Criticizing me all day long is totally fine, but doxxing my real-time location and endangering my family is not— Elon Musk (@elonmusk) December 16, 2022
पत्रकारों के ट्विटर अकाउंट सस्पेंड होने पर क्या बोले एलन मस्क?
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर ने गुरुवार को कई दिग्गज संस्थानों के पत्रकारों के अकाउंट को सस्पेंड कर दिया। इन पत्रकारों में न्यूयॉर्क टाइम्स, सीएनएन, द इंडिपेंडेंट और वॉशिंगटन पोस्ट के पत्रकार शामिल हैं। न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक इन पत्रकारों को ट्विटर पर अकाउंट सस्पेंडेड का नोटिस दिख रहा है।
अभी तक यह नहीं पता चल पाया है कि इन संस्थानों के पत्रकारों के ट्विटर अकाउंट को क्यों सस्पेंड किया गया है।
इस बारे में पूछे जाने पर एलन मस्क ने कहा है कि दिन भर उनकी आलोचना करने में कोई परेशानी नहीं है लेकिन उनकी रियल टाइम लोकेशन के बारे में पता लगाना और उनके परिवार को खतरे में डालना ठीक नहीं है।
एलन मस्क ने कहा है कि पत्रकारों पर भी वही नियम लागू होते हैं जो बाकी अन्य लोगों पर होते हैं।
Criticizing me all day long is totally fine, but doxxing my real-time location and endangering my family is not
— Elon Musk (@elonmusk) December 16, 2022
टाइम्स के रिपोर्टर रेयान मैक (@rmac18), पोस्ट रिपोर्टर ड्रू हारवेल (@drewharwell), सीएनएन के रिपोर्टर डॉनी ओ'सुलिवन (@donie) और Mashable के रिपोर्टर मैट बाइंडर @MattBinder के खातों को सस्पेंड किया गया है। अमेरिकी सरकार की नीतियों और राजनीति को कवर करने वाले द इंडिपेंडेंट के पत्रकार आरून रूपर (@atrupar) का अकाउंट भी सस्पेंड कर दिया गया है।
सोशल मीडिया कंपनी मास्टोडन (@joinmastodon) के आधिकारिक अकाउंट को भी सस्पेंड किया गया है। मास्टोडन ट्विटर के विकल्प के रूप में उभरा है।
प्राइवेसी रूल्स में बदलाव
गुरूवार को जब एलोन जेट के अकाउंट को सस्पेंड किया गया था तो मस्क ने कहा था कि टि्वटर अपने प्लेटफार्म के यूजर्स को उनके प्राइवेट जेट को ट्रैक करने के बारे में अपनी बात रखने की आजादी देता है। लेकिन जब इस अकाउंट को चलाने वाले जैक स्वीनी ने मस्क और उनके साथियों का पीछा करना शुरू किया तो इसके बाद ट्विटर ने अपने प्राइवेसी रूल्स में बदलाव किया था और कहा था कि प्राइवेट इंफॉर्मेशन पॉलिसी ट्विटर के यूजर्स को किसी की भी लाइव लोकेशन को शेयर करने से रोकती है।
एलन मस्क ने इस साल अक्टूबर में ट्विटर को 44 बिलियन डॉलर में खरीद लिया था और बीते दिनों में उन्होंने इसमें कई बदलाव किए हैं। मस्क ने ट्विटर को खरीदने से पहले अभिव्यक्ति की आजादी का खुलकर समर्थन किया था।
आखिर क्यों नहीं हो पा रहा स्कूली शिक्षा के स्तर में सुधार
प्रदेश में निजी विद्यालयों में शिक्षा काफी महंगी है. राजधानी के निजी स्कूलों ने एक बार फिर फीस बढ़ाने का एलान कर दिया है. जिसके बाद अभिभावकों के जेब पर भारी असर पड़ने वाला है. ऐसे में सवाल उठता है कि सरकार जब प्राथमिक, उच्च प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों पर करोड़ों रुपये खर्च करती है, तो शिक्षा में गुणवत्ता का ख्याल क्यों नहीं रखा जा सकता? पढ़ें यूपी के ब्यूरो चीफ आलोक त्रिपाठी का विश्लेषण.
लखनऊ : राजधानी के निजी स्कूलों ने एक बार फिर फीस बढ़ाने का एलान कर दिया है. आगामी सत्र से अभिभावकों को 12 प्रतिशत अधिक फीस देनी होगी. कोरोना संकट के समय विद्यालयों पर फीस वृद्धि न करने का दबाव था और सरकारी स्तर पर भी उन्हें फीस बढ़ाने से रोका गया था. फीस वृद्धि को लेकर निजी विद्यालयों के अपने तर्क हैं, लेकिन आखिर सरकार अधिक पैसा और संसाधन खर्च करने के बावजूद सरकारी शिक्षा व्यवस्था को सुधारने में नाकाम क्यों है? क्यों सरकारी विद्यालयों में गुणवत्ता का अभाव है? क्यों शिक्षकों की जवाबदेही का तंत्र नहीं बन पा रहा है?
प्रदेश में निजी विद्यालयों में शिक्षा काफी महंगी है. चिंताजनक बात यह है कि निजी विद्यालय साल दर साल फीस में मनमानी वृद्धि करते रहते हैं. यह बात और है कि कोरोना वायरस के कारण पिछले दो साल से फीस वृद्धि नहीं की गई, हालांकि इस दौरान विद्यालयों ने ऑनलाइन पढ़ाई का अवसर दिया. यह एक चर्चा और डिबेट का विषय हो सकता है कि सरकार को मनमानी फीस वृद्धि पर कोई नियंत्रण रखना चाहिए या नहीं. क्योंकि निजी विद्यालय शिक्षा की गुणवत्ता के नाम पर पैसे वसूलते हैं और सरकार इसका विकल्प दे पाने में पूरी तरह से नाकाम है. सरकारी स्तर पर उच्च शिक्षा में यह शून्य नहीं है, लेकिन नर्सरी से 12वीं तक की पढ़ाई के लिए सरकारी स्कूलों में ऐसे ही लोग जाना पसंद करते हैं जो निजी विद्यालयों की फीस नहीं भर सकते. ऐसे में सवाल उठता है कि सरकार जब प्राथमिक, उच्च प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों पर करोड़ों रुपये खर्च करती है, तो शिक्षा में गुणवत्ता का ख्याल क्यों नहीं रखा जा सकता? क्या सरकार की इच्छाशक्ति में कमी है या सरकारी तंत्र उचित शिक्षा व्यवस्था करा पाने में लाचार है?
प्रदेश में प्राथमिक शिक्षा में नौकरी के लिए दशकों से मारामारी है. लोगों में एक धारणा बन गई है कि यह वह नौकरी है, जहां काम कम और पैसे ज्यादा हैं. कुछ हद तक यह बात सही भी है. इस नौकरी में आने वाले लोग शायद कुछ समय बाद ही भूल जाते हैं कि उन पर एक पीढ़ी के निर्माण का दायित्व है, हालांकि इस सब के लिए गलती शिक्षकों के बजाय सरकार की मानी जानी चाहिए. यह सरकार का दायित्व है कि ऐसी चयन प्रणाली बनाए जिससे योग्य शिक्षक स्कूलों में आएं और बच्चों के भविष्य का निर्माण कर सकें. कई बार मीडिया में खबरें आती हैं कि प्राथमिक शिक्षक निहायत सही जानकारी तक नहीं रखते. सरकार का यह भी दायित्व है कि गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा के साथ शिक्षकों की जिम्मेदारी तय हो. आखिर यह कैसे हो जाता है कि पांचवीं पास बच्चा भी अपना नाम नहीं लिख पाता. क्या उन शिक्षकों को दंडित नहीं किया जाना चाहिए, जिन्होंने ऐसे बच्चों को पढ़ाया और पास किया. खेद है कि सरकारें शिक्षा में सुधार को लेकर कतई गंभीर नहीं हैं. साल दर साल से उसी ढर्रे पर पढ़ाई हो रही है. शायद सरकारों को लगता होगा कि अयोग्य विकल्प विश्लेषण क्या है? और अनपढ़ जनता ही चुनावी राजनीति के लिए मुफीद हो. यदि ऐसा नहीं है तो आखिर क्यों अब तक किसी भी पार्टी की किसी भी सरकार में शिक्षा में सुधार के लिए गंभीर कदम नहीं उठाए गए. यदि सरकारी विद्यालयों में अच्छी शिक्षा मिल सके, तो लोग क्यों निजी विद्यालयों में मोटी रकम खर्च कर बच्चों को पढ़ाएंगे.
ऐसा भी नहीं कि सरकार हर क्षेत्र में फेल ही है. केंद्र सरकार द्वारा संचालित केंद्रीय विद्यालय में दाखिले के लिए आज भी मारामारी रहती है. यह विद्यालय उत्कृष्ट शिक्षा का एक उदाहरण हैं. यदि इन विद्यालयों को मॉडल मान लिया जाए, तो इसकी तर्ज पर राज्य सरकारें अपने विद्यालयों का गठन और पुनर्निर्माण क्यों नहीं कर सकतीं. यदि ग्रामसभा स्तर पर ऐसे बेहतरीन विद्यालय होंगे तो कोई क्यों निजी विद्यालयों में अपने बच्चों को पढ़ाना पसंद करेगा. हां एक वर्ग ऐसा जरूर होता है, जो सक्षम है और उसके लिए पैसे के मायने नहीं होते. ऐसे लोगों के लिए निजी विद्यालय में शिक्षा और फीस कोई खास मायने नहीं रखती, हालांकि राज्य का बहुत बड़ा मध्यवर्ग अच्छे विकल्प होने पर निजी विद्यालय से किनारा कर सकता है. इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि चुनावी राजनीति में लोग या भूल जाते हैं कि उन्हें किन मुद्दों पर वोट करना है. छोटे-छोटे लोभ और चुनावी वायदे दरअसल आम लोगों के जीवन से ही खिलवाड़ करते हैं. अच्छी शिक्षा, बेहतर चिकित्सा व्यवस्था और मूलभूत सुविधाओं का हक तो सभी को है, पर इसके लिए लड़ना कोई नहीं चाहता. यदि चुनावी राजनीति में लोग इन मुद्दों को महत्व दें तो सरकारें भी मजबूर होंगी और निस्संदेह शिक्षा व्यवस्था में भी सुधार होगा.
नोट टू सुसाइड: मेडिकल-इंजीनियरिंग के अलावा भी सफलता के कई विकल्प
कोटा। कोटा आत्महत्या रोकने के लिए छात्रों ने 'से नॉट टू सुसाइड' अभियान शुरू किया है। इस अभियान में मेडिकल और इंजीनियरिंग में फेल होने के बाद सफलता हासिल करने वाले युवाओं को शामिल किया गया है. ये युवा छात्र बताएंगे कि मेडिकल और इंजीनियरिंग ही सब कुछ नहीं है। इसके बाद भी कई ऐसे विकल्प हैं, जिनमें सुधार किया जा सकता है। ऐसे में पढ़ाई में तनाव लेने की जरूरत नहीं है। ऐसे कई व्यक्ति हुए हैं जो शुरुआत में असफल होने के बाद आज महत्वपूर्ण पदों पर हैं। संस्थापक अंशु महाराज ने बताया कि पहले भी इस तरह का अभियान चलाया गया विकल्प विश्लेषण क्या है? था। अब एक ही दिन में तीन मौतों के बाद फिर से अभियान शुरू कर दिया गया है. इंजीनियरिंग की तैयारी के लिए 2014 में यूपी से कोटा आया था। करीब दो साल तक इंजीनियरिंग की पढ़ाई की, लेकिन उसमें सफलता नहीं मिली। फेल होने पर उन्हें बहुत दुख हुआ। पढ़ाई जारी रखी। आज यूनाइटेड बैंक में ग्रामीण विकास अधिकारी हैं।
प्रियश 2011 में कोटा मेडिकल की तैयारी करने आया था। डॉक्टरेट में चयन के लिए दिन-रात मेहनत की, लेकिन सफलता नहीं मिली। काफी पैसा भी खर्च किया गया है। परिजन नाखुश थे, तो कोटा में ही कारोबार शुरू कर दिया। कोटा में आज तीन रेस्टोरेंट हैं। सालाना 40 लाख का टर्नओवर है। अलवर की हीना 2015 में मेडिकल की पढ़ाई करने कोटा आई थी। दो साल पढ़ाई की। अच्छे अंक होने के बावजूद कॉलेज नहीं मिल सका। ऐसे में वो उदास हो गईं. तरह-तरह के विचार आने लगे। बाद में एलएलबी की। आज वे हाईकोर्ट में एडवोकेट हैं।अंशु महाराज ने बताया कि उन्होंने विकल्प विश्लेषण क्या है? अभियान शुरू कर दिया है। इस अभियान के लिए 500 वॉलेंटियर तैयार किए गए हैं। इसमें सोमवार से 100 वॉलंटियर सीधे छात्रावास में जाकर विद्यार्थियों से जुड़ेंगे। अंशु ने बताया कि शहर में 100 से अधिक वॉलंटियर्स सक्रिय रहेंगे, जिनका काम हॉस्टलों में जाकर छात्राओं से बातचीत करना होगा। समय-समय पर सांस्कृतिक कार्यक्रम और खेलकूद प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाएंगी। छात्रों को आश्वस्त किया जाएगा कि वे यहां अकेले नहीं हैं। एक समारोह भी आयोजित करेंगे, जिसमें कोटा के छात्रों को अपने अनुभव साझा करने के लिए आमंत्रित किया जाएगा। इसमें मनोचिकित्सक भी शामिल होंगे।
राहुल जाते जाते कांग्रेस को दे जाएंगे नया CM ? राजस्थान की सियासत में जानिए आगे क्या हो सकता है
Gehlot Vs Pilot : राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से ना सिर्फ कांग्रेस की राजनीति में बदलाव आने वाले हैं। बल्कि राजस्थान की राजनीति में भी बड़े परिवर्तन होने के आसार हैं। माना जा रहा है कि यात्रा के जरिए 18 दिन राजस्थान में रहने के बाद राहुल बारीकी से प्रदेश की राजनीति का विश्लेषण कर बड़ा फैसला कर सकते हैं।
हाइलाइट्स
- राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा के तहत राजस्थान में
- राजस्थान में राहुल गांधी लगभग 18 दिन तक रहेंगे
- राजस्थान को लेकर पार्टी ले सकता है जल्द फैसला
- राजस्थान की राजनीति को बारिकी से समझ कर लिया जाएगा निर्णय
गुजरात और हिमाचल प्रदेश चुनाव हो गए खत्म
सूत्रों का कहना है कि राजस्थान में चल रही सियासी तकरार को लेकर पार्टी पहले इसलिए फैसला नहीं करना चाहती थी , क्योंकि जब सिंतबर में यह तकरार ज्यादा बढ़ी। तब गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनावी सरगर्मियां तेज थी। ऐसे में पार्टी और आलाकमान बीच में राजस्थान के मुद्दे में दखल नहीं देना चाहती थी। मीडिया रिपोर्ट्स में भी यह बात बार बार सामने आई है कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव के बाद राजस्थान को लेकर आलाकमान फैसला ले सकता है। चूंकि अब दोनों प्रदेशों में चुनाव परिणाम आ चुका है। ऐसे में माना जा रहा है कि अब कांग्रेस का पूरा फोकस राजस्थान पर रहेगा और पार्टी यहां चल रहे मुद्दे पर जल्द निर्णय लेगी।
के सी वेणुगोपाल की हिदायत का असर
अशोक गहलोत गुट की ओर से सितंबर महीने में विधायकों के इस्तीफे और बगावती तेवर के बाद राजस्थान की सियासत उफान पर थी। पायलट और गहलोत गुट लगातार एक दूसरे पर हमले कर रहे थे। इतना ही नहीं विकल्प विश्लेषण क्या है? सीएम गहलोत ने भी पायलट को गद्दार कह कर इस लड़ाई को हवा दे दी थी। लेकिन इसी बीच राहुल की यात्रा राजस्थान पहुंचने से पहले कांग्रेस महासचिव के सी वेणुगोपाल यहां पहुंचे और उन्होंने साफतौर पर दोनों नेताओं को बयानबाजी पर विराम लगाने के लिए कह दिया। इसका असर यह है कि गहलोत विकल्प विश्लेषण क्या है? और पायलट दोनों ही नेता और उनके समर्थक एक दूसरे पर किसी भी तरह की छींटाकशी करने से बच रहे हैं,ताकि राहुल को राजस्थान की जनता और मीडिया को इस मसले पर कोई जबाव देना नहीं पड़े।
तीसरा विकल्प भी खोज सकते हैं राहुल
राजनीति के जानकारों के अनुसार यह तो तय माना जा रहा है कि राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी राजस्थान के सियासी तकरार को शांत करने के लिए बड़ा फैसला लेगी। राजस्थान में चूंकि चुनाव को भी लगभग एक साल का ही समय रह गया है। ऐसे में पार्टी इस पूरे मामले में सख्ती से कार्रवाई करेगी। साथ ही जल्द से जल्द इस मसले का हल निकालने की कोशिश भी होगी ताकि जनता के बीच पार्टी को लेकर गलत मैसेज नहीं जाए। राहुल यात्रा के जरिए लगभग 18 दिन तक राजस्थान में रहेंगे। ऐसे में राजस्थान की राजनीति का बारीकी से विश्लेषण भी उनके लिए आसान होगा। पायलट गहलोत के झगड़े को खत्म करने के लिए कांग्रेस पार्टी तीसरे विकल्प की खोजबीन भी शुरू कर सकती है। ऐसी भी संभावनाएं है।
धरती एग्रो केमिकल्स ने भारत का पहला जीएमएस आधारित लोबिया हाइब्रिड लॉन्च किया
धरती एग्रो केमिकल्स प्रा. Ltd बाजार में जीएमएस आधारित काउपी हाइब्रिड लॉन्च करने वाली दुनिया की पहली कंपनी है। इसने लोबिया में तीन संकर – बबली, शर्ली और पूर्वजा जारी किए हैं। किसानों विकल्प विश्लेषण क्या है? ने इन संकरों के कारण क्षेत्र में बहुत अच्छा प्रदर्शन देखा है। इसने खरीफ के नियमित मौसम में 100% हेटरोसिस और ऑफ सीजन में 200 से 250% तक हेटरोसिस दिया है , जो पारंपरिक किस्मों की तुलना में लगभग दोगुना लाभ प्रदान करता है।
विश्व की पहली जीएमएस आधारित लोबिया
- लोबिया का निर्माण : डॉ. मनोज एस फलक ने फसल में संकर की नींव रखी। फाउंडेशन ने क्रॉस पोलिनेशन मैकेनिज्म के अत्यधिक नवीन और कुशल तरीके के साथ लोबिया में म्यूटेशन ब्रीडिंग का उपयोग करके आनुवंशिक पुरुष बाँझपन विकसित किया।
- विकास का मकसद: वर्तमान में, कृषि की स्थिति गंभीर है। बढ़ती मानव आबादी, उतार-चढ़ाव वाली जलवायु, फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान आदि के कारण भविष्य में खाद्य असुरक्षा पैदा होती है। फसल के पानी के बढ़ते उपयोग, भूमि के लिए प्रतिस्पर्धा और बढ़ते कीटों और बीमारियों ने शोधकर्ताओं को तनाव प्रतिरोधी, उच्च उपज वाली, पौष्टिक फसलें विकसित करने की चुनौती दी है।
- लोबिया के संकर क्या हैं : ये बेमौसमी खेती के लिए अत्यधिक उपयुक्त हैं। हेटेरोसिस ब्रीडिंग सभी अच्छे जीनों और अंतःक्रियाओं के कुल योग से लाभ का उपयोग करके फसल के पूरे शरीर विज्ञान में सुधार करती है।
- परिणाम : लोबिया की संकर किस्मों के प्रयोग से बेहतर परिणाम देखने को मिलते हैं। वे सम्मिलित करते हैं
- उच्च उपज,
- बेहतर रोग सहिष्णुता,
- व्यापक अनुकूलता,
- बेहतर फल गुणवत्ता और
- फर्टिगेशन के लिए बढ़ी हुई प्रतिक्रिया।
- बेहतर शेल्फ लाइफ जो लंबी दूरी के बाजारों में खाद्य परिवहन की अनुमति देती है।
कंपनी के वैभव काशीकर (कार्यकारी निदेशक) ने कहा-
“धरती में, पोषक रूप से सुरक्षित खाद्य प्रणाली की आवश्यकता और अन्य वैश्विक चुनौतियां हमेशा एक मौलिक प्रेरणा शक्ति रही हैं। हमारा मानना है कि हाईब्रिड लोबिया आज और भविष्य के लिए एक सफल तरीका है। इसने प्रचलित सब्जी फसलों के लिए एक लाभदायक विकल्प प्रदान किया है और फसल विविधीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हम यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी लेते हैं कि हमारे उत्पाद बड़े और छोटे किसानों के लिए वांछनीय हों।
कंपनी के बारे में-
- काम करता है: धरती एग्रो केमिकल्स प्रा। लिमिटेड किसानों के साथ अंतर्दृष्टि प्राप्त करने के लिए काम करता है जो निर्णय लेने को आसान बनाता है और वे उत्पादों के अनुसंधान एवं विकास में अधिक निवेश करते हैं। कम पानी की आवश्यकता वाला संकर, अत्यधिक जलवायु परिस्थितियों का सामना करने की क्षमता, पोषक तत्वों से भरपूर; संसाधनों की कम मांग ने किसानों के हित को आकर्षित किया है। इससे इस फसल के उत्पादन के क्षेत्र में वृद्धि हुई है।
- आकलन : लोबिया आसानी से वहनीय है और प्रोटीन और सूक्ष्म पोषक तत्वों का एक समृद्ध स्रोत प्रदान करता है। फसल वायुमंडलीय नाइट्रोजन को ठीक करती है और कार्बन पृथक्करण और मिट्टी के सुधार में शामिल होती है। यह मिट्टी के स्वास्थ्य को बढ़ाता है और बनाए रखता है।
लोबिया क्या है-
यह जीनस विग्ना की एक वार्षिक जड़ी-बूटी वाली फली है। रेतीली मिट्टी और कम वर्षा के लिए इसकी सहनशीलता ने इसे अफ्रीका और एशिया के अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण फसल बना दिया है। यह संसाधन-गरीब किसानों के लिए एक मूल्यवान फसल है और अन्य फसलों के साथ अंतर-फसल के लिए उपयुक्त है। पूरे पौधे का उपयोग पशुओं के चारे के रूप में किया जाता है, इसके नाम के लिए संभावित रूप से जिम्मेदार मवेशियों के चारे के रूप में उपयोग किया जाता है।
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