुद्रा भंडार में कटौती की है.

विदेशी मुद्रा भंडार में 100 अरब डॉलर की कटौती की गई
भारतीय रिजर्व बैंक ने अपने विदेशी मुद्रा भंडार को लगभग 100 अरब डॉलर घटाकर 545 अरब डॉलर कर दिया है. ये एक साल पहले 642 अरब डॉलर के अपने शिखर पर था. ऐसा रुपये की लगातार कमजोरी को काबू में रखने के लिए किया गया है पर रुपये को आरबीआई रिकॉर्ड निचले स्तर तक जाने से रोक नहीं पाया है. भारतीय करेंसी डॉलर के मुकाबले 82 रुपये प्रति डॉलर के लेवल तक बढ़ रही है.

रॉयटर्स के पोल के मुताबिक सामने आया पूर्वानुमान
रॉयटर्स के एक पोल के मुताबिक अनुमान लगाया गया है कि इस साल के आखिर तक विदेशी मुद्रा भंडा और 23 अरब डॉलर कम हो जाएगा जिसके बाद ये 523 अरब डॉलर पर आ जाएगा. ये 26-27 सितंबर तक के पूर्वानुमान के मुताबिक है. इसमें 16 अर्थशास्त्रियों ने अपनी राय बताई है. अगर विदेशी मुद्रा भंडार 523 अरब डॉलर तक गिरता है तो ये पिछले 2 सालों का सबसे निचला स्तर होगा. इसमें 500-540 अरब डॉलर के बीच में रहने का पूर्वानुमान जताया गया है.

साल 2008 की वैश्विक आर्थिक मंदी के समय जैसा हो सकता है हाल
इन पूर्वानुमान से ये अंदाजा लगाया जा रहा है कि आरबीआई अपने विदेशी मुद्रा भंडार को कम करके साल 2008 के लेवल तक ले आएगा जो वैश्विक आर्थिक संकट के समय के समान होगा. साल 2008 में ग्लोबल आर्थिक मंदी के दौर में विदेशी मुद्रा भंडार में 20 फीसदी तक की गिरावट देखी गई थी. रिपोर्ट्स के मुताबिक बताया जा रहा है कि साल 2013
में जो स्थिति आई थी वो एक बार फिर देखने को मिल सकती है जब अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने सरकारी बॉन्ड की खरीदारी में अचानक कटौती कर दी थी.

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Published at : 29 Sep 2022 08:10 AM (IST) Tags: Rupee dollar forex reserve foreign currency INdia RBI Reuters Poll हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News पर। सबसे आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: Business News in Hindi

डॉलर के मुकाबले फिर गिरा रुपया… अमेरिकी डॉलर आखिर इतना पावरफुल क्यों है, इसकी वजह जान लीजिए

Why American dollar is powerful: रुपये में मंगलवार को भी गिरावट जारी रही. डॉलर के मुकाबले रुपया 7 पैसे की गिरावट के साथ 80.05 के स्तर पर खुला. सोमवार को 16 पैसे की गिरावट दर्ज की गई थी. जानिए, आखिर अमेरिकी डॉलर इतना मजबूत क्यों है

रुपये में मंगलवार को भी गिरावट जारी रही. डॉलर (Dollar) के मुकाबले रुपया 7 पैसे की गिरावट के साथ 80.05 के स्तर पर खुला. सोमवार को 16 पैसे की गिरावट दर्ज की गई थी. कमजोर होता रुपया और मजबूत स्थिति में मौजूद डॉलर (Dollar vs Rupees), यह सवाल पैदा करता है कि आखिर अमेरिकी डॉलर इतना मजबूत क्‍यों है और दुनियाभर में दूसरी करंसी की तुलना अमेरिकी डॉलर से क्‍यों की जाती है. अमेरिकी डॉलर (American Dollar) के मजबूत होने की कई वजह हैं. जानिए, इनके बारे में…

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प्र‍िंंस चार्ल्‍स ने 2013 में लादेन के पर‍िवार से दान स्‍वीकार करने पर सहमत‍ि जताई थी.

प्र‍िंंस चार्ल्‍स ने 2013 में लादेन के पर‍िवार से दान स्‍वीकार करने पर सहमत‍ि जताई थी.

इतना ही नहीं, दुनिया में सबसे ज्‍यादा सोना अमेरिका में निकलता है. ज्‍यादातर देश सोना खरीदने के लिए अमेरिका के सम्‍पर्क करते हैं. अमेरिका हमेशा उन देशों से भुगतान डॉलर में करने के लिए कहता है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, वर्तमान में 100 अमेरिकी डॉलर के करीब 900 करोड़ नोट चलन में हैं. इनमें से दो तिहाई दूसरे देशों में इस्‍तेमाल हो रहे हैं. इसलिए इसे पावरफुल करंसी कहा जाता है.

इतना ही नहीं, दुनिया में सबसे ज्‍यादा सोना अमेरिका में निकलता है. ज्‍यादातर देश सोना खरीदने के लिए अमेरिका के सम्‍पर्क करते हैं. अमेरिका हमेशा उन देशों से भुगतान डॉलर में करने के लिए कहता है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, वर्तमान में 100 अमेरिकी डॉलर के करीब 900 करोड़ नोट चलन में हैं. इनमें से दो तिहाई दूसरे देशों में इस्‍तेमाल हो रहे हैं. इसलिए इसे पावरफुल करंसी कहा जाता है.

सिर्फ हथ‍ियार बनाने वाली ही नहीं, ईरान, इराक और अरब देशों में कच्‍चा तेल निकालने वाली कंपनियां भी ज्‍यादातर अमेरिका की ही हैं. ये सभी कंपनियां डॉलर में भुगतान करने को कहती हैं. यही वजह है कि डॉलर काफी पावरफुल और दुनिया की अंतरराष्‍ट्रीय करंसी कहा गया है.

सिर्फ हथ‍ियार बनाने वाली ही नहीं, ईरान, इराक और अरब देशों में कच्‍चा तेल निकालने वाली कंपनियां भी ज्‍यादातर अमेरिका की ही हैं. ये सभी कंपनियां डॉलर में भुगतान करने को कहती हैं. यही वजह है कि डॉलर काफी पावरफुल और दुनिया की अंतरराष्‍ट्रीय करंसी कहा गया है.

दुनिया में पहली बार साल 1914 में फेडरल रिजर्व बैंक ने अमेरिकी डॉलर को छापा था. अगले 60 सालों के अंदर ही यह अंतरराष्‍ट्रीय मुद्रा बन गया. अमेरिकी डॉलर की नींव उस समय पड़ी जब ब्र‍िटेन को पीछे छोड़ते हुए अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था बनने की ओर तेजी से बढ़ रहा था.

दुनिया में पहली बार साल 1914 में फेडरल रिजर्व बैंक ने अमेरिकी डॉलर को छापा था. अगले 60 सालों के अंदर ही यह अंतरराष्‍ट्रीय मुद्रा बन गया. अमेरिकी डॉलर की नींव उस समय पड़ी जब ब्र‍िटेन को पीछे छोड़ते हुए अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था बनने की ओर तेजी से बढ़ रहा था.

डॉलर के मुकाबले रुपये में आया उछाल, समझें क्या है इसकी वजह

रुपया गुरुवार को आठ पैसे के सुधार के साथ 81.22 (अस्थायी) प्रति डॉलर पर बंद हुआ है. ब्याज दरों में वृद्धि की रफ्तार धीमी करने के संकेत के बाद डॉलर के कमजोर होने के साथ रुपये में मजबूती आई है.

डॉलर के मुकाबले रुपये में आया उछाल, समझें क्या है इसकी वजह

अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले रुपया गुरुवार को आठ पैसे के सुधार के साथ 81.22 (अस्थायी) प्रति डॉलर पर बंद हुआ है. अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व के अध्यक्ष जेरोम पॉवेल के ब्याज दरों में वृद्धि की रफ्तार धीमी करने के संकेत के बाद डॉलर के कमजोर होने के साथ रुपये में मजबूती आई है. बाजार सूत्रों ने कहा कि विदेशी पूंजी प्रवाह बढ़ने और घरेलू शेयर बाजार में तेजी आने के बीच निवेशकों की कारोबारी धारणा मजबूत हुई है.

अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया 81.08 पर खुला. कारोबार के दौरान यह 80.98 के ऊंचे स्तर और 81.32 के निचले स्तर तक गया. आखिर में रुपया अपने पिछले बंद भाव आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा के मुकाबले आठ पैसे की तेजी के साथ 81.22 प्रति डॉलर पर बंद हुआ.

अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले रुपये का पिछला बंद भाव 81.30 प्रति डॉलर रहा था. इस बीच दुनिया की छह प्रमुख मुद्राओं की तुलना में डॉलर की कमजोरी या मजबूती को दिखाने वाला डॉलर सूचकांक 0.41 फीसदी की गिरावट के साथ 105.51 पर रह गया है. वैश्विक तेल मानक ब्रेंट क्रूड वायदा 0.10 फीसदी घटकर 86.88 डॉलर प्रति बैरल रह गया है. वहीं, बीएसई का 30 शेयरों वाला सेंसेक्स 184.54 अंक बढ़कर 63,284.19 अंक पर बंद हुआ.

शेयर बाजार के आंकड़ों के मुताबिक, विदेशी संस्थागत निवेशक (FII) पूंजी बाजार में शुद्ध लिवाल रहे और उन्होंने बुधवार को 9,010.41 करोड़ रुपये मूल्य के शेयर खरीदे.

आम आदमी पर क्या होगा असर?

आपको बता दें कि रुपये में तेजी और गिरावट का असर आम जन जीवन पर देखा जा सकता है. हाल के दिनों में महंगाई दर के रूप में यह देखा भी जा रहा है. रुपये में कमजोरी से अंतररराष्ट्रीय बाजार से आयात की गई कमोडिटी में किसी भी कमी का असर घट जाती है. इस वजह से कच्चे तेल में गिरावट का फायदा पाने में और समय लगता है, क्योंकि कीमतों में गिरावट के बीच रुपये में कमजोरी से आयात बिल बढ़ जाता है और इससे सरकारी खजाने पर बोझ बना रहता है.

वहीं, आम आदमी को फायदा उस स्थिति में मिलता है, जब वैश्विक बाजार में कमोडिटी के दाम गिरता है और रुपया डॉलर के मुकाबले मजबूत स्थिति में आता है.

रुपये की ‘रिकॉर्ड गिरावट’ से बहुत चिंतित होने की जरूरत क्यों आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा नहीं है

‘मजबूत मुद्रा’ की नीति बनाने वाले यह भूल जाते हैं कि दीर्घकालिक विकास की सफलता का रेकॉर्ड रखने वाले प्रायः हर देश ने निर्यात बाज़ार को जीतने के लिए ‘कमजोर मुद्रा’ की नीति अपनाई

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जब पी. चिदंबरम वित्त मंत्री थे तब अपनी पतली चमड़ी के लिए मशहूर नेता अखबारों की ये सुर्खियां पढ़कर आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा उत्तेजित हुआ करते थे— ‘रुपये ने नयी गहराई को छूआ’, या ‘रेकॉर्ड गिरावट दर्ज की’. मुद्रा की गिरती कीमत को वे अपने कामकाज के नतीजे के रूप में देखते थे लेकिन इन सुर्खियों में उन्हें एक मुद्दा नज़र आता था कि रुपये जैसी आम तौर पर कमजोर मुद्रा अगर गिर रही है तो हरेक गिरावट (चाहे वह कुछ पैसे की क्यों न हो) ‘रेकॉर्ड गिरावट’ ही होगी. लेकिन सुर्खियां और मंत्री की प्रतिक्रिया, दोनों कमजोर मुद्रा के प्रति पूर्वाग्रह को उजागर करती है. वास्तव में, मुद्रा की कीमत में वृद्धि से ज्यादा उसमें गिरावट पर लोग ज्यादा ध्यान देते हैं.

यह इतिहास क्यों प्रासंगिक है? क्योंकि सुर्खियां अमेरिकी डॉलर के मुक़ाबले रुपये की गिरावट की बात करती हैं. अखबार यह नहीं बताते (जिसे वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन ने बृहस्पतिवार को रेखांकित किया) कि सभी देशों की मुद्राओं की कीमत डॉलर के मुक़ाबले गिर रही है और रुपये में बाकी कई के मुक़ाबले कम गिरावट आई है— 2022 के छह महीने में 6 फीसदी की. इसकी तुलना में यूरो में 11.6 फीसदी की, येन में 19.2 फीसदी की और पाउंड में 13.2 फीसदी की गिरावट आई है. चीन की युआन में 3.6 फीसदी की ही गिरावट आई. लेकिन ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, और बेशक पकिस्तना की मुद्राओं में ज्यादा गिरावट आई. इसलिए आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा सही सुर्खी तो यह होती कि लगभग सभी मुद्राओं के मुक़ाबले रुपये की कीमत बढ़ी है. लेकिन समाचार जगत पिछड़ रहा है.

क्या इससे फर्क पड़ेगा? जवाब हैं, हां क्योंकि इससे नीति गलत दिशा पकड़ लेती है. उदाहरण के लिए, नरेंद्र मोदी की सरकार ‘मजबूत मुद्रा’ की नीति के पक्ष में पूर्वाग्रह रखते हुए सत्ता में आई थी.

ऐसी नीति बनाने वाले भूल जाते हैं कि सफल विकास का दीर्घकालिक रेकॉर्ड रखने वाली लगभग हरेक देश (जापान और चीन इसके आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा सबसे अच्छे उदाहरण हैं) ने निर्यात बाज़ार को जीतने के लिए ‘कमजोर’ मुद्रा’ की नीति चलाई है. वजह सीधी सी है— आप विकास की जिस अवस्था में हैं उसमें तकनीक या उत्पाद की गुणवत्ता के मामले में होड़ नहीं ले सकते इसलिए अगर आप मुख्यतः कीमत के मामले में प्रतिस्पर्द्धा कर रहे हैं तो कमजोर मुद्रा मदद करेगी. समय के साथ निर्यात गति पकड़ता है और अर्थव्यवस्था विदेश में सक्षम होती है तो मुद्रा मजबूत होने लगती है.

देश और मुद्रा के बीच कारण-परिणाम वाले संबंध को कई लोग गलत ढंग से ले लेते हैं. मजबूत होती अर्थव्यवस्था को मजबूत होती मुद्रा मिलती है, जिसे पूंजी की आवक से मदद मिलती है. कार्य-कारण संबंध उलटी तरफ से नहीं चलता— कमजोर या ऊंची मुद्रास्फीति वाली अर्थव्यवस्था की मुद्रा को कृत्रिम ताकत देने से या उसे चढ़ाकर रखने से वह मजबूत नहीं बन जाती. इस तरह की नीति टिकाऊ नहीं होती, इससे पूंजी बाहर जा सकती है.

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जहां तक व्यापार की बात है, चार से ज्यादा दशकों से (नेहरू के स्वावलंबन वाले दौर समेत) भारत ने रुपये को चढ़ा कर रखा. इसलिए जबकि पूर्वी एशिया के देशों ने अपना व्यापार बढ़ाया, विश्व बाजार में आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा भारत का हिस्सा 1947 में 2.5 प्रतिशत से 80 फीसदी गिरकर 0.5 फीसदी रह गया.

दो विरोधी तुलनाओं से बात साफ हो जाएगी. भारतीय रुपया आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा पाकिस्तानी रुपये (अब एक रुपया 205 डॉलर के बराबर है) से इसलिए ज्यादा मजबूत रहा क्योंकि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था का प्रबंधन बेहद गड़बड़ रहा. स्केल के दूसरे छोर पर थाई मुद्रा बाह्त कभी रुपये के 10 फीसदी प्रीमियम पर मिलती थी मगर आज वह ~ 2.20 के बराबर है.

मजबूत मुद्रा के बावजूद थाईलैंड ने अपना वार्षिक व्यापार सरप्लस कायम रखा है. भारत का व्यापार और मुद्रस्फीति का रेकॉर्ड 1991 में उसकी मुद्रा और दूसरी नीतियों को बाजार के आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा अनुकूल बनाने के बाद बेहतर हुआ है। इसके बावजूद व्यापार घाटा अधिकतर वर्षों में बना रहा बावजूद इसके कि रुपये की कीमत गिरती रही. जाहिर है, अब तक के आर्थिक सुधार अपर्याप्त रहे हैं. भारत के नेतागण अगर मजबूत रुपया चाहते हैं तो उन्हें अर्थव्यवस्था, का बेहतर प्रबंधन करना पड़ेगा. मुद्रस्फीति पर लगाम लगानी होगी, उत्पादकता बढ़ानी होगी, आदि-आदि. रिजर्व बैंक रुपये को सहारा देने के लिए अरबों डॉलर खर्च करे, यह रास्ता गलत है.

तथ्य यह है कि हाल के दिनों को छोड़कर भारत में मुद्रास्फीति इसके महत्व वाले बाज़ारों में मुद्रास्फीति से ज्यादा रही है. जाहिर है, रुपये की घरेलू क्रय शक्ति की कमजोरी नीची विनिमय आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा दर में परिलक्षित होगी. कामकाज के पैमाने को बदलिए, तभी रुपया रिजर्व बैंक के हस्तक्षेप के बिना अपने रंग में आएगा.

रुपये के कमजोर या मजबूत होने का मतलब क्या है?

अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी इसलिए माना जाता है, क्योंकि दुनिया के अधिकतर देश अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में इसी का प्रयोग करते हैं

रुपये के कमजोर या मजबूत होने का मतलब क्या है?

विदेशी मुद्रा भंडार के घटने और बढ़ने से ही उस देश की मुद्रा पर असर पड़ता है. अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी का रुतबा हासिल है. इसका मतलब है कि निर्यात की जाने वाली ज्यादातर चीजों का मूल्य डॉलर में चुकाया जाता है. यही वजह है कि डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत से पता चलता है कि भारतीय मुद्रा मजबूत है या कमजोर.

अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी इसलिए माना जाता है, क्योंकि दुनिया के अधिकतर देश अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में इसी का प्रयोग करते हैं. यह अधिकतर जगह पर आसानी से स्वीकार्य है.

इसे एक उदाहरण से समझें
अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में भारत के ज्यादातर बिजनेस डॉलर में होते हैं. आप अपनी जरूरत का कच्चा तेल (क्रूड), खाद्य पदार्थ (दाल, खाद्य तेल ) और इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम अधिक मात्रा में आयात करेंगे तो आपको ज्यादा डॉलर खर्च करने पड़ेंगे. आपको सामान तो खरीदने में मदद मिलेगी, लेकिन आपका मुद्राभंडार घट जाएगा.

मान लें कि हम अमेरिका से कुछ कारोबार कर रहे हैं. अमेरिका के पास 68,000 रुपए हैं और हमारे पास 1000 डॉलर. अगर आज डॉलर का भाव 68 रुपये है तो दोनों के पास फिलहाल बराबर रकम है. अब अगर हमें अमेरिका से भारत में कोई ऐसी चीज मंगानी है, जिसका भाव हमारी करेंसी के हिसाब से 6,800 रुपये है तो हमें इसके लिए 100 डॉलर चुकाने होंगे.

अब हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में सिर्फ 900 डॉलर बचे हैं. अमेरिका के पास 74,800 रुपये. इस हिसाब से अमेरिका के विदेशी मुद्रा भंडार में भारत के जो 68,000 रुपए थे, वो तो हैं ही, लेकिन भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में पड़े 100 डॉलर भी उसके पास पहुंच गए.

अगर भारत इतनी ही राशि यानी 100 डॉलर का सामान अमेरिका को दे देगा तो उसकी स्थिति ठीक हो जाएगी. यह स्थिति जब बड़े पैमाने पर होती है तो हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में मौजूद करेंसी में कमजोरी आती है. इस समय अगर हम अंतर्राष्ट्रीय बाजार से डॉलर खरीदना चाहते हैं, तो हमें उसके लिए अधिक रुपये खर्च करने पड़ते हैं.

कौन करता है मदद?
इस तरह की स्थितियों में देश का केंद्रीय बैंक RBI अपने भंडार और आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा विदेश से खरीदकर बाजार में डॉलर की आपूर्ति सुनिश्चित करता है.

आप पर क्या असर?
भारत अपनी जरूरत का करीब 80% पेट्रोलियम उत्पाद आयात करता है. रुपये में गिरावट से पेट्रोलियम उत्पादों का आयात महंगा हो जाएगा. इस वजह से तेल कंपनियां पेट्रोल-डीजल के भाव बढ़ा सकती हैं.

डीजल के दाम बढ़ने से माल ढुलाई बढ़ जाएगी, जिसके चलते महंगाई बढ़ सकती है. इसके अलावा, भारत बड़े पैमाने पर खाद्य तेलों और दालों का भी आयात करता है. रुपये की कमजोरी से घरेलू बाजार में खाद्य तेलों और दालों की कीमतें बढ़ सकती हैं.

यह है सीधा असर
एक अनुमान के मुताबिक डॉलर के भाव में एक रुपये की वृद्धि से तेल कंपनियों पर 8,000 करोड़ रुपये का बोझ पड़ता है. इससे उन्हें पेट्रोल और डीजल के भाव बढ़ाने पर मजबूर होना पड़ता है. पेट्रोलियम उत्पाद की कीमतों में 10 फीसदी वृद्धि से महंगाई करीब 0.8 फीसदी बढ़ जाती है. इसका सीधा असर खाने-पीने और परिवहन लागत पर पड़ता है.

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