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22 वर्ष की उम्र में बनी इस खुबशूरत आईएएस का सबसे हटके है काम करने का अंदाज, जानिए आईएएस स्मिता सबरवाल की कहानी

ias smita sabharwal

लोगों के लिए काम करें और लोगों की सेवा करें । खैर, यह एक विचारधारा है जिसका अनुसरण हमारे अपने “पीपुल्स ऑफिसर” IAS स्मिता सभरवाल द्वारा किया जाता है। हर UPSC आकांक्षी अध्ययन की शक्ति में विश्वास करता है, और फिर कड़ी मेहनत करता है।

यह इस महिला IAS अधिकारी का मामला नहीं था। उनके शब्दों में, “यह सोचना गलत है कि कोई भी व्यक्ति सिविल सेवा के माध्यम से केवल बहुत कठिन अध्ययन करके प्राप्त कर सकता है। अंतिम दौर में, आपकी रुचियों और शौक को भी चयन के लिए ध्यान में रखा जाता है ।


अपने दृढ़ संकल्प के साथ, माता-पिता के समर्थन के साथ, 2000 में UPSC में दरार आने के बाद, स्मिता सभरवाल ने बंधकों को तोड़ दिया। यह सबसे कम उम्र के IAS Officer की कहानी है, जिसने इसे अतिरिक्त सचिव के रूप में सीएम कार्यालय में बनाया ।

स्मिता सभरवाल की कहानी
यह युवा बुद्धि सेना के एक अधिकारी की बेटी है । मूल रूप से, दार्जिलिंग के मूल निवासी, इस सेना बरात ने पूरे भारत की यात्रा की, इससे पहले कि वे अंततः हैदराबाद में बस गए। अपने बचपन के दिनों को देखते हुए, IAS Officer बनना कभी उसका सपना नहीं था। हालाँकि, वह केवल शिक्षा और सीखने की शक्ति में विश्वास करती थी ।

यह उसकी अकादमिक प्रशंसा से स्पष्ट है । स्मिता ने अपनी स्कूली शिक्षा सेंट एनन्स, मार्रेडपल्ली, हैदराबाद से की। यह सीखने में उनकी रुचि थी कि पूरे भारत में एमएसीडी की मूल कहानी उनके 12 वीं कक्षा में आईसीएसई बोर्ड में टॉप किया ।

आसमान साफ ​​थे और अभी भी बदलाव के कोई संकेत नहीं थे । स्मिता ने महिलाओं के लिए सेंट फ्रांसिस डिग्री कॉलेज से कॉमर्स में स्नातक की पढ़ाई जारी रखी। इसके अलावा, इस IAS अधिकारी का मानना ​​है कि जिस व्यक्ति ने वास्तव में उसे समाज में बदलाव लाने के लिए प्रेरित किया, वह उसका पिता था। हालाँकि, उसकी माँ के शब्दों में, “अपना दिल लगाते ही सब कुछ प्रासंगिक हो जाता है ।”


अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के तुरंत बाद, स्मिता ने UPSC परीक्षाओं की तैयारी शुरू कर दी। हालाँकि, नियति ने उसके लिए कुछ और ही योजना बनाई थी। अपने पहले प्रयास में, वह अपना पहला राउंड भी साफ़ एमएसीडी की मूल कहानी एमएसीडी की मूल कहानी नहीं कर सकी। लेकिन इसने उसे न तो निराश किया और न ही हतोत्साहित किया ।

2000 में, उसने न केवल UPSC परीक्षाओं को पास किया, एमएसीडी की मूल कहानी बल्कि AIR-4 को भी पकड़ लिया। 23 साल की उम्र में उसने अपनी IAS यात्रा शुरू की।

उसकी तैयारी की रणनीति
अन्य साथी की तरह, स्मिता की यात्रा कठिन थी और थकाऊ भी हालांकि, वह अपने शिक्षाविदों और उनके शौक के बीच एक उचित संतुलन बनाए रखने में विश्वास करती थीं।

यह महसूस करने के बाद कि वह क्या करना चाहती है, स्मिता ने स्थिर हाथ पर हाथ रखा । वह बिना किसी रुकावट के हर दिन छह घंटे पढ़ाई करती थी। मन को शांत रखने के लिए, वह हर शाम कम से कम एक घंटे के लिए आउटडोर गेम्स में शामिल होती थी ।

वह वर्तमान मामलों से अपडेट रहने के लिए दैनिक समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के माध्यम से अच्छी तरह से चला गया। हालांकि एमएसीडी की मूल कहानी वह वाणिज्य पृष्ठभूमि से संबंधित थीं, लेकिन उन्होंने अपने वैकल्पिक विषयों के रूप में मानव विज्ञान और सार्वजनिक मामलों को लिया ।

उसकी आईएएस यात्रा
वर्ष 2000 उसे सफलता के बिंदु के रूप में चिह्नित करता है। इस 23 वर्षीय ने UPSC परीक्षाओं को पास किया और AIR-4 प्राप्त किया। वह एक कारण के लिए “पीपुल्स ऑफिसर” है ।

वारंगल में सेवा करते समय, उसने पुलों, अस्पतालों, सड़कों आदि की उपयोगिता सेवाओं के पूरक के लिए “एमएसीडी की मूल कहानी फंड योर सिटी” योजना पेश की, यह एक सार्वजनिक-निजी भागीदारी थी।

इस महिला अधिकारी ने महिला वर्ग के उत्थान में प्रयास दिखाए। उन्होंने ग्रामीण पृष्ठभूमि में लोगों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने के लिए कई अभियान और सामाजिक जागरूकता कार्यक्रम चलाए। इसके अलावा, हर समय अपने काम पर नज़र रखने के लिए उसने सुनिश्चित किया कि मॉनिटर सार्वजनिक उपयोगिता वाले स्थानों के अंदर फिट किए गए थे ।

उन्होंने महिलाओं को सार्वजनिक सेवाओं का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया क्योंकि वे मदद मांगने में झिझकती थीं ।

करीमनगर और मेदक में पोस्टिंग के दौरान लोगों के प्रति स्मिता की सेवा को बहुत सराहना मिली । सीएम कार्यालय में, IAS स्मिता सभरवाल नियुक्त होने वाली सबसे कम उम्र की IAS अधिकारी हैं । वह तेलंगाना और मिशन भगीरथ में ग्रामीण जल आपूर्ति प्रबंधन का काम भी देखती हैं ।

नहीं रहे साठोत्तरी कहानी के ख्यात लेखक दूधनाथ सिंह

नहीं रहे साठोत्तरी कहानी के ख्यात लेखक दूधनाथ सिंह

प्रोस्टेट कैंसर से पीड़ित प्रसिद्ध कथाकार और जनवादी लेखक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष दूधनाथ सिंह दिसंबर से इलाहाबाद के एक निजी हॉस्पिटल में अपना इलाज करवा रहे थे। 10 जनवरी की को उन्हें हार्टअटैक पड़ा, जिसके बाद से वो वेंटिलेटर पर थे। वेंटिलेटर पर ही 11 जनवरी की रात को तकरीबन 12 बजे 82 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया।

पिछले साल अक्तूबर माह में जब उनका स्वास्थ्य लगातार बिगड़ रहा था तो उन्हें दिल्ली एम्स में दिखाया गया था, जहां डॉक्टरों ने प्रोस्टेट कैंसर की पुष्टि की और वहीं से उनका इलाज चल रहा था। मगर दिसंबर अंत में वे इलाहाबाद एमएसीडी की मूल कहानी आए थे, जहां तबीयत खराब होने पर एक निजी हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था।

मूल रूप से बलिया के रहने वाले दूधनाथ सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एमए करने के बाद वहीं पढ़ाने लगे थे। साथ ही हिंदी लेखन में उनकी सक्रियता जारी रही।

हिंदी साहित्य में दमदार लेखन के लिए उन्हें उत्तर प्रदेश के सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान भारत-भारती, मध्य प्रदेश सरकार के शिखर सम्मान मैथिलीशरण गुप्त सम्मान समेत कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।

दूधनाथ सिंह का नाम उन कथाकारों में शामिल है जिन्होंने नई कहानी आंदोलन को चुनौती दी और साठोत्तरी कहानी आंदोलन शुरू किया। 'हिन्दी के चार यार' के रूप में ख्यात ज्ञानरंजन, काशीनाथ सिंह, दूधनाथ सिंह और रवीन्द्र कालिया ने अपने जीवन के उत्तरार्द्ध में हिन्दी लेखन को नई धार दी। चार यारों में से अब सिर्फ काशीनाथ सिंह और ज्ञानरंजन ही बचे हैं। रवींद्र कालिया का भी पिछले साल निधन हो चुका है।

अपने समय के ख्यात लेखकों निराला, पंत और महादेवी के प्रिय रहे दूधनाथ सिंह ने आखिरी कलाम, लौट आ ओ धार, निराला : आत्महंता आस्था, सपाट चेहरे वाला आदमी, यमगाथा, धर्मक्षेत्रे-कुरुक्षेत्रे जैसी ख्यात रचनाएं लिखीं। 'एक और भी आदमी है', 'अगली शताब्दी के नाम' और 'युवा खुशबू' हैं, उनके कविता संग्रह हैं।

दूधनाथ सिंह की अंतिम इच्छा के अनुसार उनकी आंखें मेडिकल कॉलेज में दान की जाएंगी। उनके तीनों बच्चों अनिमेष ठाकुर, अंशुमन सिंह और अनुपमा ठाकुर ने उनकी आंखें दान करने का फैसला किया है। परिवार में दो साल पहले उनकी पत्नी निर्मला ठाकुर का भी निधन हो चुका था।

कल देर रात निधन के बाद दूधनाथ सिंह का पार्थिव शरीर उनके प्रतिष्ठानपुरी झूंसी स्थित आवास पर ले जाया गया। आज दिन में रसूलाबाद घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।

एमपी सीएम हेल्पलाइन पर नकली शिकायतें और फर्जी समाधानः सिस्टम के पंचतंत्र की अद्भुत कहानी

shivraj omicron

सीएम हेल्पलाइन पर नकली शिकायतें और फर्जी समाधान की खबर को समझने में दिमाग चकरा जाएगा। मध्यप्रदेश सरकार के साथ हुआ यह ऐसा फ्रॉड है जो फिल्मी कल्पना से आगे है। यह उसी प्रकार का है जैसे कि नकली सिक्के धीरे-धीरे असली सिक्कों को बाहर कर देते हैं।

यह फ्रॉड मुख्यमंत्री और वरिष्ठ अफसरों को अंधेरे में रखने का है। सीएम हेल्पलाइन की शिकायतों की मॉनिटरिंग मुख्यमंत्री के स्तर से होती रही है। इन शिकायतों के प्रति मुख्यमंत्री अत्यंत गंभीर रुख अपनाते रहे हैं। एमएसीडी की मूल कहानी कई बार शिकायतों के निराकरण नहीं होने के कारण अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई भी की गई है।

सीएम हेल्पलाइन की शिकायतों की मॉनिटरिंग में यह देखा जाता है की कुल कितनी शिकायतें हुई थीं, निर्धारित समय में कितनों का निराकरण हुआ और किन अधिकारियों ने शिकायतों के निराकरण को गंभीरता से नहीं लेते हुए लापरवाही बरती? इस कार्रवाई से बचने के लिए अद्भुत फ्रॉड शुरू हुआ है।

शुरुआत किस स्तर से हुई है यह तो जांच के बाद ही पता लगेगा लेकिन मूल शिकायतों को निराकरण नहीं किया जाता था और निराकरण हो चुकी शिकायतों का औसत बढ़ाने के लिए शिकायतों का मैनेजमेंट नकली ढंग से कर लिया जाता था।

समीक्षा में यह स्थापित कर दिया जाता था कि जितनी शिकायतें हुई थी उनमें अधिकांश का निराकरण कर दिया गया है लेकिन निराकरण की गई शिकायतें अधिकांश नकली होती थी जो मूल शिकायत असली होती थी उसका निराकरण नहीं होता था लेकिन निराकरण का औसत अधिक होने के कारण इसे सामान्य रूप से स्वीकार कर लिया जाता रहा।

शिकायत के फ्रॉड में मुख्यमंत्री के क्षेत्र के अफसर भी शामिल पाए गए हैं। जब मुख्यमंत्री के गांव में और उनके क्षेत्र के मामले में भी इस तरह की घोर लापरवाही बरती जा सकती है तो फिर बाकी क्षेत्रों के बारे में तो कल्पना ही की जा सकती है।

खबर के मुताबिक सीएम हेल्पलाइन में हर गांव को पांच नकली शिकायत का टारगेट दिया गया था एक ही टेलीफोन नंबर से कई शिकायतें की जाती थीं और चूँकि शिकायत ही फर्जी थी इसलिए उनका आसानी से निराकरण कर शिकायतों के निराकरण के औसत को बढ़ा लिया जाता था।

शिकायतें ज्यादातर पंचायत सचिव, रोजगार सहायक के खुद के या परिचितों के फोन नंबर से की जाती थीं। इसके बाद शिकायतकर्ता द्वारा दर्ज कराए मोबाइल नंबर पर ओटीपी जाता है। इससे ओटीपी लेकर 24 घंटे के भीतर एमएसीडी की मूल कहानी ई-पोर्टल पर शिकायतों का समाधान दर्ज कर दिया जाता है। इससे निराकृत शिकायतों का ग्राफ बढ़ता जाता है जबकि वास्तविक शिकायतों की पेंडेंसी कम दिखने लगती है।

सरकारी सिस्टम में लालफीताशाही, भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद तो दिखता है और उनको रोकने के प्रयास भी दिखते हैं लेकिन इस तरह के फ्रॉड में तो सच्चाई ही छुपा दी जाती है। मुख्यमंत्री कितनी भी गंभीरता से मॉनिटरिंग करें उनके सामने सच आ हीं नहीं पाता। यह तो एक मामला एमएसीडी की मूल कहानी है। तंत्र ऐसे न मालूम कितने अभिनव प्रयोग कर रहा होगा जिससे मुख्यमंत्री के समक्ष सच्चाई पहुंचने से रोका जा सके।

ऐसा कर सत्ता संचालन के मुख्य सूत्र तक लोगों को कम से कम पहुंचने की स्थितियां निर्मित की जाती हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कई बार यह बात कह चुके हैं कि अफसरों की तरफ से उन्हें जिस तरह की जानकारियां दी जाती हैं वे जमीनी स्तर से अलग होती हैं। इसीलिए मुख्यमंत्री भी जनता के बीच में जाकर सच्चाई का पता लगाने की कोशिश करते हुए नजर आते हैं।

ऐसा लग रहा था कंप्यूटर और डिजिटल एडमिनिस्ट्रेशन से पारदर्शिता बढ़ेगी लेकिन ऐसी-ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं जिससे इस सिस्टम से पारदर्शिता बढ़ने के बजाय उसके मैनेज होने का यकीन होने लगा है। पब्लिक यह समझती है कि सिस्टम ने उनकी बात को पारदर्शी ढंग से रिकॉर्ड कर लिया है लेकिन वह पूरा सिस्टम मैनेज होता है।

न मालूम कौन सा दौर आ गया है कि आंखों का अश्क अब ग्लिसरीन का पानी हो गया है। फर्जी बंधन निभाते-निभाते लोग खुद फर्जी हो गए हैं। ऐसी स्थिति बन गई है कि ऐसी परिस्थितियों से किसी को कोई फर्क ही नहीं पड़ता है क्योंकि हर आने वाला चेहरा तो नकली ही लेकर आ रहा है।

किसी शायर ने कहा है-

उसकी नकली शीशियों में असली जहर भरा था.
था जरूर कागज पर लेकिन खूबसूरत शहर बसा था.

सीएम हेल्पलाइन के साथ ऐसा क्रूर मजाक सिस्टम की तबाही की बानगी है। जनता तो जी लेगी लेकिन ऐसा करने वाले कभी चैन से नहीं रह सकेंगे।

Bihar: अब सीवान जिले में भी जहरीली शराब पीने से चार की मौत, नीतीश बाबू बोले - नहीं मिलेगा मुआवजा

Bihar : बिहार के सारण के बाद अब सीवान जिले में भी जहरीली शराब ने कहर बरपाया है। यहां कथित तौर पर जहरीली शराब पीने से चार लोगों की मौत हो गई। भगवानपुर के ब्रह्मस्थान पंचायत के एक गांव में इन चार लोगों की मौत हुई है। सारण के मशरक और इसुआपुर में ही जहरीली शराब पीने से 53 लोगों की मौत हुई है। उधर, सीएम नीतीश कुमार ने कहा है कि शराब से मौत पर कोई मुआवजा नहीं मिलेगा।

उधर, बिहार में जहरीली शराब पीने से हुई मौतों का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। इस संबंध में कोर्ट से जल्द सुनवाई की मांग की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने जल्द सुनवाई से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि ये मामला मेंशनिंग लिस्ट में नहीं है।

दरअसल, बिहार के सारण जिले में हुई जहरीली शराब से हुई मौतों के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गई थी। इस हादसे की एसआईटी से जांच कराने और पीडितों को मुआवजे दिए जाने की मांग की गई थी।

उधर, बिहार में जहरीली शराब पीकर मरने वालों का आंकड़ा बढ़ कर 53 हो गया है। इस सिलसिले में प्रशासन जांच कर रहा है। अभी भी कई लोगों का इलाज जारी है। इसे अब तक की सबसे बड़ी शराब त्रासदी माना जा रहा है।

सुप्रीम कोर्ट का फ़ाइल चित्र शराब कांड मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा

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Uttar Pradesh News: महिला को डंडे से मारकर पूरे गांव में लेकर घूमता रहा खून से सना डंडा, महिला की हुई मौत

SC: सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की बिलकिस बानो की याचिका, 11 दोषियों की रिहाई पर पुनर्विचार नहीं

Supreme Court on Bilkis Bano case: गुजरात (Gujrat) में 2002 के एमएसीडी की मूल कहानी गोधरा कांड (Godhra riots) के बाद हुए दंगों की शिकार बिलकिस बानो (Bilkis Bano) को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Cour) से राहत नहीं मिली है. सुप्रीम कोर्ट अब बिलकिस बानो के दोषियों की समय से पहले रिहाई पर विचार नहीं करना चाहता है. सुप्रीम कोर्ट ने 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ बिलकिस बानो की पुनर्विचार याचिका (review petition) खारिज कर दी है. दरअसल बिलकिस बानो ने अपनी याचिका में 11 दोषियों की रिहाई के फैसले को चुनौती दी थी और मई 2022 के फैसले पर पुनर्विचार की गुहार लगाई थी.

जेल से रिहा हुए दोषी

सुप्रीम कोर्ट ने उस फैसले में कहा था कि गुजरात सरकार के पास 11 दोषियों की क्षमा याचिकाओं पर निर्णय लेने का अधिकार है, भले ही मुकदमा महाराष्ट्र में चला था। याचिका खारिज करने से पहले इस मामले पर जल्द सुनवाई की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आपको एक ही मामले का एमएसीडी की मूल कहानी बार-बार जिक्र नहीं करना चाहिए. यह बहुत परेशान करने वाला है.

दरअसल, पीड़िता बिलकिस बानो ने 11 दोषियों की समय से पहले रिहाई को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और मांग की थी कि सभी दोषियों को वापस जेल भेजा जाए. इससे पहले जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने बिलकिस बानो की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था.

आपको बता दें कि इससे पहले बिलकिस बानो ने कहा था कि उससे जुड़े मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे 11 दोषियों और उसके परिवार के सात लोगों की समय से पहले रिहाई से उनका न्याय से भरोसा टूट गया है. बिलकिस बानो गैंगरेप और परिवार के सात सदस्यों की हत्या के दोषी सभी 11 लोगों को 15 अगस्त को गोधरा उप-जेल से रिहा कर दिया गया था, जब भाजपा के नेतृत्व वाली गुजरात सरकार ने उन्हें माफी नीति के तहत माफ कर दिया था .

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