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Dollar Vs Rupees: रुपया धड़ाम! 51 पैसा टूटकर 80 रुपये के पार पहुंचा डॉलर, जानिए क्यों गिर रहा रुपया?

Dollar Vs Rupees: US Fed ने बुधवार को उम्मीद के मुताबिक ब्याज दरों में 0.75 फीसदी की बढ़ोतरी की है। इसका असर भारतीय शेयर मार्केट से लेकर रुपये पर देखने को मिल रहा है। गुरुवार को शुरुआती कारोबार में रुपया में 51 पैसे डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है की रिकॉर्ड गिरावट आई है। एक डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया टूटकर 80.48 हो गया है।

Vikash Tiwary

Written By: Vikash Tiwary @ivikashtiwary
Updated on: September 22, 2022 12:26 IST

51 पैसा टूटकर डॉलर की. - India TV Hindi

Photo:INDIA TV 51 पैसा टूटकर डॉलर की कीमत 80 रुपये के पार

Highlights

  • आजादी के बाद से ही रुपया होता रहा कमजोर
  • एक डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया टूटकर 80.48 हो गया है
  • US Fed ने बुधवार को उम्मीद के मुताबिक ब्याज दरों में 0.75 फीसदी की बढ़ोतरी की है

Dollar Vs Rupees: US Fed ने बुधवार को उम्मीद के मुताबिक ब्याज दरों में 0.75 फीसदी की बढ़ोतरी की है। इसका असर भारतीय शेयर मार्केट से लेकर रुपये पर देखने को मिल रहा है। गुरुवार को शुरुआती कारोबार में रुपया में 51 पैसे की रिकॉर्ड गिरावट आई है। एक डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया टूटकर 80.48 हो गया है। यह रुपये का अब तक का सबसे निचला स्तर है। रुपये में गिरावट से एक ओर जहां व्यापार घाटा बढ़ेगा वहीं दूसरी ओर जरूरी सामान के दाम में बढ़ोतरी होगी। इसका दोतरफा बोझ सरकार से लेकर आम आदमी पर पड़ेगा। आईए जानते हैं कि क्यों टूट रहा है रुपया और इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या होगा असर?

क्यों टूट रहा है रुपया

गिरावट का एक और कारण डॉलर सूचकांक का लगातार बढ़ना भी बताया जा रहा है। इस सूचकांक के तहत पौंड, यूरो, रुपया, येन जैसी दुनिया की बड़ी मुद्राओं के आगे अमेरिकी डॉलर के प्रदर्शन को देखा जाता है। सूचकांक के ऊपर होने का मतलब होता है सभी मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की मजबूती। ऐसे में बाकी मुद्राएं डॉलर के मुकाबले गिर जाती हैं।इस साल डॉलर सूचकांक में अभी तक नौ प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जिसकी बदौलत सूचकांक इस समय 20 सालों में अपने सबसे ऊंचे स्तर पर है। यही वजह है कि डॉलर के आगे सिर्फ रुपया ही नहीं बल्कि यूरो की कीमत भी गिर गई है।

रुपये की गिरावट का तीसरा कारण यूक्रेन युद्ध माना जा रहा है। युद्ध की वजह से तेल, गेहूं, खाद जैसे उत्पादों, जिनके रूस और यूक्रेन बड़े निर्यातक हैं, की आपूर्ति कम हो गई है और दाम बढ़ गए हैं। चूंकि भारत विशेष रूप से कच्चे तेल का बड़ा आयातक है, देश का आयात पर खर्च बहुत बढ़ गया है। आयात के लिए भुगतान डॉलर में होता है जिससे देश के अंदर डॉलरों की कमी हो जाती है और डॉलर की कीमत ऊपर चली जाती है।

कहां तक टूट सकता है रुपया?

बैंक ऑफ अमेरिका के अनुसार, भारतीय रुपया साल के अंत तक 81 प्रति डॉलर तक टूट सकता है। इस साल अब तक भारतीय रुपया 9% से डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है अधिक लुढ़क चुकी है। डॉलर में मजबूती और कच्चे तेल कीमतों में तेजी ने रुपया को कमजोर करने का काम किया है। भारत अपनी जरूरत का लगभग 80% कच्चा तेल आयात करता है। इससे रुपये पर दबाव बढ़ा है।

रुपये में कमजोरी का क्या होगा असर

भारत तेल से लेकर जरूरी इलेक्ट्रिक सामान और मशीनरी के साथ मोबाइल-लैपटॉप समेत अन्य गैजेट्स आयात करता है। रुपया कमजोर होने के कारण इन वस्तुओं का आयात पर अधिक रकम चुकाना पड़ रहा है। इसके चलते भारतीय बाजार में इन वस्तुओं की कीमत में बढ़ोतरी हो रही है। भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी कच्चा तेल विदेशों से खरीदता है। इसका भुगतान भी डॉलर में होता है और डॉलर के महंगा होने से रुपया ज्यादा खर्च होगा। इससे माल ढुलाई महंगी होगी, इसके असर से हर जरूरत की चीज पर महंगाई की और मार पड़ेगी।

रुपये पर सीधा असर

व्यापार घाटा बढ़ने का चालू खाता के घाटा (सीएडी) पर सीधा असर पड़ता है और यह भारतीय रुपये के जुझारुपन, निवेशकों की धारणाओं और व्यापक आर्थिक स्थिरता को प्रभावित करता है। चालू वित्त वर्ष में सीएडी के जीडीपी के तीन फीसदी या 105 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। आयात-निर्यात संतुलन बिगड़ने के पीछे रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध से तेल और जिसों के दाम वैश्विक स्तर पर बढ़ना, चीन में कोविड पाबंदियों की वजह से आपूर्ति श्रृंखला बाधित होना और आयात की मांग बढ़ने जैसे कारण हैं। इसकी एक अन्य वजह डीजल और विमान ईधन के निर्यात पर एक जुलाई से लगाया गया अप्रत्याशित लाभ कर भी है।

देश के निर्यात में गिरावट ऐसे समय हुई है जब तेल आयात का बिल बढ़ता जा रहा है। भारत ने अप्रैल से अगस्त के बीच तेल आयात पर करीब 99 अरब डॉलर खर्च किए हैं जो पूरे 2020-21 की समान अवधि में किए गए 62 अरब डॉलर के व्यय से बहुत ज्यादा है। सरकार ने हाल के महीनों में आयात को हतोत्साहित करने के लिए सोने जैसी वस्तुओं पर आयात शुल्क बढ़ाने, कई वस्तुओं के आयात पर पाबंदी लगाने तथा घरेलू उपयोग में एथनॉल मिश्रित ईंधन की हिस्सेदारी बढ़ाने के प्रयास करने जैसे कई कदम उठाए हैं। इन कदमों का कुछ लाभ हुआ है और आयात बिल में कुछ नरमी जरूर आई है लेकिन व्यापक रूझान में बड़े बदलाव की संभावना कम ही नजर आती है।

आजादी के बाद से ही रुपया होता रहा कमजोर

भारत को 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली। उस समय एक डॉलर की कीमत एक रुपये हुआ करती थी, लेकिन जब भारत स्वतंत्र हुआ तब उसके पास उतने पैसे नहीं थे कि अर्थव्यवस्था को चलाया जा सके। उस समय देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू (Pandit Jawaharlal Nehru) थे। उनके नेतृत्व वाली सरकार ने विदेशी व्यापार को बढ़ाने के लिए रुपये की वैल्यू को कम करने का फैसला किया। तब पहली बार एक डॉलर की कीमत 4.डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है 76 रुपये हुआ था।

पहली बार की आर्थिक मंदी ने रुपये की कमर तोड़ दी

देश के आजाद होने के बाद से पहली बार 1991 में मंदी आई। तब केंद्र में नरसिंम्हा राव (Narasimha Rao) की सरकार थी। उनकी अगुआई में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत की गई, जिसने रुपये की कमर तोड़ दी। रिकार्ड गिरावट के साथ रुपया प्रति डॉलर 22.74 पर जा पहुंचा। दो साल बाद रुपया फिर कमजोर हुआ। तब एक डॉलर की कीमत 30.49 रुपया हुआ करती थी। उसके बाद से रुपये के कमजोर होने का सिलसिला चलता रहा है। वर्ष 1994 से लेकर 1997 तक रुपये की कीमतों में उतार-चढ़ाव देखने को मिला। उस दौरान डॉलर के मुकाबले रुपया 31.37 से 36.31 रुपये के बीच रहा।

डॉलर के मुकाबले रुपये में अबतक की सबसे बड़ी गिरावट, रुपया गिरने का मतलब क्या है, आम आदमी को इससे कितना नफा-नुकसान

भारतीय मुद्रा (रुपया) में हो रही गिरावट के बाद गुरुवार को एक अमरीकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 19 पैसे की गिरावट डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है के साथ 79.04 प्रति डॉलर के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया.

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अपूर्वा राय

  • नई दिल्ली,
  • 30 जून 2022,
  • (Updated 30 जून 2022, 3:06 PM IST)

एक अमेरिकी डॉलर 79.04 रुपये का हो गया है,

अगर डॉलर की कीमत बढ़ती है, तो हमें आयात के लिए ज्यादा खर्च करना पड़ेगा

आपके और हमारे लिए रुपया गिरने का क्या अर्थ है?

भारतीय रुपये (Indian Rupee) में गिरावट का सिलसिला लगातार जारी है. अमेरिकी डॉलर (Dollar) की तुलना में रुपया अपने रिकॉड निचले स्तर पर है. मतलब एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 79.04 रुपये पहुंच गया है. यह स्तर अब तक का सर्वाधिक निचला स्तर है. देश की आजादी के बाद से ही रुपये की वैल्यू लगातार कमजोर ही हो रही है. भले ही रुपये में आने वाली ये गिरावट आपको समझ में न आती हो या आप इसे गंभीरता से ना लेते हों, लेकिन हमारे और आपके जीवन पर इनका बड़ा असर पड़ता है.

आपके और हमारे लिए रुपया डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है गिरने का क्या अर्थ है? रुपये की गिरती कीमत हम पर किस तरह से असर डालती है. आइए जानते हैं.

क्या होता है एक्सचेंज रेट

दो करेंसी के बीच में जो कनवर्जन रेट होता है उसे एक्सचेंज रेट या विनिमय दर कहते हैं. यानी एक देश की करेंसी की दूसरे देश की करेंसी की तुलना में वैल्यू ही विनिमय दर कहलाती है. एक्सचेंज रेट तीन तरह के डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है होते हैं. फिक्स एक्सचेंज रेट में सरकार तय करती है कि करेंसी का कनवर्जन रेट क्या होगा. मार्केट में सप्लाई और डिमांड के आधार पर करेंसी की विनिमय दर बदलती रहती है. अधिकांश डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है एक्सचेंज रेट फ्री-फ्लोटिंग होती हैं. ज्यादातर देशों में पहले फिक्स एक्सचेंज रेट था.

रुपया गिरने का क्या अर्थ है?

आसान भाषा में समझें तो रुपया गिरने का मतलब है डॉलर के मुकाबले रुपये का कमजोर होना. यानी अगर रुपये की कीमत गिरती है, तो हमें आयात के लिए ज्यादा खर्च करना पड़ेगा और निर्यात सस्ता हो जाएगा. इससे मुद्राभंडार घट जाएगा.

भारत अपने कुल तेल का करीब 80 फीसदी तेल आयात करता है. जिसके लिए डॉलर में भुगतान होता है. मान लीजिए सरकार को कोई सामान आयात करने के लिए 10 लाख डॉलर चुकाने हैं, आज की तारीख में रुपया 79 रुपये से भी अधिक गिर गया है. पहले जहां सरकार को उस सामान के आयात के लिए 7 करोड़ 5 लाख रुपये चुकाने पड़ रहे थे अब रुपये की कीमत गिरने से 7 करोड़ 9 लाख रुपये चुकाने पड़ेंगे.

रुपये की गिरती कीमत आम आदमी पर कैसे असर डालती है?

रुपये की वैल्यू गिरने से भारत को तेल आयात करना और मंहगा पड़ेगा इसलिए पेट्रोल और डीजल की कीमतें और ऊपर चली जाएंगी. इसका सीधा असर परिवहन की लागत पर पड़ेगा और इस तरह आम आदमी की जेब भी ढीली हो जाएगी.

रुपए के कमजोर होने से भारतीय छात्रों के लिए विदेशों में पढ़ना महंगा हो जाएगा.

अगर आप इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने जा रहे हैं, तो आपको ज्यादा कीमत चुकानी होगी, क्योंकि इनके उत्पादन में कई आयातित चीजों का इस्तेमाल होता है.

दैनिक जीवन की ऐसी कई चीजें जो हम इस्तेमाल करते हैं उसके लिए ट्रांसपोर्ट का खर्च आता है. तेल की महंगी होती कीमतों का असर माल भाड़े पर पड़ता है, जिससे इन सब चीजों की कीमत भी बढ़ जाती है.

रुपये की कमजोरी से खाद्य तेलों और दालों की कीमतें बढ़ सकती हैं.

सरकार गिरते रुपये को उठाने के लिए ब्याज दरों डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है में वृद्धि करती है. क्योंकि रुपये की गिरावट को रोकने का वही एक तरीका होता है. इससे लोन लेना महंगा हो सकता है.

स्वामीनाथन अय्यर का लेख: इसलिए तेजी से गिर रहा रुपया लेकिन डॉलर के मुकाबले 80 पर भी चला जाए तो चिंता नहीं. जानें ऐसा क्यों कह रहे अर्थशास्त्री

Why Rupee Falling: डॉलर के मुकाबले रुपया गिरते-गिरते 78 रुपये तक के लेवल पर पहुंच चुका है। अर्थशास्त्री मानते हैं कि अगर ये 80 रुपये तक भी गिर जाए तो चिंता की बात नहीं है। गिरते रुपये को बचाने के लिए रिजर्व बैंक डॉलर बेच रहा है, लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए। पाकिस्तान और श्रीलंका की हालत बद से बदतर इसलिए हुई है क्योंकि आज उनके पास आयात के लिए विदेशी मुद्रा नहीं बची है।

why we should not worry about rupee even if it falls up to the level of 80 against dollar

स्वामीनाथन अय्यर का लेख: इसलिए तेजी से गिर डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है रहा रुपया लेकिन डॉलर के मुकाबले 80 पर भी चला जाए तो चिंता नहीं. जानें ऐसा क्यों कह रहे अर्थशास्त्री

पहले समझिए गिरता क्यों जा रहा है रुपया

रुपये की गिरावट की वजहों को जानने से पहले आपके लिए ये जानना जरूरी है कि सिर्फ रुपया ही नहीं है जो डॉलर के मुकाबले कमजोर हो रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध और फेडरल रिजर्व की तरफ से ब्याज दरें बढ़ाए जाने के बाद अमेरिका में तेजी से ग्लोबल मनी पहुंचना शुरू हुई है। इसके चलते रुपये के साथ-साथ दुनिया भर की करंसी कमजोर हो रही हैं। पिछले साल रुपया 5 फीसदी गिरा, जबकि यूरो 7 फीसदी और येन 14 फीसदी गिरा। चीन के युआन में भी भारी गिरावट आई।

पिछले सालों में यूं गिरता गया रुपया

2020 के शुरुआती दिनों में डॉलर की तुलना में एक्सचेंज रेट 71 रुपये के लेवल पर था। कोरोना के आने के बाद यह कमजोर होकर 74-76 रुपये के करीब जा पहुंचा। रूस-यूक्रेन युद्ध ने इसे 78.50 के लेवल तक धकेला। अब महंगाई की डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है मार इसे और कमजोर बना रही है। अगर ये 80 तक पहुंच गया तो सियासी गलियारे में भूचाल आ सकता है और विपक्ष इस बात को लेकर मोदी सरकार को घेरने की कोशिश करेगा कि उनके कार्यकाल में रुपया बहुत अधिक गिर गया, जिससे अर्थव्यवस्था कमजोर हो गई है। हालांकि, बहुत से अर्थशास्त्री और विशेषज्ञ मान रहे हैं कि अगर 80 रुपये तक भी रुपया गिर जाता है तो चिंता की बात नहीं है। उनका मानना है कि रुपये के 80 के लेवल तक गिर जाने पर यह कहना गलत होगा कि अर्थव्यवस्था कमजोर हो गई है।

EXPLAINER: डॉलर क्यों महंगा हो रहा है और रुपया समेत दुनियाभर की करेंसी फिसल रही है?

EXPLAINER: अभी की महंगाई में डिमांड और सप्लाई दोनों का रोल है. डॉलर का प्रदर्शन इसलिए मजबूत हो रहा है कि, क्योंकि दुनियाभर की इकोनॉमी की हालत खराब है. वहां की करेंसी की वैल्यु भी घट रही है. डॉलर को इससे डबल बेनिफिट मिल रहा है.

पूरी दुनिया की करेंसी इस समय दबाव में है. एकमात्र अमेरिकन डॉलर मजबूती के साथ आगे बढ़ रहा है. डॉलर के मुकाबले रुपया 82 के स्तर को पार कर चुका है. अलग-अलग सर्वे के मुताबिक, यह 83 से 84 के स्तर तक फिसल सकता है. इस साल अब तक रुपए में 10 फीसदी की गिरावट आ चुकी है. ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिर क्या वजह है कि दुनियाभर की करेंसी फिसल रही है, जबकि डॉलर लगातार मजबूत हो रहा है. Credence Wealth Advisors के फाउंडर कीर्तन ए शाह की मदद से इस आर्टिकल में यह भी जानने की कोशिश करेंगे कि दुनिया डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है की दूसरी करेंसी के मुकाबले रुपए का प्रदर्शन कितना मजबूत या कमजोर है.

कोरोना महामारी से हुई इसकी शुरुआत

इसकी शुरुआत साल 2020 में हुआ जब कोरोना वायरस ने दस्तक दिया. महामारी के दौरान हर तरह की आर्थिक गतिविधि रोक दी गई जिसके कारण जीडीपी में गिरावट आई. इसके अलावा बड़े पैमाने पर रोजगार गए और कंपनियों को भारी नुकसान हुआ. आर्थिक गतिविधियों में सुधार के मकसद से दुनियाभर के सेंट्रल बैंकों ने इंट्रेस्ट रेट में कटौती की और लिक्विडिटी बढ़ाने पर फोकस किया. डेवलप्ड इकोनॉमी में इंट्रेस्ट रेट घटकर करीब जीरो पर आ गया है, जबकि रिजर्व बैंक ने रेपो रेट घटाकर 4 फीसदी तक कर दिया था.

शेयर बाजार की तरफ गया एक्सेस लिक्विडिटी

कर्ज मिलना आसान हो गया और हर किसी के हाथ में पैसे आ गए. कोरोना महामारी के दौरान शेयर बाजार में जो भारी गिरावट आई थी वह अब लोगों का फेवरेट डेस्टिनेशन बन गया. लिक्विडिटी बढ़ने के बाद सारा पैसा शेयर बाजार और कमोडिटी की तरफ जाने लगा और दोनों रिकॉर्ड हाई पर पहुंच गया. जब इंट्रेस्ट रेट घटता है तो बॉन्ड यील्ड भी घटने लगता है.

डिमांड आधारित है यह महंगाई

यील्ड घट गया, स्टॉक मार्केट और कमोडिटी प्राइस आसमान पर पहुंच गया जिसके कारण महंगाई बढ़ गई. इसे डिमांड आधारित महंगाई कहते हैं. यह ऐसी महंगाई होती है जिसमें एक्सेस डिमांड का सबसे बड़ा रोल होता है. चीन दुनिया का सबसे बड़ा मैन्युफैक्चरर है. उसने कोरोना पर कंट्रोल करने के लिए लॉकडाउन को लंबे समय तक गंभीरता से लागू किया. इसस सप्लाई की समस्या पैदा हो गई. इससे महंगाई को सपोर्ट मिला. फरवरी 2022 में रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया जिसके कारण कच्चा तेल आसमान पर पहुंच गया. इससे महंगाई की आग को और हवा मिली. यूरोप में गैस की किल्लत पैदा हो गई जिससे भी महंगाई को सपोर्ट मिला.

सप्लाई साइड की समस्या से भी महंगाई

कुल मिलाकर अभी की महंगाई डिमांड आधारित और यूक्रेन क्राइसिस के कारण सप्लाई आधारित भी है. महंगाई का हाल ये है कि अमेरिका और इंग्लैंड में इंफ्लेशन टार्गेट 2 फीसदी है जो 9-10 फीसदी पर पहुंच गया है. रिजर्व बैंक ने मॉनिटरी पॉलिसी पर नियंत्रण बनाए रखा जिसके कारण 6 फीसदी की महंगाई का लक्ष्य 7 फीसदी के नजदीक है.

मांग में कमी के लिए इंट्रेस्ट रेट में बढ़ोतरी

महंगाई को काबू में लाने के लिए फेडरल रिजर्व, बैंक ऑफ इंग्लैंड, यूरोपियन सेंट्रल बैंक समेत दुनिया के सभी सेंट्रल बैंक इंट्रेस्ट रेट में भारी बढ़ोतरी कर रहे हैं जिससे मांग में कमी आए. इंट्रेस्ट रेट में बढ़ोतरी के कारण फिक्स्ड इनकम के प्रति आकर्षण बढ़ा और शेयर बाजार के प्रति आकर्षण घटा है. इसलिए दुनियाभर के शेयर बाजार में गिरावट है और बॉन्ड यील्ड उछल रहा है.

महंगाई से करेंसी की क्षमता घट जाती है

महंगाई बढ़ने से करेंसी की खरीद क्षमता घट जाती है. डॉलर के मुकाबले दुनिया की तमाम करेंसी में गिरावट आई है. जब कोई सेंट्रल बैंक इंट्रेस्ट रेट बढ़ाता है जो इसका मतलब होता है कि वहां की इकोनॉमी मजबूत स्थिति में है. इकोनॉमी को लेकर मजबूती के संकेत मिलने पर उस देश की करेंसी भी मजबूत हो जाती है. एक्सपर्ट का कहना है कि डॉलर का प्रदर्शन ज्यादा मजबूत दिख रहा है, क्योंकि कोरोना के बाद दुनिया की तमाम इकोनॉमी डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है की हालत तो खराब है ही और उनकी करेंसी की वैल्यु भी घटी है. इसके कारण डॉलर को डबल मजबूती मिल रही है.

डॉलर के मुकाबले एक महीने की ऊंचाई पर पहुंचा रुपया, जानिए क्यों आई मजबूती

पिछले महीने ही डॉलर के मुकाबले रुपया 80.06 के अब तक के सबसे निचले स्तर तक पहुंचा था. पिछले कुछ समय से रुपये में मजबूती का रुख है

डॉलर के मुकाबले एक महीने की ऊंचाई पर पहुंचा रुपया, जानिए क्यों आई मजबूती

डॉलर के मुकाबले रुपये में मजबूती का रुख देखने को मिल रहा है. मंगलवार के शुरुआती कारोबार में रुपया डॉलर के मुकाबले एक महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया. रुपया फिलहाल मजबूती के साथ 79 के स्तर से नीचे कारोबार कर रहा है. बदलती आर्थिक स्थितियों और शेयर बाजार के मजबूत प्रदर्शन की वजह से एक बार फिर विदेशी निवेश का रुख भारत की ओर हुआ है, जिससे रुपये को मजबूती मिली है. वहीं डॉलर में आई कमजोरी से भी रुपये को फायदा मिला है.

कहां पहुंचा रुपया

डॉलर के मुकाबले रुपया का पिछला बंद स्तर 79.03 था. आज रुपया इस स्तर के मुकाबले मजबूती के साथ 78.95 के स्तर पर खुला दोपहर के कारोबार तक रुपया 78.49 के स्तर तक मजबूत हुआ. दोपहर 12 बजे के करीब रुपया मजबूती के साथ 78.6 के करीब कारोबार कर रहा था. पिछले महीने ही डॉलर के मुकाबले रुपया 80.06 के अब तक के सबसे निचले स्तर तक पहुंचा था. हालांकि जुलाई के अंत से रुपये में मजबूती का रुख देखने को मिल रहा है. दरअसल भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर निवेशकों को भरोसा बढ़ रहा है. वहीं शेयर बाजार में भी पिछले कुछ समय से मजबूती देखने को मिल रही है और विदेशी निवेशकों की खरीदारी बढ़ रही है. कैपिटल का फ्लो एक बार फिर घरेलू मार्केट की तरफ होने से रुपये को सहारा मिला है. अपने निचले स्तरों पर इस साल अबतक डॉलर के मुकाबले रुपया 7 प्रतिशत से ज्यादा टूटा था. हालांकि अब नुकसान घटकर 6 प्रतिशत से नीचे आ गया है.

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रुपये में मजबूती का क्या होगा फायदा

भारत जैसे आयात पर निर्भर देशों के लिए घरेलू करंसी का मजबूत होना फायदे का सौदा होता है क्योंकि इससे उन पर आयात बिल का बोझ नहीं बढ़ता. इसके साथ ही रुपये में मजबूती से रिजर्व बैंक पर भी दबाव खत्म हो जाता है और घरेलू करंसी को बचाने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार को इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं होती. वहीं रुपये में मजबूती से महंगाई का असर कुछ कम हो जाता है क्योंकि डॉलर में हुई खरीद का असर कुछ कम होता है. हालांकि इससे निर्यातकों को कुछ नुकसान होता है क्योंकि अगर रुपया मजबूत होता रहे तो उनके मार्जिन घट जाते हैं. हालांकि भारत जैसे देश जो बड़ी मात्रा में कच्चा तेल, खाद्य तेल, सोना, कच्चे माल आदि का आयात करते रहते उनके लिए घरेलू करंसी स्थिर रहना बेहद जरूरी है.

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