दिल्ली की इस हवा में सांस लेना खतरनाक, इन 5 सवालों से समझें क्यों साइलेंट किलर है प्रदूषण
डॉ. गुलेरिया कहते हैं, 'हम लोग बरसों से फसल की पराली जलाने के बारे में बात कर रहे हैं कि इसके कई सारे समाधान हो सकते हैं, लेकिन किसानों ने इन्हें स्वीकार किया ही नहीं। ऐसे में हम क्या कर सकते हैं? हम इसे कैसे प्रोत्साहित करें कि किसान पराली को ना जलाने पर ज्यादा फायदे में रहें? उसके बाद किसानों को इस बारे में जागरूक किए जाने का मुद्दा है।'
दिल्ली की इस हवा में सांस लेना खतरनाक, इन 5 सवालों से समझें क्यों साइलेंट किलर है प्रदूषण
सवाल 1: दिल्ली में वायु प्रदूषण के संकट ने हमारी जिंदगी को किस तरह प्रभावित किया है?
जवाब: हमलोग दो चीजें देख रहे हैं। पहला- बच्चों और बुजुर्गों पर तत्काल पड़ने वाला प्रभाव, जिससे उनके अस्पताल आने की फ्रीक्वेंसी बढ़ गई है। इसके अलावा, मैं ऐसे लोगों को जानता हूं जो इस वक्त दिल्ली छोड़कर देश के अन्य हिस्सों में चले जाते हैं, जैसे कि साउथ इंडिया की तरफ क्योंकि वहां हवा की गुणवत्ता बेहतर है। आंकड़े बताते हैं कि साल के इस दौरान हार्ट अटैक के मामले बढ़ जाते हैं क्योंकि पीएम 2.5 और अन्य बेहद सूक्ष्म पार्टिकुलेट मैटर के कारण रक्त वाहिकाओं (ब्लड वेसल्स) में सूजन आ जाती है।
सवाल 2: आप इस गंभीर वायु प्रदूषण के दूरगामी परिणाम क्या देखते हैं?
जवाब:हमारे अध्ययनों से पता चलता है कि अगर कोविड के एक साल को छोड़ दिया जाए तो एक्यूआई खराब, बेहद खराब या गंभीर श्रेणी में ही रहता है। लीवरेज खतरनाक क्यों है इसलिए देश के उत्तर मैदानी इलाकों में रहने वाले लोग लगातार ऐसी हवा में सांस ले रहे हैं, जो उनके पूरे स्वास्थ्य पर असर डालना लीवरेज खतरनाक क्यों है शुरू करता है। यहां पर हार्ट अटैक और सांस की क्रॉनिक बीमारियों की आशंका ज्यादा है। वहीं, यह बच्चों में लंग्स (फेफड़ों) के विकास को कुंद कर देता है। फेफड़ों का विकास 20 साल की उम्र तक होता है, लेकिन अगर आप खराब हवा में सांस लेते रहें तो इससे फेफड़ों की क्षमता उतनी नहीं रह जाती, जितनी होनी चाहिए। स्टडीज से पता चला है कि दिल्ली के बच्चों की फेफड़ों की क्षमता साउथ इंडिया के बच्चों की तुलना में कम हो गई है। ऐसी स्टडीज हैं जो कहती हैं कि दिल्ली में रहने से दिल की बीमारियों और हाई कोलेस्ट्रॉल का खतरा है। पहले प्रदूषण के असर का फोकस सिर्फ हार्ट और लंग्स पर था, लेकिन अब यह भी साबित हो चुका है कि प्रदूषण के पार्टिकल्स हमारे खून में मिलकर शरीर के दूसरे अंगों में भी पहुंच जाते हैं जिससे स्ट्रोक, डिमेंशिया समेत अन्य बीमारियां होती हैं।
सवाल 3: तो, क्या हम उस स्टेज पर पहुंच गए हैं जहां हम प्रदूषण का संबंध सीधे तौर पर मौतों से जोड़ सकते हैं?
जवाब: वायु प्रदूषण एक 'साइलेंट किलर' है. मौतों के दूसरे फैक्टर्स का तो हम परीक्षण कर सकते हैं, मगर प्रदूषण का नहीं। प्रदूषण प्रमुख बीमारियों की स्थिति को और खराब कर देता है। अगर आपको पहले से श्वसन तंत्र से जुड़ी दिक्कत है और आप प्रदूषण का शिकार होते हैं, तो सांसों से जुड़ी समस्या और गहरा सकती है। यह लंग्स कैंसर और हार्ट अटैक का भी कारण बन सकता है, लेकिन इनके बीच संबंध के परीक्षण की जरूरत है।
सवाल 4: पिछले तमाम वर्षों से प्रदूषण की समस्या के हल के लिए नीतियों और उपायों के बारे में काफी कुछ कहा गया है, लेकिन अब तक इसका कोई सकारात्मक परिणाम नहीं आया है। आपके हिसाब से ये नीतियां सफल क्यों नहीं हुईं?
जवाब: हमें सभी हितधारकों को साथ लेने की जरूरत है। हमें टारगेट लीवरेज खतरनाक क्यों है तय कर रणनीति बनानी होगी कि लोगों की क्या चिंताएं हैं। दूसरा, स्थायी समाधान पर काम किया जाना चाहिए जिसमें सभी सेक्टरों का ध्यान रखना लीवरेज खतरनाक क्यों है होगा और उत्तर भारत के मैदानी इलाकों के मुद्दों को भी समझना होगा। यह एक लैंडलॉक (भूमिबंद) इलाका है, इसलिए जब भी वायु प्रदूषण गंभीर होता है तो स्मॉग ग्राउंड लेवल पर आकर स्थिर हो जाता है। तटीय क्षेत्रों के उलट इस क्षेत्र में मौसम पर काफी कुछ निर्भर करता है, इसलिए हमें इस पर मुखरता के साथ काम करना होगा। इसके अलावा, योजनाओं का फॉलोअप जरूरी है ताकि एक योजना काम ना करे तो हम वैकल्पिक रास्ते तलाशें।
सवाल 5: प्रदूषण नियंत्रण के लिए दिल्ली सरकार द्वारा उठाए गए कदमों पर आपके क्या विचार हैं, जैसे- स्मॉग टावर्स, पानी का छिड़काव, गाड़ियों की आवाजाही पर प्रतिबंध लगाना वगैरह?
जवाब: ये उपाय कितने प्रभावी हैं, इसका पता लगाने के लिए हमें आंकड़ों की आवश्यकता है, क्योंकि हो सकता है कि इनमें से कुछ असरदायक ना हों। चाहे तात्कालिक समाधान हो या फिर दीर्घकालिक. इसका विश्लेषण होना चाहिए कि ये काम कर रहे हैं नहीं और क्या ये टिकाऊ और कम खर्चीले हैं? उसके बाद ही इन्हें लागू किया जाना चाहिए, अन्यथा दूसरे विकल्पों को आजमाना चाहिए।
वो चीज जो पीएम 2.5 से कहीं ज्यादा खतरनाक है, प्रदूषण मापने में सरकारें क्यों नहीं लेतीं इनका नाम
पिछले कई दिनों में हमारे देश में प्रदूषण को लेकर बहुत शोर मचा है। अक्सर हवा खराब होने और सांस लेना दूभर होने की शिकायतें मिल रही हैं। इस दौरान एक शब्द का इस्तेमाल बार-बार किया जा रहा है, जिसे आप सभी ने सुना ही होगा। वो है PM 2.5 (पार्टिकुलेट मैटर 2.5)।
ये वो छोटे-छोटे कण होते हैं, जिनकी वजह से प्रदूषण होता है। इनका आकार 2.5 माइक्रोमीटर होता है। कहा जाता है कि ये हमारे फेफड़ों से होते हुए हमारे खून लीवरेज खतरनाक क्यों है की नली तक पहुंच जाते हैं। लेकिन, हकीकत ये है कि इनमें से जयादातर प्रदूषण के कण फेफड़ों की छननी के पार नहीं जा पाते।
हमें ये भी बताया जा रहा है कि नाइट्रस ऑक्साइड गैसें, जिसमें नाइट्रोजन ऑक्साइड भी शामिल है, वो ही शहरों में वायु प्रदूषण के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। लेकिन, रिसर्च बताती हैं कि यूरोप में प्रदूषण से होने वाली मौतों में से केवल 14 प्रतिशत के लिए ही नाइट्रस ऑक्साइड गैसें जिम्मेदार होती हैं।
Diabetes Control: कितना ब्लड शुगर होता है खतरनाक? जानिये- Blood Sugar को कैसे तुरंत करें कंट्रोल
शुगर को कंट्रोल करने के लिए हर दो घंटे में लीवरेज खतरनाक क्यों है खाएं। डाइट में साबुत अनाज,फल, सब्जियां और प्रोटीन का भरपूर सेवन करें।
अगर व्यक्ति के शरीर में ब्लड शुगर लेवल की मात्रा 200 से 400 लीवरेज खतरनाक क्यों है mg/dl के बीच है तो यह स्तर खतरनाक माना जाता है। photo-freepik
डायबिटीज एक ऐसी बीमारी है जिसे कंट्रोल में रखना बेहद जरूरी है। डायबिटीज एक क्रॉनिक बीमारी है जो एक बार हो जाए तो तमाम उम्र साथ रहती है। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ़ मेडिसिन द्वारा किये गए एक अध्ययन के मुताबिक महिलाओं की तुलना में ये बीमारी पुरुषों को ज्यादा है। बिगड़ता लाइफस्टाइल और खराब डाइट इस बीमारी की सबसे बड़ी वजह है। डायबिटीज के हब भारत में शुगर के मरीजों की तादाद लगातार बढ़ रही है। WHO की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2025 तक भारत की लगभग एक-तिहाई आबादी डायबिटीज का शिकार हो सकती है।
डायबिटीज को कंट्रोल नहीं किया जाए तो उसका असर दिल, किडनी और आंखों पर पड़ सकता है। डायबिटीज के बढ़ने को हाइपरग्लेसेमिया कहते है। आमतौर पर शुगर तब बढ़ती है जब मरीज दवाई का सेवन नहीं करता, तनाव में रहता है और डाइट में सामान्य से अधिक कार्बोहाइड्रेट का सेवन करता हैं।
स्टेरॉयड, बीटा-ब्लॉकर्स, गर्भनिरोधक गोलियां और कई मानसिक स्वास्थ्य की दवाएं भी ब्लड में शुगर का स्तर बढ़ा सकती हैं। ब्लड शुगर का बढ़ना सेहत के लिए बेहद खतरनाक हो सकता है। ये स्ट्रोक का कारण बन सकता है। शुगर बढ़ने का असर लंग्स और किडनी को भी प्रभावित कर सकता है। आइए जानते हैं कि कितना ब्लड शुगर खतरनाक होता है। जानते हैं कुछ उपाय जो Blood Sugar को कंट्रोल करें।
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Diabetes Control: डायबिटीज में मूंगफली खाना चाहिए या नहीं? इसका सेवन करने से ब्लड शुगर पर कैसा असर पड़ता है एक्सपर्ट से जानिए
- खाली पेट ब्लड में शुगर का स्तर 80-130 mg/dL होना चाहिए।
- नाश्ता करने के एक-दो घंटे बाद 180 mg/dL होना चाहिए
कितना ब्लड शुगर लेवल होता है खतरनाक? अगर व्यक्ति के शरीर में ब्लड शुगर लेवल की मात्रा लीवरेज खतरनाक क्यों है लीवरेज खतरनाक क्यों है 200 से 400 mg/dl के बीच है तो यह स्तर खतरनाक माना जाता है। इस स्थिति को हाईपोग्लाइसीमिया कहा जाता है। इससे दिल का दौरा और ब्रेन स्ट्रोक, मल्टीपल ऑर्गन फेलियर भी हो सकता है।
Delhi Weather Update: 48 डिग्री से ज्यादा खतरनाक बन गई है ये 37 डिग्री की उमस वाली गर्मी, वजह है यह.
दिल्लीवाले भीषण गर्मी झेलने के आदी हैं लेकिन इस बार की उमस वाली गर्मी से उनका भी हाल बेहाल है। जून की गर्मी से ज्यादा इस बार जुलाई में लोग परेशान हो रहे हैं। वजह से भयानक उमस। यह मौसम लोगों को बीमार भी कर रहा है।
Delhi Weather Update: 48 डिग्री से ज्यादा खतरनाक बन गई है ये 37 डिग्री की उमस वाली गर्मी, वजह है यह.
- जून के अंतिम हफ्ते से जारी नमी का दौर नहीं थम रहा, लोगों के पसीने छूट रहे
- गर्मी और नमी का कॉकटेल 'वेट बल्ब टेंपरेचर' स्वास्थ्य के लिए कतई अच्छा नहीं
- 12 जुलाई तक हल्की से मध्यम बारिश ही होगी, तब तक ज्यादा राहत नहीं मिलेगी
हाय-हाय दिल्ली की गर्मी
कहा जाता है कि दिल्ली की गर्मी का कोई जोड़ नहीं। राजधानी के लोगों को 44-45 डिग्री तापमान सहने की आदत है। लेकिन इस बार राजधानी हांफ रही है। इसकी वजह गर्मी के साथ नमी है। राजधानी में मॉनसून की आहट से पहले पूर्वी हवाएं चलने लगीं। इन पूर्वी हवाओं के साथ नमी बढ़ने लगी। यह नमी बारिश के लिए तो अच्छे संकेत होते हैं, लेकिन इस बार यह नमी भी बारिश को एक्टिवेट नहीं करवा रही है, बल्कि इसने लोगों को छटपटाहट महसूस करवा दिया है।
राजधानी में अभी पूर्वी हवाएं चल रही हैं जो बंगाल की खाड़ी से नमी लेकर आती हैं। ये हवाएं यूं तो बादलों को बनने में मदद करती हैं, लेकिन इस समय मॉनसून की अक्षीय रेखा राजधानी के आसपास नहीं आ रही जिससे यहां बारिश की गतिविधियां नहीं हो रही हैं।
क्यों परेशान कर रही है उमस
एक्सपर्ट के अनुसार, आमतौर पर राजधानी में प्री-मॉनसून और मॉनसून की गतिविधियां एक हफ्ते में हो जाती है। कभी बौछारें तो कभी तेज बारिश होती रहती है जिससे राहत मिलती रहती है। लेकिन इस साल परिस्थितियां शुरू से ही विषम हैं। मार्च से ही गर्मी और शुष्क मौसम ने राजधानी को अपनी चपेट में ले लिया। लंबे समय तक मौसम शुष्क रहा। प्री-मॉनसून की गतिविधियां तो हुईं, लेकिन यह एक से दो दिन ही रहीं। मॉनसून की बारिश भी एक से दो दिन ही हुई। लगातार नमी भरे मौसम में रहना इंसानों के लिए अनुकूल नहीं है।
वेट बल्ब टेंपरेचर से बढ़ी परेशानी
राजधानी में अभी गर्मी और नमी का जबरदस्त कॉकटेल बन गया है। इसी कॉकटेल को वेट बल्ब टेंपरेचर कहते हैं। अधिकतम तापमान, नमी, हवाओं की गति, सौर विकिरण को मिलकर यह कैलकुलेट होता है। 30 डिग्री से अधिक वेट बल्ब टेंपरेचर इंसानों के लिए सहना बेहद मुश्किल हो जाता है। जबकि 32 डिग्री के ऊपर इस तापमान के जाने पर फिट व्यक्ति के लिए भी बीमारी की संभावना बनी रहती है। कई देशों में 32 डिग्री तापमान होने पर बाहरी गतिविधियों को बंद कर दिया जाता है। जबकि वेट बल्ब टेंपरेचर 35 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाने पर इंसानी शरीर इसे सह नहीं पाता। लोगों को हीट स्ट्रोक की समस्याएं होती हैं। कुछ की मौत भी हो जाती है।
क्या कहती हैं स्टडी
2017 की एक स्टडी के अनुसार दुनिया न सिर्फ गर्म हो रही है, बल्कि हवा में नमी का स्तर भी तेजी से बढ़ रहा है। इससे कम तापमान में अधिक नमी होने पर व्यक्ति के लिए गर्मी सहना असहनीय हो जाता है। एक्सपर्ट के अनुसार, यदि तापमान 30 डिग्री है और नमी का स्तर 90 प्रतिशत तो व्यक्ति के लिए इस तरह के मौसम को सहना काफी मुश्किल होता है। एक्सपर्ट के अनुसार इस तरह के नमी भरे गर्म मौसम में मौतों का ग्राफ बढ़ जाने की संभावना ज्यादा है। खेतों, निर्माण कार्य में लगे श्रमिकों, मार्केटिंग से जुड़े लोग, डिलिवरी सर्विस से जुड़े लोगों के लिए यह मौसम स्वास्थ्य के लिहाज से काफी कठोर होता है। यही वजह है कि लू के दिनों में 40 डिग्री या इससे भी अधिक तापमान को मैदानी इलाकों में मॉडरेट माना जाता है, जबकि 30 से 31 डिग्री वेट बल्ब टेंपरेचर में व्यक्ति की मौत हो सकती है।
इस गर्मी पर क्या कहते हैं एक्सपर्ट
स्काईमेट के मुख्य मौसम विज्ञानी महेश पलावत का कहना है कि मॉनसून की अक्षीय रेखा इस समय मध्य भारत में एक्टिव है, इसलिए मध्य भारत में बारिश बहुत अधिक हो रही है। राजधानी में पू्र्वी हवाएं बंगाल की खाड़ी से नमी ला रही हैं। आज गुरुवार से छिटपुट बारिश होने की उम्मीद है। यह हल्की बारिश उमस को बढ़ाने का ही काम करेंगी। अधिक राहत की उम्मीद नहीं है। अभी राजधानी में 12 जुलाई तक बड़ी राहत की उम्मीद नहीं हैं। 12 जुलाई से पहले जो बारिश होगी वह राहत देने वाली नहीं होगी। कभी-कभार बारिश मध्यम दर्जे की हो सकती है, जिससे कुछ घंटों के लिए राहत महसूस की जा सकती है।
कितना सेफ है आपका फोन? डायल करें *#07# और तुरंत जानें अपने फोन का रेडिएशन लेवल
मानव शरीर के लिए 0.60 वाट/किलोग्राम से अधिक Radiation खतरनाक होता है लेकिन हम जो स्मार्टफोन इस्तेमाल कर रहे हैं उनसे निकल रहा रेडिएशन इसका दोगुना या इससे भी ज्यादा होता है.
आपको वैरिएबल और कांस्टेंट का फंडा तो पता होगा. मैथ की बेसिक चीज है. इसे लोगों की जिंदगी से कनेक्ट किया जाए तो आपका स्मार्टफोन कांस्टेंट है और बाकी के काम वैरिएबल. जैसे कि आप खाना खा रहे हैं, मूवी देख रहे हैं, चाय पी रहे हैं या कुछ और आपके एक हाथ में फोन जरुर होता है. कुल मिलाकर आप एडिक्ट हो चुके हैं. जिस फोन को आपने अपनी डेली रुटीन में कांस्टेंट बना लिया है, वो फोन बिना म्यान की तलवार रखने से कम नहीं है.
एक रिपोर्ट के मुताबिक मानव शरीर के लिए 0.60 वाट/किलोग्राम से ज्यादा का रेडिएशन खतरनाक होता है लेकिन हम जो स्मार्टफोन इस्तेमाल कर रहे हैं उनसे निकल रहा रेडिएशन इसका दोगुना या इससे भी ज्यादा है. रेडिएशन का असर इतना भयानक होता है कि लोगों में कैंसर जैसी बीमारियां बढ़ रही हैं, इसके अलावा मेल फर्टिलाइजेशन में भी कमी आ रही है. डब्लूएचओ की एक रिपोर्ट के अनुसार फोन का ज्यादा इस्तेमाल दिमागी सेल्स को कमजोर बनाता है.
स्पेसिफिक अब्सोर्पशन रेट से जानें रेडिएशन लेवल
जब आप फोन खरीदने जाते हैं तो फोन की रैम साइज, कैमरा, बैटरी बैक-अप, इन्टरनल मेमोरी हर चीज परखते हैं. जो बहुत जरूरी है मगर आप भूल जाते हैं या शायद आपको पता नहीं है, वो है SAR (स्पेसिफिक अब्सोर्पशन रेट) वैल्यू. SAR वैल्यू फोन के बॉक्स लीवरेज खतरनाक क्यों है में ही लिखी होती है, जो बताती है, कि फोन का रेडिएशन कितना है. ये भी कहा जाता है कि फोन पर *#07# टाइप करने से SAR वैल्यू का पता चलता है. हालांकि कई बार स्क्रीन पर जो आंकड़े दिखाई देते हैं, उनके गलत होने के चांस रहते हैं.
मोबाइल रेडिएशन को कैसे कम कर सकते हैं?
अब रेडिएशन वगैरह तो ठीक है, मगर जो फोन की लत है सो है. आज के जमाने में फोन बिना कुछ होता भी तो नहीं है. तो भईया फोन छोड़ नहीं सकते लेकिन इसका इस्तेमाल कम तो कर सकते हैं ना. फोन पर लंबे समय तक बातचीत के लिए हेडफोन लगा सकते हैं, अच्छे फोन कवर का इस्तेमाल कर सकते हैं, कुछ नहीं तो फोन खरीदते वक्त SAR जांच सकते हैं.
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