Delhi wakes up to smog covering the national capital's sky with the overall AQI (Air Quality Index) under the 'poor' category, at 276.

दिल्ली में खतरनाक लेवल पर प्रदूषण, आनंद विहार में AQI लेवल 395, नोएडा में 309; आज पटाखों से और जहरीली हो सकती है आबोहवा

दिवाली से ठीक पहले देश की राजधानी दिल्ली एक बार फिर खतरनाक प्रदूषण की चपेट में है. आनंद विहार में 395 एक्यूआई लेवल रिकॉर्ड किया गया है. आज पटाखों के चलते दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण और बढ़ जाएगा.

By: ABP Live | Updated at : 24 Oct 2022 08:21 AM (IST)

दिल्ली में प्रदूषण का स्तर (फाइल फोटो)

Delhi Pollution On Diwali: एक तरफ दिवाली (Diwali) की खुशी है तो दूसरी ओर खतरनाक प्रदूषण का डर. जी हां, दिवाली से ठीक पहले दिल्ली में प्रदूषण का स्तर खतरनाक लेवल पर पहुंच चुका है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आंकड़ों से पता चलता है कि दिल्ली में सोमवार सुबह को वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 276 दर्ज किया गया. वहीं रविवार को एक्यूआई 259 था, जो दिवाली से एक दिन पहले सात साल में सबसे कम था.

वहीं आनंद विवार में स्थिति और खराब दिखी. यहां AQI 395 दर्ज किया गया. इसी के साथ नोएडा में एक्यूआई लेवल 309 रिकॉर्ड किया गया. ऐसे में आज पटाखों से दिल्ली की आबोहवा और जहरीली हो सकती है.

Delhi wakes up to smog covering the national capital's sky with the overall AQI (Air Quality Index) under the 'poor' category, at 276.

(Visuals from India Gate & Lodhi Road) pic.twitter.com/9ssB9ILezR

कैसे मापा जाता है प्रदूषण का स्तर?

शून्य और 50 के बीच एक्यूआई को "अच्छा", 51 और 100 "संतोषजनक", 101 और 200 "मध्यम", 201 और 300 "खराब", 301 और 400 "बहुत खराब", और 401 और 500 "गंभीर" माना जाता है.

आने वाले दिनों में दिल्ली की हवा की गुणवत्ता और भी खराब स्थिति में पहुंच सकती है. इसके पीछे की वजह सिर्फ पटाखे ही नहीं है बल्कि पराली का जलना भी एक मुख्य कारण है. SAFAR के मुताबिक, पंजाब-हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश से सोमवार यानी 24 अक्टूबर से हवाएं दिल्ली की ओर चलना शुरू होंगी, इसलिए पूरी आशंका है कि दिल्ली में पराली के धुएं से प्रदूषण बढ़ेगा. वहीं ऐसा भी अनुमान जताया गया है कि 26 अक्टूबर की शाम से हवा की गुणवत्ता में सुधार होना शुरू हो सकता है.

जुलाई-सितंबर में प्रदूषण निचले स्तर पर रहा

बता दें कि सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरन्मेंट (CSE) के एक विश्लेषण में कहा गया है कि दिल्ली में 2.5 पार्टिकुलेट मैटर (PM) यानी (हवा में मौजूद 2.5 माइक्रोमीटर व्यास से कम आकार के सूक्ष्म कण) प्रदूषण का स्तर इस साल जुलाई-अगस्त-सितंबर तिमाही में औसत 37 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहा. वहीं यह 2020 के दौरान दर्ज किए गए 36 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर के पांच सालों के सबसे निचले स्तर से आंशिक रूप से अधिक है.

हवा साफ रखने का ये है प्लान

दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए हवा को साफ रखने का प्लान भी बनाया गया है. वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) की ओर से ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP) के दूसरे चरण को लागू कर दिया गया है. इसके तहत प्रदूषण कम करने के लिए हर दिन सड़कों की सफाई और हर दूसरे दिन पानी का छिड़काव किया जाएगा. होटल या रेस्टोरेंट में कोयले या तंदूर का इस्तेमाल नहीं होगा. डीजल जनरेटर का इस्तेमाल सिर्फ इमरजेंसी सेवाओं में होगा. लोगों से पब्लिक ट्रांसपोर्ट का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करने की अपील भी की गई है. इसके साथ ही स्मॉग टावर भी लगाए गए हैं.

Published at : 24 Oct 2022 08:21 AM (IST) Tags: Delhi Pollution Diwali 2022 हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: News in Hindi

यूरिक एसिड बढ़ने से किडनी फेलियर का खतरा, डॉक्टर से जानें इसे कंट्रोल करने का तरीका

यूरिक एसिड किडनी से होकर यूरिन के रास्ते बाहर निकल जाता है.

यूरिक एसिड लीवरेज खतरनाक क्यों है? किडनी से होकर यूरिन के रास्ते बाहर निकल जाता है.

खान-पान की गलत आदतें यूरिक एसिड के लेवल को बढ़ा सकती हैं. यूरिक एसिड बढ़ने से कई तरह की समस्याएं हो जाती हैं, जिससे बचन . अधिक पढ़ें

  • News18Hindi
  • Last Updated : August 04, 2022, 06:02 IST

हाइलाइट्स

नॉन-वेज का ज्यादा सेवन करना यूरिक एसिड के बढ़ने का कारण बन सकता है.
लंबे समय तक यूरिक एसिड बढ़ना खतरनाक बीमारी की वजह बन सकता है.

Tips to Control Uric Acid: स्वस्थ रहने के लिए ब्लड में यूरिक एसिड का लेवल कंट्रोल रहना चाहिए. जब यह नॉर्मल से ज्यादा हो जाता है, तब लोगों को घुटनों में दर्द, किडनी स्टोन समेत कई बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है. लंबे समय तक इस परेशानी की अनदेखी करना काफी खतरनाक हो सकता है. तमाम लोगों को यूरिक एसिड के बारे में सही जानकारी नहीं होती और इस वजह से उनकी कंडीशन गंभीर हो जाती है. आज एक्सपर्ट से जानेंगे कि यूरिक एसिड बढ़ने से हेल्थ को कौन से खतरे हो सकते हैं. इसके बढ़ने की क्या वजह होती है और इसे कंट्रोल किस तरह किया जाए.

क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
नई दिल्ली के सर गंगाराम हॉस्पिटल के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. अमरेंद्र पाठक के मुताबिक यूरिक एसिड हमारे ब्लड में पाया जाने वाला एक वेस्ट प्रोडक्ट होता है. यह हमारे लीवरेज खतरनाक क्यों है? लिवर में बनता है और ब्लड में घुलकर किडनी तक पहुंचता हैं. फिर यूरिन के रास्ते शरीर से बाहर निकल जाता है. पुरुषों में यूरिक एसिड 4 से 6.5 लेवल तक नॉर्मल माना जाता है, जबकि महिलाओं में इसका लेवल 3.5 से 6 तक होता है. जब हमारे शरीर में यूरिक एसिड ज्यादा बनने लगता है या शरीर से बाहर नहीं निकल पाता तो यह विभिन्न अंगों में जमा हो जाता है. इसका लेवल बढ़ने से लोगों को समस्याएं हो जाती हैं.

क्यों बढ़ता है यूरिक एसिड का लेवल?
डॉ. अमरेंद्र पाठक के अनुसार जब हमारे शरीर में यूरिक एसिड बनाने वाला एंजाइम डिफेक्टिव हो जाता है और इसका प्रोडक्शन ज्यादा होने लगता है. लिवर और किडनी की फंक्शनिंग में परेशानी होने पर भी यूरिक एसिड का लेवल गड़बड़ा जाता है. इसके अलावा नॉन वेज चीजों का ज्यादा सेवन करना यूरिक एसिड के बढ़ने का कारण बन सकता है. अगर आप शुरुआती स्टेज में यूरिक एसिड का ट्रीटमेंट शुरू करा देंगे तो इसे आसानी से कंट्रोल लीवरेज खतरनाक क्यों है? किया जा सकता है.

गंभीर बीमारियों की बन सकता है वजह
एक्सपर्ट कहते हैं कि अगर यूरिक एसिड का लेवल बहुत ज्यादा हो जाए तो इससे किडनी फेलियर, किडनी स्टोन और ब्लड प्रेशर बढ़ने जैसी कंडीशन हो सकती है. यूरिक एसिड बढ़ने से हार्ट पर भी प्रेशर बढ़ जाता है और कुछ मामलों में हार्ट डिजीज हो सकती हैं. हालांकि यूरिक एसिड का डायबिटीज से कोई कनेक्शन सामने नहीं आया है. आमतौर पर यूरिक एसिड बढ़ने की वजह से गाउट्स (Gouts) की समस्या हो जाती है. हमारे हाथ पैर के अंगूठे के जॉइंट में तेज दर्द होता लीवरेज खतरनाक क्यों है? है. समय-समय पर हेल्थ चेकअप कराने से इसका पता चल जाता है.

यह भी पढ़ेंः क्या एक्सरसाइज करने से मजबूत होती है इम्यूनिटी? यहां जान लीजिए

कैसे कर सकते हैं कंट्रोल?
डॉ. अमरेंद्र पाठक यूरिक एसिड की समस्या से जूझ रहे लोगों को नॉन वेज से दूरी बनाने की सलाह देते हैं. नॉन वेज खाने से यूरिक एसिड का लेवल बढ़ जाता है. इससे परहेज करने से आप यूरिक एसिड को कंट्रोल कर सकते हैं. दालों का ज्यादा सेवन भी नुकसानदायक हो सकता है. इसलिए निश्चित मात्रा में ही दाल खाएं. इसके अलावा हेल्दी डाइट लेने और वजन को कंट्रोल करने से भी फायदा हो सकता है. ज्यादा परेशानी वाले लोगों को डॉक्टर से मिलकर कंसल्ट करना चाहिए. दवाइयों के जरिए यूरिक एसिड को कंट्रोल किया जाता है.

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ब्लड शुगर का कम होना क्यों है खतरनाक, ये संकेत देते हैं वार्निंग

ब्लड शुगर का बढ़ना जितना सेहत के लिए नुकसानदायक है, इसका कम होना भी उतना ही या कई बार उससे ज्यादा नुकसानदायक है। यह बात सिर्फ डायबिटीज के मरीजों पर नहीं, बल्कि हर स्वस्थ्य इन्सान पर लागू होती है।.

 ब्लड शुगर का कम होना क्यों है खतरनाक, ये संकेत देते हैं वार्निंग

Pratima Thu, 19 Dec 2019 12:28 PM

ब्लड शुगर का बढ़ना जितना सेहत के लिए नुकसानदायक है, इसका कम होना भी उतना ही या कई बार उससे ज्यादा नुकसानदायक है। यह बात सिर्फ डायबिटीज के मरीजों पर नहीं, बल्कि हर स्वस्थ्य इन्सान पर लागू होती है। दरअसल, ब्लड शुगर हमारे शरीर में एनर्जी का स्रोत है। इसी के माध्यम से ग्लुकोज शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुंचता है। ब्लड शुगर कम होने की स्थिति को हाइपोग्लाइसीमिया कहा जाता है। यह कई बीमारियों का कारण बन सकता है और कई अंगों पर असर डालता है। जैसे - किडनी, लिवर, हार्ट। इसके कारण हेपेटाइटिस हो सकता है, इन्सान कमजोरी महसूस कर सकता है, उसे बेचैनी रह सकती है और बार-बार चक्कर आ सकते हैं।
www.myupchar.com से जुड़े एम्स के डॉ. अनुराग शाही के अनुसार, हाइपोग्लाइसीमिया के शिकार मरीज के लिए तत्काल इलाज यह है कि उसे शरीर में शुगर बढ़ाने वाली चीजें खिलाई जाएं। इसका सही स्तर लगभग 70 से 110 मिली ग्राम डेसीलीटर होता है।

ब्लड शुगर कम होने के संकेत
थकान महसूस होना
घबराहट
हाथ-पैर कांपना
पसीना आना
भूख लगना
नींद के दौरान रोना
चिड़चिड़ापन
हमेशा चिंता में रहना
धुंधला दिखाई देना
बेहोश होना
किसी बात को नहीं समझ पाना


इसलिए बहुत खतरनाक है ब्लड शुगर
ब्लड शुगर कमी के कारण हाइपोग्लाइसीमिया का दौरा कभी भी पड़ सकता है। हाइपोग्लाइसीमिया अटैक के कारण मरीज वाहन चलाते समय सड़क पर गिर सकता है। या सीढ़िया चढ़ते समय गिर सकता है। जो लोग अकेले रहते हैं, उन्हें बेहोशी के कारण हाइपोग्लाइसीमिया अटैक के दौरान तत्काल इलाज नहीं मिल पाना बहुत घातक हो सकता है।


डॉक्टर को कब दिखाना चाहिए
डायबिटीज वाले मरीज अपनी ब्लड शुगर पर लगातार नजर रखते हैं, इसलिए उनका इलाज तत्काल हो जाता है, लेकिन यदि आप पूरी तरह स्वस्थ्य हैं और बार-बार ऊपर बताए संकेत नजर आ रहे हैं तो बिना देरी किए डॉक्टर से मिलना चाहिए। कई बार हाइपोग्लाइसीमिया के लक्षण इतने सामान्य होते हैं कि इन्सान पहचान नहीं पाता है। यह घातक स्थिति होती है। बेहतर यही है कि हर 3 महीने या 6 महीने में ब्लड शुगर की जांच करवाते रहें।

क्या है हाइपोग्लाइसीमिया का इलाज
यदि हाइपोग्लाइसीमिया यानी ब्लड शुगर बार-बार कम हो रही तो अपने खान-पान में शुगर बढ़ाने वाली चीजों को शामिल करना होगा। डॉ. अनुराग शाही के अनुसार, कार्बोहाइड्रेट युक्त खादय् पदार्थों का सेवन करें। तत्काल इलाज चाहिए तो चॉकलेट खाएं, फलों का जूस पीएं, ठंडे पेय पदार्थ जैसे कोक और पेप्सी भी तत्काल राहत दिलाते हैं। जिन लोगों में ब्लड शुगर अनियमित रूप से कम हो जाती है, उन्हें ग्लूकोज की टेबलेट और चॉकलेट हमेशा अपने साथ रखना चाहिए।
शुगर का स्रोत चीनी के अलावा भी ढेर सारे पदार्थ हैं। जैसे - बेकरी प्रॉडक्ट, ड्रिंक्स, प्रॉसेस्ड फूड्स। अमेरिकन डायबीटीज असोसिएशन के अनुसार, स्वस्थ पुरुष को एक दिन में 37.5 ग्राम या 9 चम्मच से ज्यादा शुगर नहीं खाना चाहिए। स्वस्थ महिला को एक दिन में 25 ग्राम या 6 चम्मच से ज्यादा शुगर नहीं खाना चाहिए। इसके कम के सेवन पर ब्लड शुगर स्तर कम हो सकता है।
जो लोग एक्सरसाइज करते हैं, उन्हें अपने ब्लड शुगर स्तर पर ध्यान रखने की जरूरत होती है। पहले कुछ ऐसे मामले में भी सोशल मीडिाय में आए हैं, जहां जिम में पसीना बहाते स्वस्थ्य युवा अचानक ब्लड शुगर की कमी के कारण बेहोश होकर गिर पड़े। गलत खान-पान से परहेज करें और नशे से दूर रहें।

टाइप-2 डायबिटीज: सुबह दिखें ऐसे लक्षण तो हो जाएं सावधान, शुगर बढ़ने के हो सकते हैं संकेत

डायबिटीज की समस्या (प्रतीकात्मक तस्वीर)

डायबिटीज हाल के दशकों में दुनियाभर में सबसे तेजी से बढ़ने वाली स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है। भारत में डायबिटीज रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने तेजी से बढ़ते इस रोग को लेकर चिंता जताते हुए इसके नियत्रंण और रोकथाम को लेकर विशेष जागरूक रहने की सलाह दी है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक डायबिटीज के कारण लोगों को स्वास्थ्य संबंधी कई अन्य तरह की दिक्कतें भी हो सकती है, इसे नियंत्रित रखना बेहद आवश्यक माना जाता है।
मधुमेह एक ऐसी स्वास्थ्य समस्या है जिसमें उचित प्रबंधन बेहद आवश्यक हो जाता है। ब्लड शुगर का स्तर बढ़ जाना कई अंगों के लिए नुकसानदायक हो सकता है। बढ़ा हुआ ब्लड शुगर लेवल किडनी की खराबी, अंधेपन और हृदय रोगों का भी कारण बन सकता है, यही कारण है कि डायबिटीज के रोगियों को नियमित रूप से शुगर के स्तर की जांच करते रहने की सलाह दी जाती है। डॉक्टर कहते हैं, कई बार मरीजों को पता नहीं होता है कि उनका ब्लड शुगर लेवल दिन भर में कैसे बदल जाता है? सुबह के समय शरीर में हार्मोनल बदलाव के कारण ब्लड शुगर लेवल में परिवर्तन हो सकता है। ऐसे में कुछ लक्षणों के माध्यम से बढ़े हुए शुगर के स्तर की पहचान की जा सकती है। आइए आगे की स्लाइडों में इस बारे में जानते हैं।

शुगर लेवल बढ़ने की समस्या (प्रतीकात्मक तस्वीर)

सुबह के समय बढ़ जाता है शुगर का स्तर
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक रात में शरीर स्वाभाविक रूप से इंसुलिन में परिवर्तनों को व्यवस्थित नहीं कर पाता है, ऐसे में लोगों को अक्सर सुबह के समय ब्लड शुगर के स्तर में बदलाव का अनुभव हो सकता है। ज्यादातर लोगों का सुबह के समय ब्लड शुगर लेवल बढ़ जाता है। डॉक्टरों के मुताबिक टाइप-2 डायबिटीज वाले लगभग 50 प्रतिशत लोगों को सुबह के समय शुगर का स्तर बढ़ने से संबंधित दिक्कतें हो सकती हैं। सामान्यतौर पर इन लक्षणों के माध्यम से बढ़े हुए शुगर लेवल की पहचान की जा सकती है।

वो चीज जो पीएम 2.5 से कहीं ज्यादा खतरनाक है, प्रदूषण मापने में सरकारें क्यों नहीं लेतीं इनका नाम

दिल्ली में वायु प्रदूषण (फाइल फोटो)

पिछले कई दिनों में हमारे देश में प्रदूषण को लेकर बहुत शोर मचा है। अक्सर हवा खराब होने और सांस लेना दूभर होने की शिकायतें मिल रही हैं। इस दौरान एक शब्द का इस्तेमाल बार-बार किया जा रहा है, जिसे आप सभी ने सुना ही होगा। वो है PM 2.5 (पार्टिकुलेट मैटर 2.5)।

ये वो छोटे-छोटे कण होते हैं, जिनकी वजह से प्रदूषण होता है। इनका आकार 2.5 माइक्रोमीटर होता है। कहा जाता है कि ये हमारे फेफड़ों से होते हुए हमारे खून की नली तक पहुंच जाते हैं। लेकिन, हकीकत ये है कि इनमें से जयादातर प्रदूषण के कण फेफड़ों की छननी के पार नहीं जा पाते।

हमें ये भी बताया जा रहा है कि नाइट्रस ऑक्साइड गैसें, जिसमें नाइट्रोजन ऑक्साइड भी शामिल है, वो ही शहरों में वायु प्रदूषण के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। लेकिन, रिसर्च बताती हैं कि यूरोप में प्रदूषण से होने वाली मौतों में से केवल 14 प्रतिशत के लिए ही नाइट्रस ऑक्साइड गैसें जिम्मेदार होती हैं।

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