खेलों का मानव बालक जीवन में महत्व | Original Article Rajiv Sharma*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research
लक्ष्य निर्धारण कर जीवन पथ पर आगे बढ़ें युवा
युवाअोंको संगठित होकर राष्ट्र निर्माण के कार्यों में भागीदार बनना चाहिए। उन्हें लक्ष्य का निर्धारण कर आगे बढ़ने की प्रवृत्ति अपनानी होगी। इससे से राष्ट्र का सही दिशा में निर्माण हो सकेगा। ये विचार नेहरू युवा केंद्र के जिला युवा समन्वयक जेएल पंवार ने व्यक्त किए। वे मंगलवार को नगर पालिका टाउन हाल में नेहरू युवा केंद्र की सामाजिक मुद्दों पर आधारित कार्यशाला की अध्यक्षता कर रहे थे। मुख्य अतिथि जोधपुर डिस्कॉम श्रमिक संघ के जिला अध्यक्ष चुन्नीलाल राजस्थानी ने प्रवृत्ति की दिशा का निर्धारण युवाओं के आदर्श स्वामी विवेकानंद की जीवनी के बारे में बताया। विशिष्ट अतिथि श्रवण गाेदारा ने शिक्षा संस्कार के बारे में जानकारी दी। सरपंच खूमचंद नायक ने ग्रामीण विकास पंचायतीराज की उपयोगिता बताई। एडवोकेट जगदीश रेण ने कानून संबंधी विभिन्न पहलुओं से युवाओं को अवगत करवाया। दलित एक्शन कमेटी के सीताराम नायक ने बाल श्रम को एक अभिशाप बताते हुए उद्योगों से बाल श्रमिकों को मुक्त करवाने की बात कही। राष्ट्रीय युवा कौर कुंभाराम मेहरड़ा ने बताया कि कार्यशाला में 40 युवा मंडलों के 90 युवाओं ने भाग लिया।
प्रवृत्ति की दिशा का निर्धारण
Year: Apr, 2017
Volume: 13 / Issue: 1
Pages: 704 - 708 (5)
Publisher: Ignited Minds Journals
Source:
E-ISSN: 2230-7540
DOI:
Published URL: http://ignited.in/a/58043
Published On: Apr, 2017
Article Details
खेलों का मानव बालक जीवन में महत्व | Original Article
Rajiv Sharma*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research
bihar board 12th class economics | आय निर्धारण
अवस्था में अपने सभी संसाधनों की पूर्ण क्षमता का प्रयोग नहीं कर रही है तो इसे अपूर्ण-रोजगार सन्तुलन कहते हैं। कीन्स, ने अपूर्ण-रोजगार सन्तुलन के आधार पर ही आय एवं रोजगार सिद्धान्त का प्रतिपादन किया था।
आधिक्य को स्वीकार नहीं करते थे तथा अर्थव्यवस्था में वे बेरोजगारी की अवस्था को भी स्वीकार नहीं करते थे।
सेवाओं का उत्पादन नहीं करते हैं बल्कि उन वस्तुओं अथवा सेवाओं का उत्पादन करते हैं जिनके उत्पादन में उन्हें कुशलता या विशिष्टता प्राप्त होती है। इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में लोग
संभव नहीं रहता है । इसके बाद पूर्ण-रोजगार प्राप्ति की बाधाएँ उत्पन्न हो जाती हैं । यदि मजदूरी दर किसी ऐसे स्तर पर स्थिर हो जाती है जहाँ श्रम की आपूर्ति, श्रम की माँग से ज्यादा होती है तो श्रम के आधिक्य के कारण अतिरिक्त श्रम अनैच्छिक रूप से बेरोजगार हो जाता है। श्रम की लोचहीनता श्रम की आपूर्ति की अधिकता को कम करने में बाधा पैदा करती है। अतः श्रम की अनम्यता पूर्ण-रोजगार स्तर की प्राप्ति में बाधा उत्पन्न करती है।
जीवन के मूल्य
किसी भी इंसान के जीवन में मूल्यों का अहम योगदान रहता है क्योंकि इन्हीं के आधार पर अच्छा-बुरा या सही-गलत की परख की जाती है। इंसान के जीवन की सबसे पहली..
फाइल फोटो
किसी भी इंसान के जीवन में मूल्यों का अहम योगदान रहता है क्योंकि इन्हीं के आधार पर अच्छा-बुरा या सही-गलत की परख की जाती है। इंसान के जीवन की सबसे पहली पाठशाला उसका अपना परिवार ही होता है और परिवार समाज का एक अंग है। उसके बाद उसका विद्यालय, जहां से उसे शिक्षा हासिल होती है। परिवार, समाज और विद्यालय के अनुरूप ही एक व्यक्ति में सामाजिक गुणों और मानव मूल्यों का विकास होता है। प्राचीन काल के भारत में पाठशालाओं में धार्मिक शिक्षा के साथ मूल्य आधारित शिक्षा भी जरूरी होती थी। लेकिन वक्त के साथ यह कम होता चला गया और आज वैश्वीकरण के इस प्रवृत्ति की दिशा का निर्धारण युग में मूल्य आधारित शिक्षा की भागीदारी लगातार घटती जा रही है। सांप्रदायिकता, जातिवाद, हिंसा, असहिष्णुता और चोरी-डकैती आदि की बढ़ती प्रवृत्ति समाज में मूल्यों के विघटन के ही उदाहरण हैं।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद-15 किसी भी व्यक्ति के साथ जाति, धर्म, भाषा और लिंग के आधार पर भेदभाव की मुखालफत करता है। लेकिन सच यह है कि संविधान लागू होने के पैंसठ साल बाद भी हमारे विद्यालयों में जाति, धर्म, भाषा और लिंग के आधार पर भेदभाव करने वाले उदाहरण आसानी से प्रवृत्ति की दिशा का निर्धारण मिल जाएंगे। विभिन्न विद्यालयों में अपने शिक्षण अनुभवों के दौरान मैंने देखा कि विद्यालय में पानी भरने के अलावा सफाई का काम लड़कियों से ही कराया जाता है। अध्यापक पीने के लिए पानी कुछ खास जाति के बच्चों को छोड़ कर दूसरी जातियों के बच्चों से ही मंगवाते हैं। ऐसे उदाहरण भी देखने में आए कि बच्चे मिड-डे-मील अपनी-अपनी जाति के समूह में ही बैठ कर खा रहे थे। स्कूल में कबड्डी जैसे खेल सिर्फ लड़के खेलते हैं। इस प्रकार के अनेक उदाहरण हमारे आसपास के स्कूलों में देखने को मिल जाएंगे।
हाल ही में नई दिल्ली स्थित एनसीईआरटी ने वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिक मूल्यों की सूची तैयार की है। इसका बदलाव हम प्राथमिक स्तर की पाठ्यपुस्तकों में भी देख सकते हैं। कुछ साल पहले तक पाठ्यपुस्तकों में भी भेदभाव करने वाले चित्र नजर आते थे, मसलन, झाड़ू लगाती हुई लड़की, खाना बनाती औरतें, हल चलाते हुए किसान और उपदेश देते गुरु आदि। लेकिन पाठ्यपुस्तकों में बदलाव के बाद इन चित्रों में गुणात्मक बदलाव देखने को मिलता है। मसलन, सफाई करते हुए लड़के और खेलती हुई लड़कियां आदि।
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पाठ्य-पुस्तकों में जाति, धर्म और लिंग आधारित चित्रों में जो रूढ़िबद्ध जड़ता थी, उससे आगे बढ़ कर अब तस्वीर का दूसरा पहलू भी सामने आ रहा है। यह बदलाव केवल चित्र के स्तर पर नहीं, बल्कि विषय-वस्तु और निर्देशों के स्तर पर भी देखा जा सकता है। लेकिन यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि जिन प्रवृत्ति की दिशा का निर्धारण मूल्यों की बात पाठ्य-पुस्तक करती है, उनका उपयोग शिक्षक विद्यालय में कैसे कर रहा है! यह एक अजीब विडंबना है कि पाठ्यपुस्तकों से शिक्षाविदों ने सामाजिक और मानवीय भेदभाव को अभिव्यक्त करने वाले चित्रों को तो बदल दिया, मगर विद्यालयी वातावरण में वह आज भी उसी शक्ल में मौजूद है।
आमतौर पर शिक्षक बच्चों को पाठ पढ़ाना और नैतिक सीख देना ही काफी समझते हैं और विद्यार्थी के व्यवहार में मूल्यगत बदलाव पर कम ध्यान देते हैं, क्योंकि जिस जाति या समाज से शिक्षक संबंध रखता है, उसके मुताबिक उसकी अपनी कुछ मान्यताएं होती हैं। उन अतार्किक जड़बद्ध सामाजिक-धार्मिक पूर्वाग्रहों की वजह से शिक्षक तर्कशील होकर नहीं सोच पाता है, क्योंकि उस पर जाति, धर्म और समाज विशेष की पहले से बनी धारणाएं हावी रहती हैं। उन्हीं रूढ़िबद्ध मान्यताओं के अनुसार वह चलना चाहता है। लेकिन जब तक शिक्षक अपने आपको तर्क की कसौटी पर रख कर नहीं सोचेगा, तब तक वह न तो अपने व्यवहार में परिवर्तन ला सकता है और न ही विद्यार्थियों में मूल्यों के प्रति आस्था विकसित कर सकता है।
एक शिक्षक का फर्ज बनता है कि वह पाठ्य-पुस्तकों में दिए गए ‘मूल्यों’ का महत्त्व समझे, उन्हें अपने जीवन व्यवहार का हिस्सा बनाए, फिर बच्चों के दैनिक व्यवहार में लाने का प्रयास करे। स्कूलों से समाज की अपेक्षा होती है कि वह तर्कशील मनुष्य प्रदान करे। इसलिए स्कूलों में ही जरूरी मानव मूल्यों की शिक्षा नहीं दी गई तो कहीं न कहीं राष्ट्र के प्रति अपनी नैतिक जिम्मेदारी निभाने से हम चूक जाएंगे। लिहाजा, आवश्यक है कि पाठ्य-पुस्तकों में उल्लिखित मूल्यों के प्रति शिक्षक समाज चिंतनशील हो, उन्हें बच्चों के दैनिक जीवन में लेकर आए। (मुजतबा मन्नान)
आज का मीन राशिफल 17 दिसंबर 2022: मिल सकती प्रवृत्ति की दिशा का निर्धारण है कोई खुशखबरी, आर्थिक नुकसान से अपसेट रहेगा मूड
ग्रह स्थिति ज्यादा सकारात्मक नहीं है. शेयर, सट्टा आदि जैसे रिस्क प्रवृत्ति के कार्यों से दूर रहें, क्योंकि इस समय नुकसान होने जैसी स्थिति बन रही है.
आपका आज का दिन कैसा रहने वाला है. मीन राशि के लोगों को आज के दिन क्या-क्या उपाय करने चाहिए, जिससे उनका दिन शुभ रहे. इसके अलावा वे कौन-सी बातें हैं, जिन्हें ध्यान में रखकर आप आज होने वाले नुकसान से बच सकते हैं. इसके साथ ही आज आपको किन चीजों से सावधान रहना चाहिए. आज के दिन आपके लिए कौन-सा रंग, कौन-सा नंबर और कौन-सा अक्षर शुभ है, ये भी जानेंगे. आइए, जानते हैं आज का मीन राशिफल.
मीन राशिफल
पारिवारिक कार्यों और समस्याओं को सुलझाने में आपका विशेष सहयोग रहेगा. फोन द्वारा कोई महत्वपूर्ण शुभ सूचना मिलेगी, तथा किसी प्रिय मित्र से भी बातचीत होगी. मुश्किल समय में कोई राजनैतिक सहायता भी मिल सकती है.
ग्रह स्थिति ज्यादा सकारात्मक नहीं है. शेयर, सट्टा आदि जैसे रिस्क प्रवृत्ति के कार्यों से दूर रहें, क्योंकि इस समय नुकसान होने जैसी स्थिति बन रही है. कोई भी महत्वपूर्ण निर्णय लेने से पहले किसी अनुभवी व्यक्ति की भी सलाह अवश्य लें.
व्यापारिक गतिविधियां अभी यथावत ही रहेंगी. परंतु वर्तमान स्थिति को देखते हुए धैर्य और संयम रखना ही उचित है. अभी कोई भी कारोबारी योजना लंबित हो सकती हैं. सरकारी सेवारत लोग अपना टारगेट पूरा करने में समर्थ रहेंगे.
लव फोकस- किसी खास मित्र का सहयोग आपकी कई समस्याओं को हल करेगा. तथा प्रेम संबंधों में और अधिक नज़दीकियां बढ़ेगी.
सावधानियां- स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही ना करें अनियमित खानपान की वजह से छाती में जलन और गैस की दिक्कत रह सकती हैं. फल आदि अधिक मात्रा में सेवन करें. और हल्का आहार लें.
लकी कलर- लाल
लकी अक्षर- न
फ्रेंडली नंबर- 9
लेखक के बारे में: डॉ. अजय प्रवृत्ति की दिशा का निर्धारण भांबी, ज्योतिष का एक जाना-पहचाना नाम हैं. डॉ. भांबी नक्षत्र ध्यान के विशेषज्ञ और उपचारकर्ता भी हैं. एक ज्योतिषी के रूप में पंडित भांबी की ख्याति दुनिया भर में फैली है. इन्होंने अंग्रेजी और हिंदी भाषा में कई किताबें लिखी हैं. साथ ही वह कई भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय समाचार पत्र-पत्रिकाओं के लिए लेख लिखते हैं. उनकी हालिया किताब प्लैनेटरी मेडिटेशन- ए कॉस्मिक अप्रोच इन इंग्लिश, काफी प्रसिद्ध हुई है. थाईलैंड के उप प्रधानमंत्री द्वारा बैंकाक में उन्हें World Icon Award 2018 से सम्मानित किया गया. उन्हें अखिल भारतीय ज्योतिष सम्मेलन में लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड भी मिल चुका है.
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