बाजार विभक्तिकरण के आधार - Bases For Market Segmentation
बाजार विभक्तिकरण के आधार - Bases For Market Segmentation
बाजार विभक्तिकरण विभिन्न आधारों बाजार विभक्तिकरण क्या है पर किया जा सकता है
1. भौगोलिक विभक्तिकरण एक वस्तु के संपूर्ण बाजार का विभक्तिकरण भौगोलिक आधार पर किया जा सकता है। वृहद पैमाने पर उत्पादन किया जाता है जिन्हें काफी बड़े बाजार क्षेत्र में बेचा जाता है जिसके लिए भौगोलिक तत्व संतोषजनक आधार प्रदान करते हैं। संपूर्ण बाजार क्षेत्र में पाए जाने वाले अंतरों के अनेक कारण हो सकते है, जैसे शहरी तथा ग्रामीण बाजार, सांस्कृतिक परम्पराएँ, जलवायु आदि।
सांस्कृतिक परम्पराओं के सम्बन्ध में देश के विभिन्न राज्यों में खान-पान, रहन-सहन, रूचियाँ आदि में काफी अंतर रहता बाजार विभक्तिकरण क्या है है। इसी तरह से ग्रामीण बाजार तथा शहरी बाजार की विशेषताओं में भी काफी भिन्नता पायी जाती हैं।
उदाहरण के लिए एक फर्नीचर निर्माता को राष्ट्रव्यापी बाजार के निर्माण हेतु विभिन्न बाजार खण्डों की विशेषताओं को ध्यान में रखना होता है। भारतीय ग्रामीण बाजारों में फर्नीचर की मांग कम होती है तथा साथ ही फैशनेबल फर्नीचर की मांग नहीं के बराबर होती है।
अनेक वस्तुओं के सम्बन्ध में जलवायु सम्बन्धी भौगोलिक अंतर भी महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए, मुम्बई में ठण्डे एवं गर्म पेय पदार्थों की मांग वर्ष भर रहती है, जबकि दिल्ली, लखनऊ, आगरा आदि शहरों में शीतकाल में ठण्डे पेय पदार्थों की मांग नहीं के बराबर रह जाती है।
इसी प्रकार अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में छातों का उपयोग अधिक होता है, अत: इन क्षेत्रों में छातों का विक्रय भी बाजार विभक्तिकरण क्या है अधिक होता है।
2. जनांकिकी (Demographic) विभक्तिकरण - - इसके अंतर्गत एक विक्रेता विभिन्न समूहों में जनांकिकी चलों (Demographic Variables) के आधार पर अंतर करने का प्रयास करता है, जैसे - आयु, लिंग, आय, धंधा, परिवार का आकार, शिक्षा, धर्म, राष्ट्रीयता आदि।
3. मनोवैज्ञानिक विभक्तिकरण (Psychographic) मनोवैज्ञानिक आधार पर भी बाजार विभक्तिकरण किया जाता है। अनेक उत्पादों के सम्बन्ध में क्रेता व्यवहार की भिन्नताओं के पीछे व्यक्तित्व सम्बन्धी तत्व काफी प्रभावशाली होते हैं, जैसे कुछ व्यक्ति मँहगे वस्तुओं के क्रय द्वारा अपनी उच्च स्तर बनाए रखना चाहते हैं, जबकि कुछ व्यक्ति साधारण वस्तुएँ खरीदकर सादा जीवन व्यतीत करना अच्छा समझते हैं।
4. लाभ (Benefit) - इसके अंतर्गत उपभोक्ताओं का उप-विभाजन जनांकिकी या मनोवैज्ञानिक आधार के बजाय उन विभिन्न लाभों के आधार पर करते हैं जिनकी क्रेता वस्तु का क्रय करते समय आशा करता है, जैसे- नहाने के साबुन के सम्बन्ध में कुछ क्रेता कीटाणुनाशक या सफाई या सौन्दर्य आदि लाभों की आशा करते हैं। इसी प्रकार टूथपेस्ट के सम्बन्ध में कुछ क्रेता दांतों को गिरने से रोकना, स्वाद या कम कीमत आदि लाभों की आशा बाजार विभक्तिकरण क्या है करते हैं। अत: ग्राहकों के लाभों को ध्यान में रखकर भी बाजार विभक्तिकरण किया जाता है।
5. विपणन (Marketing) - इसके अंतर्गत बाजार विभक्तीयकरण विभिन्न विपणन घटकों के आधार पर किया जाता है, जैसे वस्तु की किस्म, कीमत, विज्ञापन आदि ।
What is market segmentation/market segmentation
सामान्यतः किसी वस्तु के सभी ग्राहक में समानता नहीं होता है उनके स्वभाव गुण प्रक्रिति क्यूं रहन सहन का सत आदि में आनतर होता है इसी कारणवश एक निर्माता एक प्रकार के ग्राहक समुदाय के लिए एक प्रकार की वस्तु बनाता है
और दूसरे प्रकार के ग्राहक के समुदाय के लिए दूसरे प्रकार की इस प्रकार वह अपने बाजार को विभिन्न खंडों में विभाजित करता है याह बाजार खंडीकरण कहलाता है किसी वस्तु या सेवा के समस्त बाजार को उपबाजारों में विभाजित करने की प्रक्रिया को बाजार खंडीकरण कहा जाता है प्रत्येक उपबाजार दूसरे उपचार से भिन्न होता है परंतु एक बाजार के समस्त ग्राहक समान होते हैं
फिलिप कोटलर. के शब्दों में एक बाजार को समान प्रकार के ग्राहकों की उप उपजातियों में विभाजन करने को बाजार खंडीकरण कहते हैं जिसमें कि किसी उपजाति को चुना जा सके और विशिष्टी विपणन मिश्रण के साथ बाजार को लक्ष्य बनाकर उस तक पहुंचा जा सके बाजार को विभिन्न समुदायों मैं बांटने को बाजार विभक्तिकरण (Market segmentation) कहते हैं
यह वह प्रक्रिया है जिसमें बाजार के विभिन्न ग्राहक को यह संभव ग्राहकों को उनकी विशेषताओं आवश्यकताओ या व्यवहारों के अनुसार समजातीय समूहों में विभाजित किया जाता है ताकि समान यह लगभग समान विशेषताओं आवश्यकता या व्यवहार वाले ग्राहकों के समूह के लिए एक समान विपणन मिश्रण एवं विपणन व्यूहरचना का निर्माण करके भी विपणन कार्य में सफलता प्राप्त की जा सके बाजार खंडी कर्ण का मुख्य उद्देश्य ग्राहकों की विभिन्न आवश्यकताओं को पहचान कर उनके लिए उचित वस्तु मिश्रण तैयार करना है
बाजार खंडी करण के आधार:
(Basic of market segmentation)
भौगोलिक: बाजार खंडीकरन का यह पहला आधार है जिसमें संपूर्ण बाजार को भौगोलिक आधार पर बांट दिया जाता है जैसे गर्म क्षेत्र ठंडा क्षेत्र शहरी क्षेत्र एवं ग्रामीण क्षेत्र
मनोविजनिक: (psychologic) बाजार खंडीकरण मनोविज्ञान आधार पर भी हो सकता है समाज में कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते हैं जो नवीनतम वस्तुओं को क्रय करने में ही अपनी प्रतिष्ठा समझते हैं जबकि कुछ व्यक्ति सदा वस्तुओं को क्रय करना पसंद करते हैं वस्तुओं का निर्माण ग्राहकों के मनोविज्ञान आधार पर करके अधिक लाभ कमाया जा सकता है
लाभ: (Benefit) एक निर्माता ग्राहकों द्वारा उत्पाद से प्राप्त लाभो को ध्यान में रखकर बाजार खंडीकरण कर सकता है और अपने विज्ञापन को उस ओर इंगित कर के लाभ कमा सकता है विभिन्न वर्ग के ग्राहक वस्तु से विभिन्न लाभ प्राप्त करना चाहते हैं जैसे कुछ लोग समय मालूम करने के लिए घड़ी खरीदते हैं तो अन्य प्रतिष्ठित बढ़ाने के लिए हीरे जडी घड़ी खरीदते हैं
जनांकिकी : (Demographic) इसमें निर्माता अपने ग्राहकों के समूह को उनकी आयु व्यवसाय शिक्षा राष्ट्रीयता सामाजिक जाति धर्म परिवार आकर आदि के आधार पर बांट सकता है
विपणन : (Marketing) बाजार खंडी करण का आधार विवरण भी हो सकता है इसमें वस्तु का मूल्य वस्तु की क्वालिटी फुटकर विज्ञापन आदि घटक आते हैं बाजार खंडी कराने इन्हीं आधारो पर किया जाता है
मात्रा: (Volume) इसमें वस्तु के कविताओं की कार्य मात्रा के आधार पर बाजार का खंडी कारण हो सकता है जैसे कुछ ग्राहक भारी मात्रा में वस्तु का क्रय करते हैं तथा कुछ कम मात्रा में
खंडीकरण के गुण: बाजार खंडी करण अनेक प्रकार से लाभदाई है फिलिप बाजार विभक्तिकरण क्या है कोटलर के अनुसार बाजार खंडीकरण से संस्था अधिक अच्छे उत्पाद या अच्छी सेवा उपलब्ध करा सकती है तथा लक्ष्य बजार के लिए उसका समुचित मूल्य निर्धारित कर सकती है संस्था सर्वोत्तम वितरण एवं संचार माध्यमों का चयन कर सकती है
तथा अपने प्रतियोगियों की तस्वीर को अधिक स्पष्ट रूप से देख सकती है बाजार खंडी करण के महत्व एवं लाभों को नीचे कुछ शीरक में स्पष्ट किया जा सकता है विपणन अवसरों का ज्ञान होता है प्रत्येक खंड के ग्राहकों की आवश्यकताएं एवं रुचियों को जानकर विपणन मिश्रण में सुधार किया जा सकता है विपणन बजट का उचित बंटवारा किया जा सकता है
प्रतियोगिता का सामना एवं संसाधनों का उच्चतम उपयोग किया जा सकता है ग्राहकों की रुचि के अनुसार वस्तु के आकार डिजाइन किस पैकिंग आदि को उत्तम बनाया जा सकता है बाजार खंडी करण से बिक्री के वास्तविक लक्ष्य निर्धारित करने में सहायता मिलती है ऐसे विचारों का पता लगाया जा सकता है जिन पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है प्रत्येक वर्ग के ग्राहकों के लिए उपयुक्त उत्पाद मिश्रण विकसित किया जा सकता है
बाजार विभक्तिकरण क्या है
बाजार विभाजन (Market Segmentation); बाजार विभाजन विभिन्न विशेषताओं के आधार पर संभावित ग्राहकों के बाजार को समूहों या खंडों में विभाजित करने की प्रक्रिया है। बाजार विभाजन एक व्यापक उपभोक्ता या व्यावसायिक बाजार को विभाजित करने की गतिविधि है, जो आम तौर पर कुछ प्रकार की साझा विशेषताओं के आधार पर उपभोक्ताओं के उप-समूहों में मौजूदा और संभावित ग्राहकों से मिलकर बनता है। बनाए गए सेगमेंट उन उपभोक्ताओं से बने होते हैं, जो मार्केटिंग-रणनीतियों के समान प्रतिक्रिया देंगे और जो समान हितों, जरूरतों या स्थानों जैसे लक्षण साझा करते हैं।
बाजार विभाजन के लाभ।
बाजार विभाजन विपणन स्थिति में वास्तविकता को दर्शाता है। उपभोक्ताओं की अलग-अलग ज़रूरतें और प्राथमिकताएँ हैं। इसलिए, वास्तव में, बाजार की मांग विषम है और सजातीय नहीं है। जब ग्राहक की जरूरतों के अंतर का विश्लेषण किया जाता है, तो विपणक विपणन के अवसरों का फायदा उठा सकते हैं और जरूरतों को पूरा कर सकते हैं।
इससे लाभ और विकास के लिए संभावनाएं मिल सकती हैं। Segmentation उच्च ग्राहक संतुष्टि सुनिश्चित करता है और विपणन कार्यक्रम की प्रभावशीलता में सुधार करता है और प्रबंधकों को उनके प्रस्ताव के लिए बेहतर कीमत वसूलने में सक्षम बनाता है।
बाजार विभक्तिकरण के उद्देश्य लिखिये
"roject Management Question 5/30 00:38:25 includes processes required to (a) identity the people, groups, or organizations that could impact or be imp … acted by the project (b) analyze stakeholder expectations and the impact on the projec (c) devexp appropriate management strategies for efectively engaging stakeholders in project decisions and execution Select the correct option(s) and click Submit Communications Management
बाजार विभक्तिकरण एवं विपणन रीति-नीति पर एक विस्तृत लेख लिखिये।
किसी वस्तु के सभी क्रेता एक से नहीं होते हैं इसलिए एक विक्रेता अपनी विपणन रणनीति में अन्तर कर सकता है। यह अन्तर बाजार खण्ड के आधार पर हो सकता है। इस सम्बन्ध में निम्न तीन में से कोई भी रीति अपनायी जा सकती है
(1) भेदभावहीन विपणन रीति-नीति-इस नीति को अपनाने वाली संस्थाएँ विभिन्न ग्राहकों में अन्तर नहीं करती हैं और अपना एक ही विपणन कार्यक्रम अपनाती है। इसका अर्थ यह है कि निर्माता के द्वारा केवल एक ही प्रकार की वस्तु का निर्माण एवं विक्रय किया जाता है। इसमें इस बात का अधिक ध्यान रखा जाता है कि ग्राहकों में किन-किन बातों में समानताएँ पायी जाती हैं। इसीलिए विज्ञापन अपीलें वैसी ही बनायी जाती हैं जिनसे अधिकांश ग्राहकों की समानता का पता चलता हो।
उदाहरण के लिए, कोका-कोला (पेय पदार्थ) बनाने वाली कम्पनी कई वर्षों से एक ही पेय पदार्थ बना रही है जोकि एक ही आकार वाली बोतल व स्वाद में मिलता है। इस प्रकार की रीति-नीति अपना में संस्था विभिन्न माँग वक्रॉ पर ध्यान न देकर सम्पूर्ण बाजार को एक ही रूप में मानकर चलती हैं। इसमें ग्राहकों की समान विशेषताओं पर ध्यान दिया जाता है और वस्तु ऐसी बनायी जाती है कि सभी ग्राहकों को अच्छी लगे। भारत में अधिकांश निर्माता इसी नीति को अपनाते हैं क्योंकि ऐसा करने से
(i) उत्पादन लागत कम रहती है क्योंकि एक ही वस्तु का निर्माण किया जाता है। (ii) विज्ञापन लागत भी कम रहती है।
(iii) संग्रह लागत घटती है क्योंकि एक ही प्रकार की वस्तु का उत्पादन होता है उसी का विज्ञापन होता है और उसको ही कम मात्रा में संग्रहित किया जाता है।
(iv) परिवहन लागत कम बाजार विभक्तिकरण क्या है रहती है।
(v) विपणन अनुसन्धान लागत भी कम रहती है।
(iv) साथ ही संस्था के सामान्य प्रबन्ध व्यय भी कम रहते हैं।
निष्कर्ष- एक निर्माता प्रारम्भ में इस नीति को अपनाता है लेकिन जैसे-जैसे प्रतियोगिता बढ़ती जाती है निर्माता इस नीति से हटने के लिए बाध्य हो जाते हैं।
(2) भेदभावपूर्ण विपणन रीति-नीति इस रीति-नीति को अपनाने वाली संस्थाएँ एक वस्तु का निर्माण नहीं करतीं बल्कि इस वस्तु के विभिन्न बाजार विभक्तों को ध्यान में रखकर कई वस्तुओं का निर्माण करती हैं और कई विपणन रीति नीतियाँ अपनाती हैं। ऐसा करने का उद्देश्य अधिक बिक्री करना होता है जिससे लाभ अधिक हो सके तथा प्रत्येक प्रकार के बाजार तक पहुँच सके। इसका अर्थ यह है कि ऐसी नीति अपनाकर सभी प्रकार के ग्राहकों तक पहुँचा जा सकता है। भारत में इस प्रकार की नीति कुछ संस्थाएँ अपनाती हैं जैसे-गोल्डन टुबाको कम्पनी लिमिटेड विभिन्न नामों से सिगरेट बनाती है व बेचती हैं, जैसे- पनामा, न्यू डील, गोल्ड फ्लेक, ताज, सैनिक, गेलॉर्ड, ताजमहल, डायमण्ड, स्क्वायर, टार्जेट। इसी प्रकार हिन्दुस्तान लीवर लिमिटेड नामक कम्पनी भी कई नामों से नहाने के साबुन बनाती है व बेचती हैं, जैसे-लक्स, लाइफबॉय, रेक्सोना, लिरिल आदि।
निष्कर्ष इस प्रकार की नीति अपनाने में कुल बिक्री बढ़ती है और ग्राहकों को अपने इच्छा के अनुरूप वस्तु मिल जाती है लेकिन इससे प्रशासनिक लागत, उत्पादन लागत, संग्रह लागत, प्रवर्तन लागत व विक्रय लागत में वृद्धि होती है। यह रीति-नीति ग्राहक अभिमुखी है लेकिन यह सदा ही लाभ अभिमुखी हो ऐसा सम्भव नहीं है। इसका लाभ अभिमुखी होना। इस बात पर निर्भर करता है कि लागतों की तुलना में बिक्री किस अनुपात में बढ़ती है।
(3) केन्द्रित विपणन रीति-नीति-वे निर्माता जो सभी बाजारों में एक साथ पहुँचना पसन्द नहीं करते, वे इस केन्द्रित विपणन रीति नीति को अपनाते हैं। इसमें बाजार के किसी एक भाग पर सारी विपणन शक्ति केन्द्रित कर दी जाती है और उसी भाग के ग्राहकों को सन्तुष्ट करने का प्रयत्न किया जाता है। इस नीति को साधारणतया एक निर्माता द्वारा प्रारम्भ में ही अपनाया जाता है। यह नीति उन संस्थाओं के द्वारा भी अपनायी जा सकती है जिनके अन्तर्गत आर्थिक साधन सीमित होते हैं। इसी प्रकार यह नीति उस समय भी अपनायी जा सकती है जबकि वस्तु की विशेषताओं में काफी अन्तर हो या ग्राहकों के व्यवहारों में काफी अन्तर पाया जाता हो। भारत में इस प्रकार की बहुत-सी संस्थाएँ हैं जो इस नीति को अपनाती है। उदाहरण के लिए,
पुस्तक प्रकाशन का कार्य सभी विषयों एवं भाषाओं में किया जा सकता है लेकिन कुछ प्रकाशक किन्ही पब्लिकेशन, आगरा ने हिन्दी पाठ्यक्रम पुस्तकों के प्रकाशन में वाणिज्य व अर्थशास्त्र का क्षेत्र चुन लिया है। कही इस बाजार या विभक्तिकरण का चुनाव किसी प्रकार गलत हो गया तो संस्था का अस्तित्व ही खतरे निष्कर्ष- इस नीति को अपनाने में संस्था का भविष्य एक ही बाजार पर निर्भर रहता है। यदि में पड़ जाता है लेकिन उपयुक्त चुनाव होने पर लाभ भी अधिक होता है।
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