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786 नंबर वाला नोट

सिक्के

देवास स्टेट की स्थापना सन् 1726 ए. डी. में तुकोजीराव तथा जीवाजीराव द्वारा की गई जो कि पंवार वंश के थे । ये बाजीराव पेशवा की सेना के साथ मालवा के विजयी अभियान मे सेना के साथ आए थे । इन्हे अपनी सेवाओं के बदले में, देवास, सारंगपुर तथा आलोट जिले दिए गए ।

इस राज्य के सिक्कों की और विद्वानो का ध्यान सन् 1904 ए. डी. में आकर्षित हुआ । सिक्का सम्बन्धी (मुद्रा विद्या) से सम्बन्धित कुछ नई तिथि की जानकारी प्राप्त हुई इसके सिक्कों से सम्बन्धित शिक्षा के बारे में इस राज्य की नई जानकारी प्राप्त हुई ।

प्रारम्भ में राज्य के अपने सिक्के नहीं थे बल्कि, इंदौर, उज्जैन, प्रतापगढ़ और कोटा के सिक्कों का ही लेन- देन होता था, परन्तु इन्हे देने से पहले, देवास स्टेट के कुछ सुनारों को यह दायित्व दिया गया कि वे “जालाधारी” फूलों पर शिव लिगों कों, उभरे हुए फूलों के आकर की नक्काशी करें । इसी प्रकार से, आलोट तथा गढ़गुच्चा से भी चन्द्रमा के गोलाकार प्रतीक चिन्ह के तांबे के सिक्के पाए जाते थे ।

कौन सा सिक्का चुनना है?

पूर्व सिंधु घाटी सभ्यता की खान, धुंध और घरों को तसमा हिल सीमा के खानक पहाड़ियों में पाया गया है। भवानी के मिताथल गांव में खुदाई (1 968-73 और 1 980-86) ने इलाके में पूर्व हड़प्पाण और हड़प्पा (सिंधु घाटी सभ्यता) संस्कृति का सबूत पाया है। भिवानी शहर के लगभग 10 किलोमीटर (6.2 मील) पूर्व में नौरंगाबाद के गांव के पास, 2001 में प्रारंभिक खुदाई में सिक्कों, उपकरण, चक्कर, खिलौने, मूर्तियों और बर्तनों को 2,500 साल पुराना समेत कलाकृतियों का पता चला। पुरातत्वविदों के अनुसार सिक्के, सिक्का मोल्ड, मूर्तियों और घरों के डिजाइन की उपस्थिति से पता चलता है कि कभी-कभी कुशन, गुप्त और 300 ईसा पूर्व तक यहीं कौन सा सिक्का चुनना है? में एक शहर मौजूद था।

ऐन-ए-अकबारी में भिवानी शहर का उल्लेख किया गया है और मुगलों के समय से वाणिज्य का एक प्रमुख केंद्र रहा है।

नाम की उत्पत्ति

जिला का मुख्यालय, भिवानी शहर के नाम पर रखा गया है। भिवानी शहर, माना जाता है, उसकी पत्नी भनी के बाद नीम सिंह नाम का एक राजपूत द्वारा स्थापित किया गया था। बाद में भानी नाम बदलकर भियानी और बाद में भिवानी में बदल दिया गया।

जिला में चार उप-विभाजन हैं: भिवानी, लोहारू, सिवानानी और तौशम ये उप-विभाजन आगे कौन सा सिक्का चुनना है? पांच तहसीलों में विभाजित हैं: भिवानी, लोहरू, सिवनी, बावानी खेड़ा और तौशम और एक उप-तहसील, बहल। इस जिले में पांच विधानसभा क्षेत्र हैं: भिवानी, लोहारू, बावानी खेड़ा, तौशम और बावानी खेड़ा। बावानी खेड़ा हिसार (लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र) का हिस्सा हैं जबकि शेष भिवानी-महेंद्रगढ़ (लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र) का हिस्सा हैं। पहले भिवानी जिले में, उप डिवीजनों में बाडडा और चरखी दादरी और उप-तहसील बोंदकलां 2016 में नए चरखी दादरी जिले का हिस्सा बन गए थे।

र से शुरू होने वाले हिन्दू लड़कियों के नाम और मतलब

Bachon ke naam

प्राचीन काल से ही हिन्दू धर्म में नाम रखने की प्रथा चलती आ रही है। हिन्दू धर्म में लड़की का ऐसा नाम रखने पर ध्यान दिया जाता है, जिसका अच्छा मतलब निकलता हो। हिन्दू धर्म में ऐसी प्रक्रिया बनाई गई है, जिसमें लड़की का एक अच्छा नाम चुना जाता है। जीवन में लड़की के नाम से ही उसको एक विशेष पहचान मिलती है। हिन्दू धर्म में नामकरण की प्रक्रिया इसीलिए चलाई गई थी, ताकि व्यक्ति को अन्य सभी लोगों से परे एक खास पहचान मिल सके। भारत सहित विश्व के अन्य देशों में भी हिन्दू धर्म से जुड़े लोगों द्वारा कई दशकों से नामकरण किया जा रहा है। हिन्दू धर्म के अनुसार किसी बच्चे का प्रभाव समाज में अच्छा और आकर्षक हो, इसके लिए हिन्दू धर्म के आधार कौन सा सिक्का चुनना है? पर लड़की के नाम का मतलब खास होना चाहिए। माना जाता है कि अर्थपूर्ण नाम से ही लड़की को समाज में प्रतिष्ठा मिलती है। र अक्षर नाम की लड़की दूसरों पर सकारातमक असर छोड़ सकती हैं। हिन्दू धर्म से जुड़े लोग मानते हैं कि लड़की का स्वभाव ज्यादातर उसके नाम से मेल खाता है। आपकी अच्छाई व बुराई, स्वभाव और आपकी वाणी कैसी है, इन बातों की झलक आपके नाम के पहले अक्षर या‍नी र अक्षर में दिख जाती है। हिन्दू धर्म में माना जाता है कि जिस लड़की के नाम का पहला अक्षर र है, वे सफलता को हासिल करके ही दम लेती हैं। ये पूरी हिम्मत और साहस के साथ चुनौतियों का मुकाबला करती हैं। हिन्दू धर्म में बेटियों के जन्‍म के बाद उनका नामकरण होता है। माता-पिता अधिकतर लड़की का ऐसा नाम रखना चाहते हैं जिसका कोई अर्थ हो क्‍योंकि इसका सीधा असर उसके व्‍यक्‍तित्‍व और भविष्‍य पर पड़ेगा।

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प्राचीन काल से यह पुराने सिक्के है तो मिलेंगे 3 लाख रूपये घर बैठे अभी अभी बड़ी घोसना भारत में

कई इतिहासकारों का मानना है कि ये सिक्के ईस्ट इंडिया कंपनी के बेहद शुरुआती सिक्के थे। इन सिक्कों को मूल्य आधा आना था। इन सिक्कों को भगवान हनुमान के अतिरिक्त भगवान राम, लक्ष्मण और सीता की छवि भी अंकित थी।

1818, 1717 और 1919 के बने ऐसे सिक्के अक्सर देखने को मिल जाते हैं। ई-कॉमर्स की कई वेबसाइटों पर भी यह सिक्का बेचा जा रहा है जहां इसकी कीमत 1 लाख रुये तक बताई जा रही है।

छत्तीसगढ़ के कुछ इलाकों में उत्खनन के दौरान भी ऐसे सिक्के देखे जाने की बातें पहले भी सामने आई हैं। वर्तमान में इन सिक्कों को चमत्कारिक बता कर प्रचारित किया जा रहा है जबकि हकीकत इससे कोसों दूर है।

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