स्विंग व्यापारी क्यों विफल होते हैं?
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मुद्रा और साख
बैंक निम्नलिखित कर्ज़दारो को निम्नलिखित कारणों से उधार देने के लिए तैयार नहीं हो सकते हैं:
(i) बैंकों को उचित दस्तावेज और ऋणाधार के रूप में ऋण के खिलाफ सुरक्षा की आवश्यकता है। कुछ व्यक्ति इन आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल होते हैं।
(ii) वो कर्ज़दार जिन्होंने पिछली ऋण का भुगतान नहीं किया है, हो सकता है कि बैंक उन्हें और अधिक उधार देने के लिए तैयार न हों।
(iii) बैंक उन उद्यमियों को उधार देने के लिए तैयार नहीं होंगे जो उच्च जोखिम वाले व्यापार में निवेश करने जा रहे हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक ऋण के औपचारिक स्रोतों के कामकाज की निगरानी करता है। उदाहरण के लिए, हमने देखा की बैंक अपनी जमा का एक न्यूनतम नकद हिस्सा अपने पास रखते हैं। आर.बी.आई. नज़र रखता हैं कि बैंक वास्तव में नकद शेष बनाए हुए हैं। आर.बी.आई. इस पर भी नज़र रखता हैं कि बैंक केवल लाभ अर्जित करने वाले व्यावसायियों और व्यापारियों को ही ऋण मुहैया नहीं करा रहे, बल्कि छोटे किसानों, छोटे उद्योगों, छोटे कर्ज़दारों इत्यादि को भी ऋण दे रहे हैं । समय समय पर, बैंकों द्वारा आर.बी.आई.को यह जानकारी देनी पड़ती है कि वे कितना और किनको ऋण दे रहे हैं और उसकी ब्याज की दरें क्या है?
निम्नलिखित कारणों से भारतीय रिजर्व बैंक का अन्य बैंकों की गतिविधियों पर नज़र रखना आवश्यक है:
(i) भारतीय रिजर्व बैंक भारत का केंद्रीय बैंक है। यह भारत के बैंकिंग सेक्टर के लिये नीति निर्धारण का काम करता है।
(ii) यह लोगों की बैंक में जमा राशि की सुरक्षा को सुनिश्चित करता है।
(iii) यह पूरे देश में आर्थिक आंकड़ों के संग्रह में मदद करता है।
(iv) बैंकों की कार्यप्रणाली को नियंत्रित करके रिजर्व बैंक न केवल बैंकिंग और फिनांस को सही दिशा में ले जाता है बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था को भी सुचारु ढंग से चलने में मदद करता है।
बैंक अपनी जमा राशि का केवल एक छोटा हिस्सा अपने पास नकद के रूप में रखते हैं। बैंक जमा राशि के एक बड़े भाग को ऋण देने के लिए इस्तेमाल करते हैं। विभिन्न आर्थिक गतिविधियों के लिए ऋण की भारी मांग रहती है। बैंक जमा राशि का लोगों की ऋण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए इस्तेमाल करते हैं।
इस तरह , बैंक जिनके पास अतिरिक्त राशि है (जमाकर्ता) एवं जिन्हें राशि की ज़रूरत है (कर्जदार) के बीच मध्यस्थता का काम करते हैं।
बैंक जमा पर जो ब्याज देते हैं उससे ज़्यादा ब्याज ऋण पर लेते हैं। कर्जदारों के लिए गए ब्याज और जमाकर्ताओं को दिए गए ब्याज के बीच का अंतर बैंकों की आय का प्रमुख स्त्रोत है।
यह बिल्कुल सही हैं की उच्च जोखिम वाली परिस्थितियों में ऋण कर्जदार के लिए समस्याएँ हल करने की बजाए और समस्याएँ खड़ी कर सकता हैं।
(i) उधारकर्ता को मूलधन के साथ-साथ उधारदाताओं को ब्याज पर भी ब्याज का भुगतान करना था।
(ii) उधारकर्ता अदालती ऋण लेने वाले के खिलाफ अपने मूलधन और ब्याज को पुनः प्राप्त करने के लिए जा सकते हैं।
(iii) कभी-कभी, ऋणदाता बैंक या सहकारी सोसायटी या क्रेडिट की कोई अनौपचारिक एजेंसी के साथ गठित संपार्श्विक के रूप में सुरक्षा या परिसंपत्तियों को बेच सकता है।
10 रुपये के नोट पर निम्न पंक्ति लिखी होती है, “मैं धारक को दस रुपये अदा करने का वचन देता हूँ।“ इस कथन के बाद रिजर्व बैंक के गवर्नर का दस्तखत होता है। यह कथन दर्शाता है कि रिजर्व बैंक ने उस करेंसी नोट पर एक मूल्य तय किया है जो देश के हर व्यक्ति और हर स्थान के लिये एक समान होता है।
जिस व्यक्ति के पास मुद्रा है, वह इसका विनिमय किसी भी वस्तु या सेवा खरीदने के लिए आसानी से कर सकता है। आवश्यकताओं का दोहरा सयोंग विनिमय प्रणाली की एक अनिवार्य विशेषता है। जहाँ मुद्रा का उपयोग किये बिना वस्तुओं का विनिमय होता है। इसकी तुलना में ऐसी आर्थव्यवस्था जहाँ मुद्रा का प्रयोग होता है, मुद्रा महत्वपूर्ण मध्यवर्ती भूमिका प्रदान करके आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की ज़रूरत का खत्म कर देती है।
उदहारण: जूता निर्माता के लिए ज़रूरी नहीं रह जाता की वो ऐसे किसान को ढूंढे, जो न केवल उसके जूते ख़रीदे बल्कि साथ-साथ उसको गेहूँ भी बेचे। उससे केवल अपने जूते के लिए खरीददार ढूँढ़ना हैं। एक बार उसने जूते, मुद्रा में बदल लिए तो वह बाज़ार में गेहूँ या अन्य कोई वस्तु खरीद सकता है।
फेल होने पर न मानें हार
विफलता सफलता की सीढ़ी है बजाय यह समझने के कुछ विद्यार्थी असफल होने पर हार मान बैठते हैं और आगे प्रयत्न ही नहीं करते. एक बार फेल होने का मतलब यह नहीं कि सफलता पर फुलस्टौप लग गया है.
आप किसी परीक्षा में शामिल हुए और उस का परिणाम आप के पक्ष में नहीं आया अर्थात आप फेल हो गए, तो इस से निराश न हों और न ही आगे पढ़ने का विचार छोड़ें, क्योंकि ऐसा करना बुद्धिमानी नहीं है. फेल होने पर हार नहीं माननी चाहिए. कुछ विद्यार्थी फेल होने का सदमा बरदाश्त नहीं कर पाते और उन के मन में असफलता के कारण बारबार आत्महत्या के विचार आने लगते हैं. कुछ कायर किस्म के परीक्षार्थी इस छोटी सी असफलता की वजह से सुसाइड तक कर लेते हैं, जोकि निंदनीय है. माना कि अच्छा परीक्षा परिणाम न आने पर आप टूट जाते हैं. ऐसे में आप या तो खुद को कोसते हैं या फिर मूल्यांकनकर्ता को, लेकिन ऐसा करने से कुछ हासिल नहीं होता. परीक्षा में अंक उसी के मिलते हैं जो आप ने कौपी में लिखा है. अत: मूल्यांकनकर्ता को कोसने से कुछ नहीं होगा.
फेल होने पर क्या करें
हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती. दुनिया का सब से छोटा जीव है चींटी. वह अपने लक्ष्य की प्राप्ति की खातिर दीवार पर बारबार चढ़ती है, गिरती है, फिर चढ़ती है. उस का यह सिलसिला तब तक अनवरत जारी रहता है, जब तक वह अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर लेती. जब चींटी स्विंग व्यापारी क्यों विफल होते हैं? जैसा छोटा सा जीव कभी हिम्मत नहीं हारता, तो फिर आप तो इंसान हैं. एकदो बार की असफलता मात्र से हार कैसे मान सकते हैं? ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो विज्ञान विषय ले कर परीक्षा देते हैं लेकिन पास नहीं हो पाते. इस के बाद वे वाणिज्य विषय का विकल्प चुनते हैं, लेकिन उस में भी सफल नहीं हो पाते. फिर कला या सामाजिक विज्ञान जैसे विषयों में स्विंग व्यापारी क्यों विफल होते हैं? कोशिश करते हैं लेकिन यहां भी उन्हें सफलता नहीं मिलती. अंतत: वे हार मान लेते हैं. काश, वे एक ही मैदान में यानी एक विषय से परीक्षा देते और एकदो बार की विफलता से विचलित स्विंग व्यापारी क्यों विफल होते हैं? न होते तो अवश्य सफल हो सकते थे.
असफलता को बनाएं सफलता की सीढ़ी
यदि आप किसी परीक्षा में असफल हुए हैं तो उसी असफलता को अपनी सफलता की सीढ़ी बनाएं. जी हां, सफलता की राह असफलता से ही निकलती है. आवश्यकता केवल अपनी कमजोरी को पहचानने और उस के अनुसार अपनी पढ़ाई में बदलाव लाने की है. कुछ छात्र फेल हो जाने पर सोचते हैं कि अब कुछ नहीं हो सकता, लेकिन फेल होने से दुनिया खत्म नहीं हो जाती, इसलिए आंखों के सामने अंधियारा न लाएं. हर रात के बाद सुबह होती है, जो आशा की एक नई किरण ले कर आती है. आप सुबह होने का इंतजार कीजिए. प्रयास निरंतर जारी रखिए. आप के प्रयास जरूर एक दिन सफल होंगे. ऐसे बहुत से उदाहरण हैं, जो बच्चे शुरुआत में पढ़ाई में बहुत कमजोर यानी फिसड्डी थे, लेकिन जब उन्होंने मन पढ़ने में लगाया तथा पढ़ाई को गंभीरता से लिया और उस के बाद वे न केवल उत्तीर्ण हुए बल्कि फर्स्ट भी आने लगे, यदि एकदो बार फेल होने से वे अपनी पढ़ाई छोड़ देते स्विंग व्यापारी क्यों विफल होते हैं? तो उन का भविष्य या कैरियर चौपट हो जाता. सफलता के लिए एक बार नहीं, बारबार कोशिश करनी पड़ती है.
कारण व समाधान ढूंढ़ें
क्या आप जानते हैं कि हम फेल क्यों होते हैं? इस का सब से बड़ा कारण विषयों का गलत चयन है. कई बार आप पेरैंट्स या अन्य किसी के दबाव में आ कर या किसी की देखादेखी ऐसे विषयों का चुनाव कर लेते हैं जिन में या तो आप की रुचि नहीं है या फिर वे इतने कठिन हैं कि उन्हें समझ पाना आप के सामर्थ्य के बाहर है. ऐसे में आप का फेल होना तय है. इसलिए समझदारी इसी में है कि विषयों का चयन बिना किसी दबाव के अपनी रुचि और सामर्थ्य के अनुसार करें. अपने मन मुताबिक विषयों को यदि आप चुनते हैं तो आप को सफलता अवश्य मिलेगी और आगे चल कर आप अच्छा कैरियर बना सकते हैं. एकदो बार की विफलता से हताश हो कर अपने उत्साह में कमी नहीं आने देनी चाहिए. यदि आप में आगे बढ़ने का उत्साह बरकरार है, तो आप फेल होने पर भी हार नहीं मानेंगे और पास हो कर ही दम लेंगे.
VIDEO : फंकी पाइनएप्पल नेल आर्ट
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चाहे केरल हो या दुबई, आठवीं क्लास से शुरू हो जाती है कोचिंग
तिरुवनंतपुरम (आईएएनएस)| 2009 में एक मलयालम फिल्म 'मकांते अचन' रिलीज हुई थी। इसमें एक ऐसे युवक के आघात का चित्रण किया गया था, जो एक संगीतकार व गायक बनना चाहता था, लेकिन उसके गांव के अधिकारी पिता ने उसके इंजीनियर बनने पर जोर दिया।
बेटा के.सी. फ्रांसिस के एक कोचिंग संस्थान में जाता है। फ्रांसिस को राज्य में एक निश्चित सफलता का संस्थान माना जाता है। संस्थान के प्रिंसिपल फ्रांसिस सख्त अनुशासक हैं और सीसीटीवी के जरिए वे छात्रों की हर गतिविधि पर नजर रखते थे। अंत में पुत्र मनु प्रवेश परीक्षा में विफल रहता है। इससे उसके स्विंग व्यापारी क्यों विफल होते हैं? पिता विश्वनाथन का दिल टूट जाता है और शराब पीने लगते हैं।
मनु घर से बाहर निकलता है और एक होटल वेटर के रूप में काम शुरू करता है। लेकिन बाद में पिता-पुत्र एकजुट हो जाते हैं और एक स्थानीय चैनल पर एक रियलिटी शो प्रतियोगिता जीतने के बाद मनु एक लोकप्रिय गायक बन जाता है।
केरल के अधिकांश छात्र आठवीं कक्षा से अपनी प्रवेश परीक्षा शुरू करते हैं और राज्य में उग आए विभिन्न प्रवेश संस्थानों में शामिल होते हैं। अब उनका ध्यान कोट्टायम जिले के पाला में स्थानांतरित हो गया है, जो राजस्थान के कोटा की तरह ही मेडिकल और इंजीनियरिंग के उम्मीदवारों को लेता है और उन्हें परीक्षा में सफलता दिलाने में मदद करता है।
संस्थान कुछ आवासीय विद्यालयों से जुड़ा हुआ है, जहां कासरगोड और कन्नूर जैसे राज्य के दूर-दराज के स्थानों के छात्र रह सकते हैं और प्रतिस्पर्धा की बारीकियों को सीख सकते हैं। छात्र उस संस्थान में आते हैं, जो संस्थान में प्रवेश के लिए प्रवेश परीक्षा आयोजित करता है। ऐसे में संस्थान के छात्रों का उत्तीर्ण प्रतिशत अधिक है।
कई छात्र होमसिकनेस की स्विंग व्यापारी क्यों विफल होते हैं? शिकायत करते हैं, लेकिन जिन माता-पिता ने पहले से ही बच्चे के बेहतर भविष्य का सपना देखा है, वे छात्रों को घर वापस आने की अनुमति नहीं देते हैं। उन्हें हॉस्टल में रहने के लिए मजबूर करते हैं।
केरल के एक प्रतिष्ठित कोचिंग संस्थान में भौतिकी के शिक्षक सुजीत जॉर्ज (बदला हुआ नाम) ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, जहां तक भत्तों का सवाल है, हम आराम से हैं, और मुझे वेतन के रूप में प्रति माह 2.5 लाख रुपये से अधिक मिलते हैं। मैं उन छात्रों के लिए बेहद खेद महसूस होता है, जो कभी भी इंजीनियर या डॉक्टर बनने की दौड़ में शामिल नहीं होना चाहते, इसके बजाय उदार कलाओं में शामिल होना चाहते हैं।
माता-पिता उन्हें कभी भी अपनी पसंद के पेशे में शामिल होने की अनुमति नहीं देंगे, उन्हें जेईइ और नीट के साथ-साथ इंजीनियरिंग की राज्य स्विंग व्यापारी क्यों विफल होते हैं? स्तरीय प्रवेश परीक्षा केईएम को क्रैक करने के लिए संस्थानों में पढ़ाई जारी रखने के लिए मजबूर करेंगे।
केरल में कोचिंग उद्योग औसतन प्रति वर्ष लगभग 1,000 करोड़ रुपये का है, राज्य के विभिन्न हिस्सों में संस्थान तेजी से बढ़ रहे हैं और प्रतिष्ठित शिक्षकों को आमंत्रित कर उन्हें भारी वेतन दे रहे हैं।
केरल में ऐसे उदाहरण हैं, जहां रसायन विज्ञान के एक प्रतिष्ठित प्रोफेसर ने तिरुवनंतपुरम के एक संस्थान से कोच्चि के दूसरे संस्थान और फिर कोझिकोड के लिए उड़ान भरी।
ऐसे शिक्षक हैं, जो एक सप्ताह के लिए दुबई और कतर के लिए कोचिंग संस्थानों में पढ़ाने के लिए उड़ान भरते हैं।
मध्यमवर्गीय माता-पिता, अनिवासी भारतीयों, सरकारी कर्मचारियों, मध्यम स्तर के व्यवसायियों की आकांक्षाएं अपने बच्चों को इंजीनियरिंग और चिकित्सा दोनों में सबसे अधिक मांग वाले व्यवसायों के साथ शीर्ष पर पहुंचाना है।
योग्यता के आधार पर या चिकित्सा के लिए राज्य प्रबंधन कोटा में सीट प्राप्त करना और किसी भी आईआईटी में प्रवेश पाना अधिकांश माता-पिता की आकांक्षा होती है, जब उनका बच्चा आठवीं कक्षा में पहुंचता है।
तिरुवनंतपुरम के एक व्यवसायी मनोहरन नायर, जिन्होंने अपनी इकलौती बेटी को कोट्टायम जिले के एक कोचिंग संस्थान में भेजा है, ने आईएएनएस को बताया, हमने रसोई में आग जलाए रखने के लिए दिन-रात मेहनत की और आखिरकार अब हम इस स्थिति में हैं कि हम अपनी बेटी को अच्छी शिक्षा दे सकें। पिछले साल इस विशेष संस्थान से बड़ी संख्या में छात्रों ने प्रवेश परीक्षा पास की और प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों में दाखिला लिया, तो मेरी बेटी को क्यों नहीं?
मैंने उसे उस संस्थान में डाल दिया है, क्योंकि वह ग्यारहवीं कक्षा में शामिल हुई थी और शिक्षकों ने मुझे सूचित किया था कि उसके पास चिकित्सा के लिए योग्यता सीट पाने के लिए शीर्ष ब्रैकेट तक पहुंचने का अच्छा मौका है।
यह केरल के अधिकांश मध्यवर्गीय माता-पिता की आकांक्षा है और वे उस सपने को पूरा करने के लिए कुछ भी कर सकते हैं।
दिलचस्प बात यह है कि छात्र इस बात को लेकर उत्सुक नहीं हैं कि केवल इंजीनियरिंग और चिकित्सा ही पेशा है और इसके बजाय लॉ कॉलेजों में प्रवेश का विकल्प भी चुन रहे हैं, जबकि कुछ चार्टर्ड एकाउंटेंट कोर्स करने की इच्छा रखते हैं।
मोटे तौर पर केरल के छात्र समुदाय के 80 प्रतिशत से अधिक लोग आईआईटी या इंजीनियरिंग कॉलेजों और मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए जेईई और एनईईटी प्रवेश परीक्षाओं को पास करने के लिए कोचिंग कक्षाओं में भाग लेने जाते हैं।
क्यों गन्ने की खेती पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चुनावी मुद्दा नहीं है?
‘गन्ने की खेती किसानों का मुद्दा है, चुनावी मुद्दा नहीं. अगर कोई पार्टी चुनावों में सिर्फ किसानों के मुद्दे पर जाएगी तो पक्का उसे हार का सामना करना पड़ेगा. दसअसल हमारे राजनीतिक दल किसानों को जाति-धर्म में बांटने में सफल हो गए हैं. इसलिए खेती अब चुनावी मुद्दा नहीं है.’ ये बातें हमसे भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौधरी राकेश टिकैत ने कही.
अगर हम थोड़ा-सा पीछे जाएं तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ना बेल्ट के किसान सड़कों पर ही नजर आए थे. पिछले पूरे साल गन्ना किसानों ने समय से भुगतान किए जाने समेत कई मसलों पर राष्ट्रीय राजमार्गों को जाम किया था, लेकिन जब चुनाव सिर पर है तो यह मुद्दा गायब क्यों हो गया? हमने यह सवाल शामली स्विंग व्यापारी क्यों विफल होते हैं? के किसान नेता कुलदीप पंवार से पूछा.
पंवार ने बताया, ‘पहली बात तो हमारा भारतीय किसान यूनियन इस विधानसभा चुनाव में किसी भी राजनीतिक दल को समर्थन नहीं कर रहा है. अब आपके सवाल का जवाब यह है कि हमारे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के चुनाव में वोट बिरादरी और धर्म के आधार पर पड़ता है. इसके अलावा प्रत्याशी से व्यक्तिगत संपर्क भी मायने रखता है. अब किसान तो हर बिरादरी के हैं. सिर्फ किसानी के नाम पर वे चुनाव के वक्त एकजुट नहीं होते हैं. एक लाइन में कहें तो वोट देने जाते समय किसानों के मन में खेती सबसे आखिरी मुद्दा होता है.’
सुनने में यह बड़ा अजीब लगता है कि आखिर सालभर खेती करने वाले किसान जब पांच साल में प्रदेश में सरकार बना रहे होते हैं तो खेती उनके लिए मायने क्यों नहीं रखती है? क्या गन्ने समेत दूसरी फसलों की खेती में कोई समस्या नहीं है जो सरकार दूर कर सके?
इस सवाल का जवाब हापुड़ के महमूदपुर गांव के गन्ना किसान अमरपाल और रणबीर ने हमें दिया. अमरपाल सिंह ने बताया, ‘किसानों के पास मुद्दों की कमी नहीं है. हम सड़क पर उतरे तो सरकार ने गन्ना किसानों के भुगतान के मसले को थोड़ा ठीक किया है. हालांकि अब भी कुछ मिलें देरी से भुगतान कर रही हैं. दूसरी तरफ किसानों को कर्ज का मर्ज देकर सरकार उनकी क्षमता कम कर रही है. नोटबंदी ने भी हमारी खेती चौपट की है.’
अमरपाल बस इतना बोल पाए थे कि रणबीर ने उन्हें बीच में टोक दिया और बोले, ‘देखिए भैया किसानों के मुद्दे बेशुमार हैं. इस पर कई बार हम वोट भी देते हैं लेकिन सब ठग लेते हैं. हमारे प्रधानमंत्री ने किसानों के फील गुड की बात कही थी लेकिन एक बार फिर फील गुड का नारा शीरा बनकर बह गया. अच्छे दिन चुनावी जुमला साबित हुआ. इसके बदले में हमें फसल बीमा मिला है जो हमारे किसी काम का नहीं है.’
फसल बीमा के मसले पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बहुत सारे किसान नाराज नजर आए. हमने भारतीय किसान यूनियन के मीडिया प्रभारी धमेंद्र मलिक से इस बारे में पूछा तो उन्होंने बताया, ‘गन्ना की खेती में फसल या तो पूरी तरह से बर्बाद होती है या फिर पूरी तरह सुरक्षित रहती है, लेकिन बीमा में आंशिक सुरक्षा का प्रावधान है. तो गन्ना किसानों के लिए बीमे का कोई मतलब नहीं है. इसके अलावा बीमा के नाम पर सबके खातों से पैसा कट गया है. यह बात किसानों को परेशान कर रही है.’
जब हमने उनसे यह पूछा कि क्या फसल बीमा के मसले पर चुनाव में गन्ना किसान एकजुट होकर वोट देंगे तो मलिक ने जवाब दिया नहीं. उन्होंने कहा, ‘खेती-किसानी चुनाव में मुद्दा नहीं है. चुनाव के बाद हम किसानों के मसले को लेकर सड़क पर उतरेंगे. प्रदेश में जो भी सरकार बनेगी हम उसे किसानों के हित में काम करने के लिए मजबूर करेंगे.’
जब हमने उनसे पूछा कि आप अभी एक किसान हितैषी सरकार क्यों नहीं चुन रहे हैं तो उन्होंने कहा, ‘पिछले कुछ दशकों में राजनीतिक दल किसानों को बांटने के अपने एजेंडे में सफल हो गए हैं. यह किसान और उनसे जुड़े संगठनों की हार है कि हम किसानों को पूरी तरह से एकजुट नहीं कर पाए हैं. ऐसे में चुनाव से पहले हम किसानों को एकजुट करने जाएंगे तो वो बंट जाएंगे लेकिन चुनाव के बाद वह हमारे साथ एकजुट होते हैं. तब उन्हें पता होता है कि हमारा ही संगठन उनके हितों के लिए सरकार से लड़ाई करेगा.’
मुजफ्फरनगर के रोहिणी खुर्द गांव के गन्ना किसान सोना त्यागी भी मलिक की बात का समर्थन करते नजर आए. उन्होंने कहा, ‘देखिए हम किसान हैं. हम घर में कम खेत और सड़क पर ज्यादा रहते हैं. अभी चुनाव बीत जाने दीजिए अभी सब जातियों में बंटे हुए हैं जैसे ही यह खत्म होगा किसान एकजुट हो जाएंगे. हालांकि हमें खेतों में ही रहना पसंद है पर जब सरकारें नहीं मानतीं तो मजबूरी में सड़क पर भी उतरना पड़ता है.’
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में करीब साठ से सत्तर विधानसभा सीटें ऐसी हैं जिन पर गन्ना किसान हार-जीत तय करते हैं. चुनाव से पहले भाजपा, कांग्रेस, सपा और बसपा जैसे सभी दलों ने गन्ना किसानों के भुगतान को लेकर एक-दूसरे पर खूब आरोप भी लगाए.
शामली की गुड़मंडी के व्यापारी और किसान ओमवीर कहते हैं, ‘किस पार्टी के किस नेता का नाम हम बताएं. सारी राजनीतिक पार्टियों के नेता जब इस इलाके में आते हैं तो दूसरे पर गन्ना किसानों और व्यापारियों की परवाह न करने का आरोप लगाते हैं लेकिन बड़ी चालाकी से चुनाव के ठीक पहले यह मसला रह ही नहीं जाता है. किसी भी पार्टी ने प्रत्याशियों को टिकट देते समय खेती-किसानी की परवाह नहीं की है. सब को जाति-धर्म के आधार पर टिकट दिया गया है.’
फिलहाल इस मामले की पड़ताल करते हुए कुछ स्वाभाविक से सवाल उठे कि इस विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी की जीत से गन्ना किसानों का कितना भला होगा? क्या आत्महत्या का सिलसिला रुकेगा? क्या फिर गन्ना किसानों को सड़क पर उतरना नहीं पड़ेगा? क्या वह राष्ट्रीय राजमार्ग जाम करने के बजाय खेतों में काम करके हरियाली की चमक बिखरेंगे? इन सवालों का जवाब भविष्य के गर्त में छिपा है.
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