मासूम 'कृति दुबे' के सवालों के बीच वित्त मंत्री का जवाब, जानें उन्हें अर्थव्यवस्था पर क्यों है भरोसा

प्रशांत श्रीवास्तव

State of Indian Economy: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोक सभा में कहा है कि सरकार महंगाई को कम करने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है और उसी का नतीजा है कि दूसरे देशों की तुलना में भारत में महंगाई कम है। उन्होंने यह भी कहा है कि जहां तक भारत मे मंदी की आशंका की बात है तो उसका जीरो चांस है।

NIRMALA SITARAMAN AND INDIAN ECONOMY

  • IMF के अनुसार दुनिया में साल 2022-23 में भारत की सबसे ज्यादा ग्रोथ रेट 7.4 फीसदी रहेगी।
  • जुलाई महीने में जीएसटी 28 फीसदी बढ़कर 1.49 लाख करोड़ पर पहुंच गया है। हालांकि इसमें महंगाई की भी हिस्सेदारी है।
  • CMIE के आंकड़ों के अनुसार जुलाई में पिछले छह महीने की सबसे कम बेरोजगारी दर दर्ज हुई है।

State of Indian Economy:सोमवार को जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण महंगाई और भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति पर बयान दे रही थीं। तो उसी समय उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले की रहने वाली छह साल की बच्ची कृति दुबे का लेटर वायरल हो चुका था। कक्षा एक में पढ़ने वाली कृति ने महंगाई पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेटर लिखा था। जिसमें उन्होंने मैगी और पेसिंल की बढ़ी कीमतों से हो रही परेशानी को बयान किया था। जाहिर है बढ़ती महंगाई और कम ग्रोथ, मंदी और स्टैगफ्लेशन जैसी चिंताएं बढ़ा रही है।

लेकिन वित्त मंत्री ने देश की जनता को लोक सभा में दिए गए बयान से यह भरोसा दिलाया है कि सरकार महंगाई को कम करने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है और उसी का नतीजा है कि दूसरे देशों की तुलना में भारत में महंगाई कम है। उन्होंने यह भी कहा है कि जहां तक भारत मे मंदी की आशंका की बात है तो उसका जीरो चांस है। वित्त मंत्री के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था के फंडामेंटल बेहद मजबूत हैं। ऐसे में घबराने की जरूरत नहीं है। असल में वित्त मंत्री के भरोसे की कई वजहें, जिसके कारण वह इस बात का पूरे आत्मविश्वास के साथ दावा कर रही है कि न तो अर्थव्यवस्था को लेकर कोई जोखिम है और न ही भारत की तुलना श्रीलंका, पाकिस्तान जैसे देशों से की जा सकती है।

दुनिया में सबसे तेज रहेगी अर्थव्यवस्था

अपने जवाब में वित्त मंत्री ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF)की रिपोर्ट का हवाला दिया है। जो दुनिया में मंदी की चुनौती के बीच भारत की अर्थव्यवस्था को सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था के रूप में प्रोजेक्ट कर रहा है। IMF के अनुसार दुनिया में साल 2022-23 में भारत की सबसे ज्यादा ग्रोथ रेट 7.4 फीसदी रहेगी। उसके बाद स्पेन की 4.0 फीसदी और चीन की 3.3 फीसदी ग्रोथ रहेगी। वहीं उसने अमेरिका की ग्रोथ रेट भी 2.3 फीसदी का अनुमान जताया है। हालांकि उसने पिछले अनुमान के मुकाबले रेट को घटाया भी है। इसके अलावा ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट बड़ी राहत देती है। उसके अनुसार एशिया में भारत अकेला ऐसा देश है जहां पर मंदी की जीरो फीसदी संभावना है। उसकी एक बड़ी वजह भारत का खुद का बाजार। है जिसकी वजह से घरेलू मांग बड़े स्तर पर राहत देगी।

महंगाई चिंता की बात

भले ही वित्त मंत्री महंगाई को लेकर यह कहें कि सरकार लगातार कदम उठा रही है और यही वजह है कि रिटेल महंगाई दर इस समय 7 फीसदी से नीचे रखने की बात कही है। लेकिन चिंता की बात यह है कि आरबीआई के सामान्य स्तर 6 फीसदी से अभी भी यह ज्यादा है। और पिछले तीन महीने से यह 7 फीसदी से ज्यादा पर बनी हुई हैं। और इसी महंगाई का असर है कि आरबीआई एक बार फिर 5 अगस्त को आने वाली मौद्रिक नीति में रेपो रेट में 0.30-0.35 फीसदी की बढ़ोतरी कर सकता है। जबकि पिछले दो बार में वह पहले ही 0.80 फीसदी की बढ़ोतरी कर चुका है। नई बढ़ोतरी के बाद एक बार फिर कर्ज महंगे हो जाएंगे। जिसका सीधा असर मांग पर पड़ेगा। जो भले ही महंगाई में थोड़ी कमी लाए लेकिन उसका सीधा असर ग्रोथ रेट पर दिखेगा।

मैन्युफैक्चरिंग में तेजी

वित्त मंत्री के भरोसे की एक और बड़ी वजह मैन्युफैक्चरिंग गतिविधियों में तेजी आना है। मैन्युफैक्चरिंग परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (PMI)जुलाई के महीने में पिछले 8 महीने के उच्चतम स्तर पर है। जुलाई में PMI जून के मुकाबले बढ़कर 56.4 पर पहुंच गया। इससे पहले यह जून में मई के मुकाबले कम होकर 53.9 पर पहुंच गया था। इसका सीधा मतलब है कि कंपनियां मांग को देखते हुए इनपुट बढ़ा रही है। इसकी एक बानगी जुलाई में कारों की रिकॉर्ड बिक्री में दिखा है। जुलाई में 3.4 लाख पैसेंजर वाहनों की डिलिवरी हुई है।

बेरोजगारी दर में कमी

अर्थव्यवस्था की तस्वीर को पेश करने वाला एक और अहम आंकड़ा वित्त विदेशी मुद्रा खतरनाक क्यों है? मंत्री के भरोसे को बढ़ाता है। CMIE के आंकड़ों के अनुसार जुलाई में पिछले छह महीने की सबसे कम बेरोजगारी दर दर्ज हुई है। फरवरी में यह 8.11 फीसदी के स्तर पर थी। जो जुलाई में गिरकर 6.80 फीसदी पर आ गई है। हालांकि शहरी इलाकों में बेरोजगारी दर 8 फीसदी से ज्यादा होने चिंता की बात है और इस पर वित्त मंत्री को कुछ फौरी कदम उठाने होंगे।

विदेशी मुद्रा भंडार और जीएसटी

वित्त मंत्री ने अपने जवाब में उन सवालों पर निशाना साधा है जिसमें भारतीय अर्थव्यवस्था की तुलना श्रीलंका और पाकिस्तान जैसे देशों से विपक्ष के नेताओं ने की थी। उनका कहना था कि भारत का डेट जीडीपी रेशियो अमेरिका सहित कई देशों से बेहतर स्थिति में है। भारत का डेट जीडीपी रेशियो 56.29 फीसदी है। जबकि कई देशों का तीन अंकों में है। इसी तरह बैंकों का एनपीए 2021-22 में छह साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। जो कि इस दौरान 5.9 फीसदी रहा है।

इसी तरह भारत का विदेशी मुद्रा भंडार भी काफी बेहतर स्थिति में है। ऐसे में वह बेहद आसानी से आयात और बढ़ती महंगाई की चुनौती का सामना कर सकता है। इस समय भारत का विदेशी मुद्रा भंडार करीब 572 अरब डॉलर है। हालांकि यह अक्टूबर 2021 के अपने उच्चतम स्तर (642.45 अरब डॉलर) से नीचे आ गया है। लेकिन फिर भी यह चिंता की बात नहीं है।

एक और अहम बात वित्त मंत्री के भरोसे को बढ़ाती है वह जीएसटी कलेक्शन है। जुलाई महीने में जीएसटी 28 फीसदी बढ़कर 1.49 लाख करोड़ पर पहुंच गया है। हालांकि इसमें महंगाई की भी हिस्सेदारी है। यानी जब कीमतें बढ़ेंगी तो टैक्स भी बढ़ेगा और इस बात को जीएसटी के दावे में नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।

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देश की भलाई के लिए क्रांतिकारी कदम उठाने वाले नरसिंह राव को कांग्रेस ने क्यों नहीं दिया सम्मान

पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव को कांग्रेस ने कभी वह सम्मान नहीं दिया, जिसके वह हकदार थे। फाइल

शरद पवार से लेकर ममता बनर्जी तक कई मिसालें मौजूद हैं। आज ऐसे नेताओं की पार्टियों की देश के कई राज्यों में सरकारें हैं लेकिन वंशवादी कांग्रेस को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि उसके अनुसार तो नेता बनते नहीं बल्कि पैदा होते हैं।

ब्रजबिहारी। हाल ही में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 600 अरब डालर (लगभग 444 खरब रुपये) के पार पहुंच गया है। यह हमारी डेढ़ साल की आयात जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है। अब हम विदेशी मुद्रा भंडार के मामले में रूस से आगे निकलते हुए चौथे नंबर पर पहुंच गए हैं। लगभग 3400 अरब डालर के विदेशी मुद्रा भंडार के साथ चीन पहले नंबर पर है। उसके बाद जापान और स्विट्जरलैंड का नंबर आता है। संयोग देखिए कि इसी जून के महीने में ठीक 30 साल पहले देश का विदेशी मुद्रा भंडार रसातल में पहुंच गया था। तब हमारे पास महज 2500 करोड़ रुपये का विदेशी विदेशी मुद्रा खतरनाक क्यों है? मुद्रा भंडार रह गया था, जो तीन महीने के आयात बिल को पूरा करने के लायक भी नहीं था। महंगाई आसमान छू रही थी और देश दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गया था।

ऐसे चुनौतीपूर्ण समय में 21 जून, 1991 को पीवी नरसिंह राव ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। इसके एक दिन पहले जब वे तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमण के सामने सरकार बनाने का दावा पेश कर लौट रहे थे तो उनके पास कैबिनेट सेक्रेटरी नरेश चंद्रा का फोन आया कि वे तत्काल मिलना चाहते हैं। यह नए प्रधानमंत्री और कैबिनेट सचिव की परंपरागत मीटिंग नहीं थी, बल्कि इन दोनों की डेढ़ घंटे की मुलाकात में देश की किस्मत बदलने वाले फैसले किए गए। तय किया गया कि देश को वित्तीय संकट से बचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) के साथ समझौता किया जाएगा। आइएमएफ हमें लोन देगा और बदले में हमें आर्थिक सुधार करते हुए उदारीकरण का मार्ग प्रशस्त करना होगा।

इस शोध ने संस्कृत को एक वैज्ञानिक भाषा के रूप में चर्चा के केंद्र में पुनः ला खड़ा किया है

सबसे पहले डॉलर के मुकाबले रुपये में अवमूल्यन किया गया। पहला अवमूल्यन नौ फीसद का था, जिसकी घोषणा 30 जून, 1991 को की गई। इसके बाद अगले साल जुलाई में रुपये में 11. 83 फीसद का अवमूल्यन किया गया। अवमूल्यन के कारण हमारा निर्यात पहले से सस्ता हो गया और इसके जरिये विदेशी मुद्रा अर्जित करने में मदद मिली। अवमूल्यन के कारण आयात महंगा हो गया और इससे विदेशी मुद्रा की बचत हुई। तत्कालीन वाणिज्य मंत्री पी चिदंबरम ने नई व्यापार नीति की घोषणा की, जिसके तहत निर्यात को बढ़ावा देने के लिए कई उपाय अमल में लाए गए। देश का खजाना भरने के लिए तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने जुलाई में पेश किए गए अपने पहले बजट में पेट्रोल, डीजल और एलपीजी की कीमतों में 26 फीसद की बढ़ोतरी की घोषणा की, जिससे सरकार को 2500 करोड़ रुपये से ज्यादा का राजस्व प्राप्त हुआ।

भारत किसी भी देश द्वारा अपने निर्वाचित प्रधानमंत्री के विरुद्ध प्रलाप को कभी स्वीकार नहीं करेगा।

आर्थिक उदारीकरण के नरसिंह राव के इस फैसले का कांग्रेस में खूब विरोध हुआ, लेकिन इसमें कोई दोराय नहीं है कि जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी के बताए समाजवादी मॉडल से अलग होकर अगर राव ने यह नया रास्ता नहीं चुना होता तो देश को इसके भयंकर दुष्परिणाम झेलने पड़े होते। आज 30 साल के बाद हम देख सकते हैं कि देश आर्थिक रूप से कितना मजबूत हो गया है। इस बढ़ती आर्थिक ताकत के कारण अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में भी हमारा दबदबा बढ़ा है। अब हमें बड़े देशों की जितनी जरूरत है उससे कहीं ज्यादा उन्हें हमारी आवश्यकता है। इन उपलब्धियों के लिए यह देश नरसिंह राव का हमेशा ऋणी रहेगा, लेकिन कांग्रेस ने कभी इस महान नेता को वह सम्मान नहीं दिया, जिसके वह हकदार थे। वर्ष 2004 में उनकी मृत्यु के बाद दिल्ली में उनका अंतिम संस्कार तक नहीं होने दिया गया। पूर्व प्रधानमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के अध्यक्ष के पद पर रहने वाले राव के पार्थिव शरीर को 24 अकबर रोड स्थित पार्टी मुख्यालय तक में नहीं रखने दिया गया। उनका अंतिम संस्कार हैदराबाद में किया गया। सोनिया गांधी ने वहां जाने की जरूरत नहीं समझी।

परंपरागत रूप से होता रहा है भांग और धतूरे का सेवन

सबसे ज्यादा दुख तो इस बात से होता है कि नरसिंह राव ने जिस मनमोहन सिंह को आर्थिक सुधारों को लागू के लिए खुली छूट दी और इस वजह से उन पर होने वाले राजनीतिक हमलों से उनका बचाव किया, उन्हीं मनमोहन सिंह ने वर्ष 2012 में 28 जून को राव की 91वीं जयंती के कार्यक्रम में आने से इन्कार कर दिया था। इस अवसर पर आंध्र के कुछ नेताओं ने आंध्र भवन में एक कार्यक्रम रखा था, जिसमें मनमोहन सिंह मुख्य वक्ता थे, लेकिन वह नहीं आए। जाहिर है, उन्हें इसके लिए उन्हें 10, जनपथ से अनुमति नहीं मिली होगी।

मतांतरण कराने वाले कानून में तलाश ही लेते हैं छिद्र

नेहरू-गांधी परिवार से बाहर विदेशी मुद्रा खतरनाक क्यों है? के नेताओं की कांग्रेस में अनदेखी कोई नई बात नहीं है। पूरा देश पार्टी के इस रवैये से परिचित है। यह नेहरू के जमाने से चला आ रहा है। तब उनके सामने सुभाष चंद्र बोस, सरदार वल्लभ भाई पटेल और डॉ. भीमराव आंबेडकर जैसे कद्दावर नेताओं की कोई हैसियत नहीं समझी गई। दरअसल नेहरू-गांधी परिवार से बाहर के नेताओं को तवज्जो नहीं दिए जाने के कारण ही एक-एक करके बड़े नेता पार्टी से निकलते विदेशी मुद्रा खतरनाक क्यों है? गए और अपनी पार्टी बनाकर राजनीति में जमे रहे। शरद पवार से लेकर ममता बनर्जी तक कई मिसालें मौजूद हैं। आज ऐसे नेताओं की पार्टियों की देश के कई राज्यों में सरकारें हैं, लेकिन वंशवादी कांग्रेस को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि उसके अनुसार तो नेता बनते नहीं, बल्कि पैदा होते हैं।

Expalined: शेयर बाजार में क्यों हो रही गिरावट, निवेशकों के लिए क्या है एक्सपर्ट्स की सलाह

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Stock Markets Crashed: भारत समेत दुनियाभर के बाजार में बड़ी गिरावट देखी गई है। बजट के ठीक पहले दलाल स्ट्रीट का इस मूड ने सभी को चिंता में डाल दिया है। वैसे माना जा रहा है कि अमेरिका में ब्याज दरों में बढ़ोतरी इसका सबसे बड़ा कारण है। कहा जा रहा है कि अभी कुछ और बड़ी गिरावट देखने को मिल सकती है। यानी निवेशकों के लिए मुश्किल दौर बना रहेगा। कोरोना महामारी भी बाजार के सेंटिमेंट्स को बिगाड़ रही है। अमेरिका और रूस के बीच तनातनी भी आग में घी का काम कर रही है। यहां जानिए एक्सपर्ट्स की राय कि आगे क्या करना चाहिए। वहीं गिरावट की बड़ी बजह क्या हैं

Stock Markets Crashed: गिरावट की दो बड़ी वजह

1. महंगा होता क्रूड बिगाड़ेगा सरकार का बजटीय गणित: सरकार के बजटीय गणित पर सबसे ज्यादा परोक्ष असर महंगे होते क्रूड का पड़ेगा। वर्ष 2022 में क्रूड की कीमतें 14 प्रतिशत बढ़कर 88.17 डालर प्रति बैरल हो गई हैं। पिछले सात वर्षों में यह सबसे ज्यादा है। यह ठीक है कि तेल कंपनियां पेट्रोल और डीजल की कीमत नहीं बढ़ा रही हैं, लेकिन अगर क्रूड की कीमतें ऐसी ही बनी रहीं तो पांच राज्यों के चुनाव खत्म होने के बाद एकमुश्त कीमतें बढ़ाई जा सकती हैं। इसका व्यापक असर महंगाई पर पड़ सकता है। ऐसे में यह देखना होगा कि वित्त मंत्री जनता को फिर से महंगे पेट्रोल डीजल के एक नए दौर में डालती हैं या फिर उन्हें राहत देने के लिए पेट्रोल- डीजल पर उत्पाद शुल्क में पहले ही कटौती करेंगी। केंद्र सरकार के पास एक और उपाय है कि वह राज्यों को पेट्रो उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाने के लिए नए सिरे से बात करे और उन्हें तैयार करे। महंगे क्रूड का प्रभाव देश के चालू खाते में घाटे (निर्यात से होने वाली विदेशी मुद्रा की कमाई व आयात पर होने वाले विदेशी मुद्रा के खर्चे का अंतर) पर भी दिखाई देगा।

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2. महंगाई का दौर लौटने की आशंका भी बड़ी वजह: शेयर बाजार की गिरावट के लिए एक दूसरी बड़ी वजह अमेरिका और दूसरी अर्थव्यवस्था में महंगाई के दौर के लौटने को माना जा रहा है। इसकी वजह से अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व की तरफ से ब्याज दरों को बढ़ाने का एलान होने वाला है। इसका भारत पर असर होने की बात कही जा रही है। सबसे पहले तो अमेरिकी शेयर बाजार के आकर्षक होने से विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआइआइ) भारत से पैसा निकाल कर वहां निवेश करेंगे। ऐसे में देखना होगा कि एफआइआइ को पैसा निकालने से रोकने के लिए आम बजट 2022-23 में कोई कदम उठाया जाता है या नहीं। इसका असर विदेशी मुद्रा भंडार और घरेलू बांड्स पर दिखेगा।

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Stock Markets Crashed: जानिए आगे क्या करें

जियोजित फाइनेंशियल सर्विसेज के चीफ इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटेजिस्ट वीके विजयकुमार के मुताबिक, अभी निवेशकों को थोड़ा सतर्क रहना होगा, क्योंकि पिछले सप्ताह अमेरिका के तकनीकी शेयरों में भारी गिरावट ने पूरी दुनिया के बाजार को प्रभावित किया है। रूस-यूक्रेन सीमा विवाद और फेडरल बैंक की तरफ से दरों में बढ़ोतरी से इस गिरावट को और मजबूती मिली है।

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इसी तरह इक्विटी सलाहकार देवांग मेहता का कहना है कि बाजार चार-पांच दिनों से विकसित देशों में ब्याज दरों में बढ़ोतरी को लेकर सहमा हुआ है। ओमिक्रोन वैरिएंट के खतरनाक नहीं होने के बावजूद इससे प्रभावित मरीजों की संख्या सोचने को मजबूर कर रही है।

पाकिस्तान ने सऊदी अरब से फिर मांगी भीख, जल्दी दो तीन अरब डॉलर

इस्लामाबाद. पाकिस्तान ने अपने विदेशी मुद्रा भंडार के काफी नीेचे गिरने के बाद सऊदी अरब से तत्काल 3 अरब डॉलर देने का अनुरोध किया है. नए सेना प्रमुख के सऊदी अरब की अपनी आगामी पहली यात्रा के दौरान राहत पैकेज हासिल करने में भूमिका निभाने की उम्मीद है. द एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने मंत्रालय के एक बयान का हवाला देते हुए बताया कि वित्त मंत्री इशाक डार ने सऊदी राजदूत नवाफ बिन सईद अल-मल्की के साथ एक बैठक के दौरान यह अनुरोध किया.

लगातार दूसरे दिन वित्त मंत्री ने विदेशी राजनयिकों के साथ वित्तीय सहायता प्राप्त करने के प्रयासों में बैठकें कीं और साथ ही अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) को देश को 1.2 अरब डॉलर की किश्त जारी करने पर अपने रुख को नरम करने के लिए प्रभावित किया. द एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने बताया कि डार का 3 अरब डॉलर के नकद राहत पैकेज के लिए अनुरोध पिछले ऋण के समान मनी रोलओवर से अधिक है.

पाकिस्तान को तत्काल पैसे की जरूरत है. जनवरी 2019 के बाद पहली बार देश का विदेशी मुद्रा भंडार 7 अरब डॉलर के स्तर से नीचे गिर गया है. वर्तमान भंडार लगभग 6.7 अरब डॉलर है, जो 18 जनवरी, 2019 को लगभग 6.6 अरब डॉलर के बराबर था. सूत्रों के मुताबिक, चालू वित्त वर्ष की जनवरी-मार्च अवधि के दौरान 6.7 अरब डॉलर का भंडार 8.8 अरब डॉलर के मूलधन और ब्याज भुगतान के लिए पर्याप्त नहीं है. सूत्रों ने कहा कि बैठक के दौरान इस बात पर भी चर्चा हुई कि नए सेनाध्यक्ष जनरल आसिम मुनीर जल्द ही सऊदी अरब का दौरा करेंगे.

देश की भलाई के लिए क्रांतिकारी कदम उठाने वाले नरसिंह राव को कांग्रेस ने क्यों नहीं दिया सम्मान

पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव को कांग्रेस ने कभी वह सम्मान नहीं दिया, जिसके वह हकदार थे। फाइल

शरद पवार से लेकर ममता बनर्जी तक कई मिसालें मौजूद हैं। आज ऐसे नेताओं की पार्टियों की देश विदेशी मुद्रा खतरनाक क्यों है? के कई राज्यों में सरकारें हैं लेकिन वंशवादी कांग्रेस को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि उसके अनुसार तो नेता बनते नहीं बल्कि पैदा होते हैं।

ब्रजबिहारी। हाल ही में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 600 अरब डालर (लगभग 444 खरब रुपये) के पार पहुंच गया है। यह हमारी डेढ़ साल की आयात जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है। अब हम विदेशी मुद्रा भंडार के मामले में रूस से आगे निकलते हुए चौथे नंबर पर पहुंच गए हैं। लगभग 3400 अरब डालर के विदेशी मुद्रा भंडार के साथ चीन पहले नंबर पर है। उसके बाद जापान और स्विट्जरलैंड का नंबर आता है। संयोग देखिए कि इसी जून के महीने में ठीक 30 साल पहले देश का विदेशी मुद्रा भंडार रसातल में पहुंच गया था। तब हमारे पास महज 2500 करोड़ रुपये का विदेशी मुद्रा भंडार रह गया था, जो तीन महीने के आयात बिल को पूरा करने के लायक भी नहीं था। महंगाई आसमान छू रही थी और देश दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गया था।

ऐसे चुनौतीपूर्ण समय में 21 जून, 1991 को पीवी नरसिंह राव ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। इसके एक दिन पहले जब वे तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमण के सामने सरकार बनाने का दावा पेश कर लौट रहे थे तो उनके पास कैबिनेट सेक्रेटरी नरेश चंद्रा का फोन आया कि वे तत्काल मिलना चाहते हैं। यह नए प्रधानमंत्री और कैबिनेट सचिव की परंपरागत मीटिंग नहीं थी, बल्कि इन दोनों की डेढ़ घंटे की मुलाकात में देश की किस्मत बदलने वाले फैसले किए गए। तय किया गया कि देश को वित्तीय संकट से बचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) के साथ समझौता किया जाएगा। आइएमएफ हमें लोन देगा और बदले में हमें आर्थिक सुधार करते हुए उदारीकरण का मार्ग प्रशस्त करना होगा।

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सबसे पहले डॉलर के मुकाबले रुपये में अवमूल्यन किया गया। पहला अवमूल्यन नौ फीसद का था, जिसकी घोषणा 30 जून, 1991 को की गई। इसके बाद अगले साल जुलाई में रुपये में 11. 83 फीसद का अवमूल्यन किया गया। अवमूल्यन के कारण हमारा निर्यात पहले से विदेशी मुद्रा खतरनाक क्यों है? सस्ता हो गया और इसके जरिये विदेशी मुद्रा अर्जित करने में मदद मिली। अवमूल्यन के कारण आयात महंगा हो गया और इससे विदेशी मुद्रा की बचत हुई। तत्कालीन वाणिज्य मंत्री पी चिदंबरम ने नई व्यापार नीति की घोषणा की, जिसके तहत निर्यात को बढ़ावा देने के लिए कई उपाय अमल में लाए गए। देश का खजाना भरने के लिए तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने जुलाई में पेश किए गए अपने पहले बजट में पेट्रोल, डीजल और एलपीजी की कीमतों में 26 फीसद की बढ़ोतरी की घोषणा की, जिससे सरकार को 2500 करोड़ रुपये से ज्यादा का राजस्व प्राप्त हुआ।

भारत किसी भी देश द्वारा अपने निर्वाचित प्रधानमंत्री के विरुद्ध प्रलाप को कभी स्वीकार नहीं करेगा।

आर्थिक उदारीकरण के नरसिंह राव के इस फैसले का कांग्रेस में खूब विरोध हुआ, लेकिन इसमें कोई दोराय नहीं है कि जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी के बताए समाजवादी मॉडल से अलग होकर अगर राव ने यह नया रास्ता नहीं चुना होता तो देश को इसके भयंकर दुष्परिणाम झेलने पड़े होते। आज 30 साल के बाद हम देख सकते हैं कि देश आर्थिक रूप से कितना मजबूत हो गया है। इस बढ़ती आर्थिक ताकत के कारण अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में भी हमारा दबदबा बढ़ा है। अब हमें बड़े देशों की जितनी जरूरत है उससे कहीं ज्यादा उन्हें हमारी आवश्यकता है। इन उपलब्धियों के लिए यह देश नरसिंह राव का हमेशा ऋणी रहेगा, लेकिन कांग्रेस ने कभी इस महान नेता को वह सम्मान नहीं दिया, जिसके वह हकदार थे। वर्ष 2004 में उनकी मृत्यु के बाद दिल्ली में उनका अंतिम संस्कार तक नहीं होने दिया गया। पूर्व प्रधानमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के अध्यक्ष के पद पर रहने वाले राव के पार्थिव शरीर को 24 अकबर रोड स्थित पार्टी मुख्यालय तक में नहीं रखने दिया गया। उनका अंतिम संस्कार हैदराबाद में किया गया। सोनिया गांधी ने वहां जाने की जरूरत नहीं समझी।

परंपरागत रूप से होता रहा है भांग और धतूरे का सेवन

सबसे ज्यादा दुख तो इस बात से होता है कि नरसिंह राव ने जिस मनमोहन सिंह को आर्थिक सुधारों को लागू के लिए खुली छूट दी और इस वजह से उन पर होने वाले राजनीतिक हमलों से उनका बचाव किया, उन्हीं मनमोहन सिंह ने वर्ष 2012 में 28 जून को राव की 91वीं जयंती के कार्यक्रम में आने से इन्कार कर दिया था। इस अवसर पर आंध्र के कुछ नेताओं ने आंध्र भवन में एक कार्यक्रम रखा था, जिसमें मनमोहन सिंह मुख्य वक्ता थे, लेकिन वह नहीं आए। जाहिर है, उन्हें इसके लिए उन्हें 10, जनपथ से अनुमति नहीं मिली होगी।

मतांतरण कराने वाले कानून में तलाश ही लेते हैं छिद्र

नेहरू-गांधी परिवार से बाहर के नेताओं की कांग्रेस में अनदेखी कोई नई बात नहीं है। पूरा देश पार्टी के इस रवैये से परिचित है। यह नेहरू के जमाने से चला आ रहा है। तब उनके सामने सुभाष चंद्र बोस, सरदार वल्लभ भाई पटेल और डॉ. भीमराव आंबेडकर जैसे कद्दावर नेताओं की कोई हैसियत नहीं समझी गई। दरअसल नेहरू-गांधी परिवार से बाहर के नेताओं को तवज्जो नहीं दिए जाने के कारण ही एक-एक करके बड़े नेता पार्टी से निकलते गए और अपनी पार्टी बनाकर राजनीति में जमे रहे। शरद पवार से लेकर ममता बनर्जी तक कई मिसालें मौजूद हैं। आज ऐसे नेताओं की पार्टियों की देश के कई राज्यों में सरकारें हैं, लेकिन वंशवादी कांग्रेस को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि उसके अनुसार तो नेता बनते नहीं, बल्कि पैदा होते हैं।

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