बरुआ ने उम्मीद जताई कि केंद्रीय बैंक आगामी नीतिगत समीक्षा बैठकों में दरों में बढ़ोतरी जारी रखेगा और साल के अंत तक ब्याज दर को 5.75 प्रतिशत तक ले जाएगा।

लंबी अवधि की वित्तीय नीति

हमारी शाखा/कार्यालय परिसर के भू-स्वामी (हमारे बैंक को पट्टे पर दिए गए आवासीय फ्लैट/घर सहित)

संपत्ति के मालिक (वाणिज्यिक/आवासीय) जिन्होंने उक्त को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, डाकघर एवं सरकारी विभागों को किराए पर दिया है.

संपत्ति के मालिक (वाणिज्यिक/आवासीय/आईटी पार्क/ मॉल/औद्योगिक क्षेत्र/एसईजेड में संपत्ति) जिन्होंने उक्त को अन्य प्रतिष्ठित कंपनियों/ बहुराष्ट्रीय कंपनियों/संस्थानों/निजी क्षेत्र के बैंकों आदि को किराए पर दिया है.

छोटी से लंबी अवधि की जरूरतों के लिए या किसी अन्य आवश्यकता के लिए ऋण स्वीकृत किया जा सकता है.

हालांकि, बैंक की उधार नीति और/या आरबीआई द्वारा समय-समय पर निषिद्ध उद्देश्यों/गतिविधियों के लिए वित्त पर विचार नहीं किया जाएगा.

योजना के तहत स्वीकृत की जा सकने वाली प्रति पार्टी अधिकतम सीमा की गणना बैंक को उपलब्ध अधिकतम 120 महीने तक की शुद्ध किराया राशि को ध्यान में रखते हुए की जानी चाहिए, जो निम्न के अधीन है:

आरबीआई की नीति से वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित होगी, रुपये को मिलेगी मजबूती: बैंकर

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने शुक्रवार को प्रमुख ब्याज दर रेपो को 0.50 प्रतिशत बढ़ाकर 5.40 प्रतिशत कर दिया। यह मई के बाद से तीसरी वृद्धि है। ताजा वृद्धि के साथ रेपो दर या अल्पकालिक उधारी दर महामारी से पहले के स्तर 5.15 प्रतिशत को पार कर गई है। रेपो दर पर ही वाणिज्यिक बैंक केंद्रीय बैंक से उधार लेते हैं।

भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के चेयरमैन दिनेश खारा ने कहा कि इस कदम से मुद्रास्फीति को नीचे लाने और बाजारों में वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।

एचडीएफसी बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री अभीक बरुआ ने नीतिगत फैसले को नए वैश्विक रुझानों के अनुरूप बताया। उन्होंने कहा कि आरबीआई ने मुद्रास्फीति के प्रति आक्रामक रुख अपनाया, जो अभी भी ऊंची बनी हुई है। हालांकि, वृद्धि की गति काफी सकारात्मक है।

ब्याज दर और भारत का आर्थिक पुनरुद्धार

The translations of EPW Editorials have been made possible by a generous grant from the H T Parekh Foundation, Mumbai. The translations of English-language Editorials into other languages spoken in India is an attempt to engage with a wider, more लंबी अवधि की वित्तीय नीति diverse audience. In case of any discrepancy in the translation, the English-language original will prevail.

क्या वैश्विक अर्थव्यवस्था पर एक और लंबी अवधि की वित्तीय नीति मंदी की मार पड़ने वाली है? कारोबारी जंग के साथ अमेरिकी मीडिया में इस बात को लेकर लगातार चर्चा चल रही है कि सरकार की छोटी अवधि वाले बाॅन्ड के मुकाबले लंबी अवधि वाले बाॅन्ड पर कम रिटर्न आ रहा है। क्या एक बार फिर बड़ी मंदी आने वाली है? या फिर इसे सक्रिय नीतियों से टाला जा सकता है? 2008 की मंदी के वक्त दुनिया भर की सरकारों ने मौद्रिक रियायत पर जोर दिया था न कि वित्तीय रियायत पर। इस नीति से कोई खास अपेक्षा इस बार नहीं की जा रही है। भारत के नीति निर्माताओं ने भी मौद्रिक नीति की नाकामी से सबक नहीं लिया है। ये लोग इस बात पर सहमत हैं लंबी अवधि की वित्तीय नीति कि ब्याज दरों में बदलाव करके आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित किया जा सकता है। जबकि इसे गलत साबित करने वाले पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ने पिछले दिनों रेपो दर में 0.लंबी अवधि की वित्तीय नीति 35 फीसदी कटौती की घोषणा की। इसके पीछे सोच यह है कि कर्ज सस्ता लंबी अवधि की वित्तीय नीति होने से निजी निवेश बढ़ेगा और मांग में भी तेजी आएगी। अगर किन्स होते तो कहते कि मौद्रिक नीतियों के विस्तार वाले प्रभावों के मामले में कथनी और करनी में काफी फर्क होता है। भारत की अर्थव्यवस्था को प्रतिचक्रीय उपायों की जरूरत है। लेकिन क्या इसमें ब्याज दरों का कोई योगदान होगा?

क्या लक्ष्यों को केवल लंबी अवधि के लिए होना चाहिए या छोटी अवधि के लिए?

क्या लक्ष्यों को केवल लंबी अवधि के लिए होना चाहिए या छोटी अवधि के लिए?

उसके वित्तीय सलाहकार ने लिक्विड म्यूचुअल फंड की सलाह दी क्योंकि वे छोटी अवधि में पैसे की जरूरत के हिसाब से आदर्श होते हैं और तब भी जब समयावधि अनिश्चित हो। ये जरूरत के हिसाब से पूरी या आंशिक धन निकासी का लचीलापन भी प्रदान करते हैं।

तो लंबी और छोटी दोनो अवधि के लक्ष्यों के लंबी अवधि की वित्तीय नीति लिए बहुत सारी म्यूचुअल फंड योजनाएं उपलब्ध हैं।

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