उत्तर- कंपनियों में पूँजी लगाकर उसका हिस्सा खरीदना और कीमत बढ़ने पर पुनः उसे बेच देना, सट्टेबाजी कहलाता है।
Pakistan Crises: कंगाल पाकिस्तान में खाने के पड़े लाले, सरकारी कर्मचारियों को मिलने वाले सभी भत्तों पर रोक
Pakistan Financial Crises: पाकिस्तान (Pakistan) इन दिनों गंभीर आर्थिक संकट (Pakistan Economic Crisis) से जूझ रहा है। इसलिए प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली वर्तमान सरकार ने अपने कर्मचारियों के खर्च में भारी कटौती करने का ऐलान किया है। समाचार एजेंसी ANI की एक रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तानी सरकार ने सरकारी कर्मचारियों को मिलने वाले मुफ्त ईंधन, ट्रेवल भत्ता और मेडिकल भत्ता सहित कई अन्य भत्तों पर बैन लगा दिया है।
भीषण नकदी संकट से जूझ रहे पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक ने हाल ही में कीमत और वित्तीय स्थिरता को दांव पर लगाकर वृद्धि को तरजीह देने के लिए शहबाज शरीफ सरकार की आलोचना की थी। बता दें कि पाकिस्तान इस समय गहरे नकदी संकट से जूझ रहा है।
पुनीत मनचंदा — रॉस स्कूल ऑफ बिजनेस में विपणन के प्रोफेसर हैं। उनकी विशेषज्ञता उभरते क्षेत्रों के बाजार, भारत में व्यापार, और रणनीति और विपणन के मुद्दें हैं।
“दिलचस्प सवाल यह है कि पहले के वर्षों के मजबूत प्रदर्शन के तुलना में पिछले साल की अर्थव्यवस्था में सुस्ती का चुनावों पर प्रभाव होगा या नही,” उन्होंने कहा।”
“आगे देखते हुए, चुनाव के परिणाम का निवेश पर, विशेष रूप से विदेशी निवेश पर, सबसे अधिक प्रभाव पड़ेगा। घरेलू उपभोक्ता बाजारों पर प्रभाव कम होने की संभावना है। जनादेश जितना अधिक निर्णायक होगा, व्यापार के लिये उतना ही बेहतर होगा।”
लीला फर्नांडीस, राजनीति विज्ञान और वुमन स्टडीज़ की प्रोफेसर है, वो राजनीति और संस्कृति के बीच के संबंधों, भारत में श्रमिक राजनीति, लोकतंत्रीकरण और आर्थिक सुधार की राजनीति पर शोध करती है।
CITD सेमिनार
1. प्रिया भैगोवालिया (एसोसिएट प्रोफेसर, अम्बेडकर विश्वविद्यालय, दिल्ली) पर प्रस्तुत "क्या बाल अल्पोषण विकासशील देशों में गरीबी उन्मूलन के बावजूद जारी रहती है ?" 23 अप्रैल, 2013 पर
2. दिव्या दत्त, रिसर्च स्कॉलर, सीआईटीडी , एसआईएस, जेएनयू "विशेष रुचि राजनीति और अंतर सरकारी राजकोषीय प्रोत्साहन के साथ एक संघ में पर्यावरण नीति " पर पर 20 फ़रवरी 2013 प्रस्तुत
3. अलोकेश बरुआ (प्रोफेसर, सीआईटीडी , 30 जनवरी, 2013 को: जेएनयू) 'मध्यवर्ती माल के साथ एक विशिष्ट कारक मॉडल व्यापार और वेतन असमानता ' पर प्रस्तुत किया।
सीआईटीडी , 2011 में आयोजित सेमिनार की सूची - 2012:
1. दिल बाजार में व्यापार पर संकट का प्रभाव बहादुर रहुत (अर्थशास्त्र के संकाय, दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय, नई दिल्ली) ' णोन्फर्म रोजगार और ग्रामीण कल्याण: हिमालय से साक्ष्य' पर प्रस्तुत 19 सितम्बर, 2012
2. अशोक गुहा (अतिथि प्रोफेसर, सीआईटीडी , जेएनयू) बाजार में व्यापार पर संकट का प्रभाव प्रस्तुत 'फॉर्च्यून पर दोबारा गौर उत्क्रमण: परिवहन का भूगोल और विश्व आर्थिक शक्ति के बदलने से बकाया राशि 'पर 05 सितंबर को, 2012
3. सन्चरी राय (पोस्टडॉक्टोरल रिसर्च फेलो, पिंजरे और अर्थशास्त्र विभाग, वारविक विश्वविद्यालय, ब्रिटेन) पर प्रस्तुत 'प्रेरित ज्ञान एजेंटों: सामाजिक निकटता बनाम वित्तीय प्रोत्साहन '22 अगस्त, 2012 को
अंतर्जात मानव पूंजी निर्माण, 30 मार्च 2012 फ्रंटियर और विकास' से दूरी 4. सुजाता बसु (रिसर्च स्कॉलर, सीआईटीडी , जेएनयू) पर प्रस्तुत '
5. सौरभ बिकास पॉल (एसोसिएट फेलो, एनसीएईआर) पर 16 मार्च 2012 को'
भारत में टैरिफ सुधार के वितरणात्मक प्रभाव 'प्रस्तुत 6. गुरबचन सिंह (विजिटिंग संकाय, योजना इकाई, भारतीय सांख्यिकी संस्थान, दिल्ली) उभरती अर्थव्यवस्थाओं से "` प्रणालीगत' गुणवत्ता के लिए उड़ान पर एक संगोष्ठी प्रस्तुत किया , और सक्षम अंतरराष्ट्रीय क्रेडिट लाइन "3 फरवरी को 2012
7. तारा शंकर शॉ (अतिथि संकाय सदस्य, सीआईटीडी , जेएनयू) पर प्रस्तुत "खाद्य सब्सिडी परिवार के पोषण को प्रभावित करता है : भारतीय सा ्वजनिक वितरण प्रणाली से कुछ सबूत "20 जनवरी 2012
मोनिका दास, स्किद्मोरे कॉलेज, संयुक्त राज्य अमेरिका, द्वारा" गैर पैरामीट्रिक विधियों "पर 8. कार्यशाला 11-12 जनवरी के दौरान, 2012
9. सिद्धार्थ चट्टोपाध्याय 9 नवम्बर 2011 पर 'एक चलनिधि जाल से बचें स्विचिंग मौद्रिक नीति 'प्रस्तुत किया पर
10.ट्रिदिप शर्मा (प्रोफेसर, बिजनेस, मेक्सिको) पर 1 नवम्बर 2011 "
इकाई -7 व्यापार और भूमंडलीकरण
उत्तर- अर्थतंत्र में आने वाली वैसी स्थिति जब उसके तीनों आधार कृषि उद्योग तथा प्यापार का विकास अवरूद्ध हो जाए, बैंको और कंपनियों का दिवाला निकल जाए तथा वस्तु और मुद्रा दोनों की बाजार में कोई कीमत न हो तब ऐसी स्थिति आर्थिक संकट कहलाती है।
4. भूमंडलीकरण किसे कहते हैं?
उत्तर- जीवन के सभी क्षेत्रों का एक अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप , जिसने दुनिया के सभी भागों को आपस में जोड़ दिया है, भूमंडलीकरण कहलाता है।
5. ब्रेटेन बुड्स सम्मेलन का मुख्य उद्येश्य क्या था?
उत्तर- औद्योगिक विश्व में आर्थिक स्थिरता तथा पूर्ण रोजगार बनाए रखना ही ब्रेटेन वुड्स सम्मेलन का मुख्य उद्येश्य था।
लघुउत्तरीय प्रश्न:-
1. 1929 के आर्थिक संकट के कारणों को संक्षेप में स्पष्ट करें।
उत्तर- कृषि उत्पादन एवं खाद्यान्नों में आई वृद्धि 1929 के आर्थिक संकट का मूल कारण था। प्रथम विश्व युद्ध के चार वर्षो में यूरोप को छोड़कर बाकी सभी जगह बाजार का विस्तार होता चला गया। नवीन तकनीक के कारण उत्पादन में आशातीत वृद्धि हुई परंतु इसे खरीद सकने वाले लोग बहुत कम थे। जिसके कारण वस्तुओं की कीमतें लगातार गिरने लगी । कृषि उत्पाद पड़ी – पड़ी सड़ने लगी। जिससे पूरे विश्व की आर्थिक व्यवस्था चड़मड़ा गई ।
2. औद्योगिक क्रांति ने किस प्रकार विश्व बाजार के स्वरूप को विस्तृत किया?
अथवा, विश्व बाजार के स्वरूप को समझाऍं।
उत्तर- औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप बड़े – बड़े बाजार में व्यापार पर संकट का प्रभाव कारखानों में वस्तुओं का उत्पादन बहुत तेजी से होने लगा। ये वस्तुऍं काफी सस्ती होती थी जिससे इनकी मॉंग में बढ़ोतरी हुई । इन वस्तुओं को विश्व के कोने – कोने में भेजा जाने लगा । इन वस्तुओं को आम लोगों तक पहुँचाने के लिए अधिक से अधिक बाजार की आवश्यकता हुई , जो विश्व बाजार का स्वरूप ले लिया। विश्व बाजार के इस स्वरूप का आधार कपड़ा उद्योग था।
इकाई -7 व्यापार और भूमंडलीकरण
4. भूमंडलीकरण के भारत पर प्रभावों को स्पष्ट करें।
उत्तर- भूमंडलीकरण के भारत पर सकारात्मक प्रभाव नजर आया। लोगों को नये रोजगार के अवसर मिलें। भारतीय लोगों का जीवन स्तर ऊँचा उठा। अब लोगों को बैकिंग , होटल , रेस्टोरेंट , यातायात के साधन , आदि जगहों पर काम मिलने लगा। मोबाईल कंपनियों के बाजार में व्यापार पर संकट का प्रभाव कारण मोबाईल एवं इनसे संबंधित सुविधाओं के लिए लाखों लोगों को रोजगार मिला।
5. भूमंडलीकरण के कारण आमलोगों के जीवन में आने वाले परिवर्तनों को स्पष्ट करें।
निर्यात पर बैन से यूरोपीय बाजार में गेहूं के दाम ने तोड़े सभी रिकॉर्ड, इधर- किसान भी नाखुश
New Delhi :बाजार में व्यापार पर संकट का प्रभाव भारत सरकार द्वारा गेहूं के निर्यात पर लगाई रोक का असर अब विश्व के बाजारो में दिखने लगा है. सोमवार को यूरोपीय बाजार में गेहूं की कीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई. प्रमुख गेहूं निर्यातक यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के मद्देनजर कीमत (जो पहले से ही अधिक थी) यूरोपीय बाजार के खुलने के साथ ही 435 यूरो ($ 453) (35,282.73 भारतीय रुपये) प्रति टन हो गई. इधर, जी-7 देश भारत सरकार द्वारा गेहूं के निर्यात पर लगाई रोक की आलोचना कर चुके हैं. सात औद्योगीकृत देशों के समूह के कृषि मंत्रियों ने भारत के इस फैसले की निंदा की. जर्मन कृषि मंत्री केम ओजडेमिर ने स्टटगार्ट में कहा, “अगर हर कोई निर्यात प्रतिबंध या बाजार बंद करना शुरू कर देगा, तो इससे संकट और खराब हो जाएगा.” उन्होंने कहा, “हम भारत से G20 सदस्य के रूप में अपनी जिम्मेदारी संभालने का आह्वान करते हैं.”
भारत, दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक
बता दें भारत ने घरेलू स्तर पर बढ़ती कीमतों को नियंत्रित करने के बाजार में व्यापार पर संकट का प्रभाव उपायों के तहत गेहूं के निर्यात पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगा दिया है. हालांकि, विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) ने 13 मई को जारी अधिसूचना में कहा, “इस अधिसूचना की तारीख या उससे पहले जिस खेप के लिए अपरिवर्तनीय ऋण पत्र (एलओसी) जारी किए गए हैं, उसके निर्यात की अनुमति होगी.” डीजीएफटी ने यह भी स्पष्ट किया कि भारत सरकार द्वारा बाजार में व्यापार पर संकट का प्रभाव अन्य देशों को उनकी खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए और उनकी सरकारों के अनुरोध के आधार पर दी गई अनुमति के आधार पर गेहूं के निर्यात की अनुमति दी जाएगी. गौरतलब है कि भारत, दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक है.
गेहूं के बढ़ते दामों को काबू में लाने के लिए सरकार ने ये फैसला लिया है. तर्क दिया जा रहा है कि इस कदम की वजह से बढ़ती महंगाई से राहत मिल सकती है. गेहूं की कीमतों में गिरावट देखने को मिल सकती है. लेकिन जिस फैसले का सरकार और कुछ व्यापारी संगठन स्वागत कर रहे हैं, कई किसान उसी फैसले से खुश नहीं हैं.
किसानों को कैसे नुकसान हो रहा?
किसानों की नजरों में गेहूं के निर्यात पर लगाए गए बैन की वजह से उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ेगा. इसके अलावा क्योंकि सरकार ने अब गेहूं खरीद के नियमों में ढील देने का फैसला किया है, कई किसान इसे भी अपने लिए नुकसान मान रहे हैं. किसानों का मानना है कि गेहूं पर लगाए गए निर्यात बैन की वजह से अब वे कम दामों में अपनी उपज बेचने को मजबूर होंगे, वहीं दूसरी तरफ सरकार ने खरीद के नियमों में जो ढील दी है, उसका फायदा किसानों से ज्यादा उन निजी प्लेयर्स को होने वाला है जिन्होंने उनसे काफी पहले ही गेहूं खरीद लिया था.
कुछ अर्थशास्त्री भी सरकार के इस फैसले को तर्कसंगत नहीं मान रहे हैं. उनकी नजरों में सरकार ने निजी प्लेयर्स को जरूरत से ज्यादा छूट दे रखी है. उनका किसानों से सीधे फसल का खरीदना भी थोड़ा नुकसान दे गया है. इस बारे में अर्थशास्त्री देविंदर शर्मा बताते हैं कि रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह बाजार में व्यापार पर संकट का प्रभाव से किसानों को कुछ मुनाफा हो सकता था, लेकिन असल फायदा कुछ प्राइवेट प्लेयर्स ले गए.
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